जिंदगी इक सवाल है जिस का जवाब मौत है
मौत भी इक सवाल है जिस का जवाब कुछ नहीं
वो दिखने में किसी फिल्मी हीरो की तरह नजऱ आते थे। बहुत कायदे के मैचिंग कपड़े पहना, खुशबूदार किमाम का पान खाने का शौक, आंखों पे भेतरीन गॉगल लागए बन्दा भोत सोबर और निहायत नफीस इंसान था। ये अंदाज़े बयां था पत्रकार गौतम तिवारी का। इसी 16 जुलाई को बिलासपुर में इनका इंतकाल हुआ। गौतम के जाने की खबर उनके जिस साथी सहाफी ने भी सुनी उसे इस ख़बर पे भरोसा न हुआ। इनकी सहाफत का सफर कोई बीस बरस पहले भोपाल में देशबंधु से शुरु हुआ था। वहां से ये दैनिक भास्कर भोपाल में आये। लिखने पढऩे गीत संगीत, थियेटर में दिलचस्पी के चलते इन्होंने आर्ट एंड कल्चर बीट में वहां शानदार काम किया। ये सिटी भास्कर के इंचार्ज भी रहे। गौतम तिवारी काफी इनोवेटिव सहाफी थे। अंग्रेज़ी और हिंदी पे इनका अधिकार था। आर्ट एंड कल्चर की किसी भी हस्ती की जवाने हयात इन्हें खूब याद रहती। गोया के भाई चलता फिरता रिफरेंस थे। यूं कम लोगों से मिलते जुलते बाकी जिससे भी उनकी पटरी बैठती उसपे दिलो जान से फिदा रहते। भास्कर के बाद ये कुछ अरसा हरिभूमि और दो एक साल पीपुल्स समाचार में भी रहे।
महज 52 बरस की उमर में ये चल बसे। सबसे अफ़सोसनाक बात ये है कि गौतम के सगे बड़े भाई अमिताभ तिवारी का इन्तेकाल पांच छह बरस पहले हुआ था। अमिताभ भी पत्रकार थे। उन्होंने एमपी क्रोनिकल, फ्री प्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया में काम किया। उनके जाने के बाद इनकी माताजी का इन्तेकाल हो गया। हाल ही में 25 जून को गोतम तिवारी के पिता रिटायर्ड आईएएस अफसर एमएम तिवारी भी दुनिया-ए-फानी से कूच कर गए थे। पिता की अस्थि विसर्जन के लिए गौतम इलाहाबाद गए थे। पिता के जाने के 20 दिन बाद गौतम भी अपने पिता, माता और भाई से मिलने उस सफर पे चले गए जहां से कोई लौट कर नहीं आता। कल भदभदा विश्रामघाट पे गौतम का अंतिम संस्कार हुआ। गौतम तिवारी की शरीके हयात स्वाति श्रीवास्तव भोपाल के महिला पॉलिटेक्निक में प्रोफेसर हैं। गौतम के दो बच्चे हैं। बिटिया बीएएलएलबी की तालिबे इल्म है। बेटा अमोघ नवें दर्जे में पढ़ रहा है। उसने जब अपने वालिद को मुखाग्नि दी तो वहां मौजूद परिजनों और दोस्तों की आंखें नम हो गईं। गौतम भाई आपको खिराजे अकीदत।
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