ब्‍लॉगर

भारतीय जीवन दृष्टि के केंद्र श्रीराम

– गिरीश्वर मिश्र

संस्कृत भाषा में ‘राम’ शब्द की निष्पत्ति रम् धातु से हुई बताई जाती है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सुहावना, हर्षजनक, आनंददायक, प्रिय और मनोहर आदि। आस्थावानों के लिए दीन बंधु दीनानाथ श्रीराम का नाम सुखदायी है, दुखों को दूर करने वाला है और पापों का शमन करने वाला है। कलियुग में उदारमना श्रीराम के नाम का प्रताप आम जनों के लिए अभी भी जीवन के लिए एक बड़े आधार का काम करता है। भक्तों के लिए भव-भय से पार ले जाने वाले श्रीराम सगुण ईश्वर हैं और जाने कितनों का अपने पारस स्पर्श से उद्धार किया।

पौराणिक कथा की मानें तो विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम अयोध्या में राजा दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र के रूप में अवतरित हुए। श्रीराम की कथा एक ऐसा सांस्कृतिक प्रतिमान बन गई जो पूर्णता की पराकाष्ठा बन लोक-समादृत हुई। श्रीराम मानवीय आचरण, जीवन-मूल्य और आत्म-बल के मानदंड बन गए ऐसे कि उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ के रूप में स्वीकार किया गया। आज भारतीय समाज और संस्कृति में श्रीराम की अनिवार्य उपस्थिति कुछ ऐसे ही है जैसे जीने के लिए जल, अन्न और वायु हैं। ये सभी धरती पर जीवन के पर्याय हैं और उसी तरह श्रीराम भक्तों के जीवन स्रोत हैं । मानुष लीला में श्रीराम अन्याय, असत्य और हिंसा का प्रतिरोध करते हुए धर्म के प्रति समर्पित छवि वाले एक ऐसे अनोखे व्यक्तित्व को रचते हैं जो जीवन में बार-बार निजी-हित और लोक-हित के बीच चुनाव के द्वद्व की चुनौती वाली विकट परिस्थितियों का सामना करता है। उनके जीवन के घटना क्रम को देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि तात्कालिक आकर्षणों और प्रलोभनों को किनारे करते हुए वह व्यक्तित्व धर्म मार्ग पर अडिग रहते हुए हर कसौटी पर बेदाग और खरा उतरता है। व्यापक लोकहित या समष्टि का कल्याण ऐसा लक्ष्य साबित होता है कि उसके आगे सब कुछ छोटा पड़ जाता है। राज-धर्म का निर्वाह करते हुए श्रीराम एक मानक स्थापित करते हैं और रामराज्य कल्याणकारी राज्य व्यवस्था का आदर्श बन गया। महात्मा गांधी भी राम-राज्य के विचार से अभिभूत थे। आज भी भारत की जनता अपने राज नेताओं से ऐसे ही चरित्र को ढूँढती है जो लोक कल्याण के प्रति समर्पित हो। छल-छद्म वाले नेताओं की भीड़ में लोग दृढ़ और जनहित को समर्पित नेतृत्व की तलाश कर रहे हैं।


मानव इतिहास में राम-कथा की जितनी व्याप्ति है वैसी व्याप्ति का श्रेय विश्व में शायद ही किसी अन्य नायक को मिला हो। श्रीराम की कथा के सूत्र वैदिक, बौद्ध जातक कथा, प्राकृत के जैन ग्रंथ पउम चरिय में भी मिलते हैं । महाभारत के वन पर्व में भी ‘रामोपाख्यान’ आता है। पर आदिकवि वाल्मीकि के ‘रामायण’ में ही यह कथा ललित और सुव्यवस्थित रूप में विकसित हुई। भक्त शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास के सरस ‘रामचरितमानस’ ने श्रीराम को जन-जन का हृदय-हार बना दिया। भारत में क़िस्म-क़िस्म की रामायण रची गई है। अद्भुत रामायण, सर्वार्थ रामायण, तत्वार्थ रामायण, भुशुण्डि रामायण, अध्यात्म रामायण, और आनंद रामायण आदि विषय-प्रतिपादन की दृष्टि से विविधता भारी विस्तृत विचार और घटनाओं की परिधि को रेखांकित करते हैं। इसी तरह गुजराती (रामायण पुराण), हिंदी (राधेश्याम रामायण), उड़िया (जगमोहन रामायण), तेलुगु (भास्कर रामायण), कन्नड़ (कुमुदेंदु रामायण), असमिया (कथा रामायण), बांग्ला (कृत्तिवास रामायण), कश्मीरी (रामावतार चरित), मलयालम (रामचरितम) तथा तमिल (कंब रामायण) के रामायण भी प्रसिद्ध हैं। वस्तुतः भारतीय भाषाओं के साहित्य में रचे रामायण सत्तर के क़रीब होंगे। राम-कथा को लेकर साहित्य जगत की सक्रियता निरंतर बनी रही है। कालिदास, भवभूति, भास और राजशेखर ने जो संस्कृत में श्रेष्ठ राम-काव्य रचा और यह परम्परा आज भी प्रवाहित हो रही है। कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास आदि सभी विधाओं में राम-कथा से जुड़े विभिन्न विषयों की सर्जनात्मक अभिव्यक्ति होती आ रही है।

राम-कथा के सूत्र अतीत में भारत के बाहर श्रीलंका, इंडोनेशिया, मलयेशिया, चीन, जापान, लाओस, थाईलैंड, म्यांमार और कम्बोडिया आदि देशों तक भी पहुँचे थे और वहाँ के लोगों ने अपनाया और स्वयं को उससे जोड़ा भी । तिब्बती रामायण, खोतानी रामायण, ककबिनरामायण, सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानी रामकथा, इण्डोचायना की रामकेर्ति, म्यांम्मार की यूतोकी रामयागन और थाईलैंड की रामकियेन राम-कथा का नए-नए रूपों में गायन और उद्घाटन करते हैं। राम इन देशों में वहाँ की स्मृति में ही नहीं भौतिक जीवन और व्यवहार में भी शामिल हैं । वहाँ अयुध्या नगरी भी है, मंदिर भी हैं और राम-लीला भी। साहित्य की दृष्टि से राम-कथा आज में संसार के अधिकांश क्षेत्रों में पहुँच चुकी है। अनुमान है कि वाल्मीकि की मूल रामायण की कथा विभिन्न रूपों में संसार भर में तीन सौ से भी ज़्यादा भाषाओं में अभिव्यक्त हुई है । साहित्य सर्जकों की रुचि अभी भी राम-कथा में कम नहीं हुई है और नई रचनाएँ, निरंतर प्रकाश में आती जा रही हैं। इन सभी संस्करणों में राम-कथा के मूल को संजोते हुए अनेक परिवर्तन होते रहे हैं, अनेक प्रसंग जुड़ते रहे हैं और कथा के विभिन्न पात्रों की भूमिकाओं में भी देश-काल के बदलाव के साथ घट-बढ़ होती रही है । सहस्रों वर्षों से राम-कथा जीवंत है । उसके लोक में पहुंचने और उसमें रमने का आकर्षण लोगों को राम-लीला की ओर आज भी आकर्षित करता आ रहा है। साहित्य ही नहीं संस्कृति के अन्य अवयव जैसे संगीत, नृत्य, शिल्प भी प्रभावित हुए हैं। जीवंत राम-कथा में बदलाव भी आए हैं परंतु मूल भाव सुरक्षित हैं।

राम नाम की महिमा का क्या कहना ! भारतीयों का राम नाम में बड़ा भरोसा है। भारत के सभी क्षेत्रों में शायद ही कोई और नाम इतना प्रचलित और स्वीकृत हुआ हो जितना राम नाम है । अनेक परिवार उसे नाम का स्थायी अंश बना चुके हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी नाम के सबके नाम के साथ राम यह उपाधि चलती चली आ रही है । वैसे भी प्रणाम आशीर्वाद जैसे सामान्य दैनन्दिन काम राम का नाम लेकर किया जाता है । भक्ति और भजन में ही नहीं दुःख, दर्द, पीड़ा, आश्वासन, आश्चर्य आदि सामान्य मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिए उठते, बैठते, चलते-फिरते राम-राम, हरे राम, जय-जय राम, जय-राम जी की, सीताराम और जय श्रीराम- जैसी अभिव्यक्ति बरबस जबान पर आ जाती है। ऐसा होना सहज सामान्य बात है। राम का नाम जीवन के आधार के रूप में जन मन ने अपना लिया है । राम नाम का जप एक आम बात है । निश्चय ही कोटि-कोटि जनों के लिए राम नाम का आकर्षण भारतीय संस्कृति की एक असाधारण घटना है।

लोकमंगल के लिए ही नर शरीर धारण कर राम, राम बनते हैं। राम ऐसे हैं कि सहज में ही सबसे रिश्ता जोड़ लेते हैं। सत्य, त्याग, शौर्य जैसे गुणों के साथ वे परदुःखकातर हैं और किसी का भी दुःख नहीं देख सकते। वे जीवन भर दूसरों का दुःख हरते रहे हैं। राम का भाव भारतीय मानस और प्रज्ञा की कभी न चुकने वाली ऐसी अक्षय निधि और उद्भावना है जो सुख-दुःख, हर्ष-विषाद, युद्ध-शांति और विरक्ति-आसक्ति जैसे द्वंद्वों की स्थितियों में हमारे लिए प्राण वायु की तरह जीने का आधार प्रदान करती है।

राम कथा मनुष्य जीवन की आद्योपांत कथा को अपने में सरस ढंग से पिरो कर राम-लीला सदियों से आम जनों के लिए उत्सुकता, आह्लाद और संवेदना का आश्रय बन कर रंजन करती आ रही है । राम-लीला सामान्य जन को राममय यानी मंगलमय बनाने का उपाय है। प्रायः इनके किरदार स्थानीय समाज के उत्साही सदस्य होते हैं जो नाट्य कर्म में रुचि रखते हैं । जन भागीदारी का यह अद्भुत उदाहरण है । आख़िर हो भी क्यों न ! आज भी जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत यज्ञ-प्रयोजन समेत सारे कार्य राम के नाम के साथ जुड़ चुके हैं । जन्म का सोहर, मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह आदि विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले के मंगलद्योतक लोक -गीतों के नायक के रूप में राम बार-बार आते हैं । राम के जीवन का स्मरण करते हुए उसके साथ अपना तारतम्य बिठाना किसी के लिए भी सहज होता है। आज जब ईर्ष्या, द्वेष, हानि, प्रवंचना, अपयश की भावनाओं, आग्रहों, दुराग्रहों, बाधाओं का रावण हिलोरें ले रहा है श्रीराम से जुड़ कर आम जन ऊर्जा पाता है। उसी के आलोक में उसके सारे रिश्ते अर्थ पाते हैं। राम से जुड़ कर सत्य, पराक्रम, धैर्य और त्याग के मूल्यों का अर्थ समझ में आता है और यह भी कि धर्म के मार्ग पर चल कर ही मानव जीवन को सार्थक किया जा सकता है। रावण पर राम की विजय जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा और अन्याय से मुक्ति के लिए समर्पण का आवाहन है।

(लेखक, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति हैं।)

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