नई दिल्ली। NCP प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार उपमुख्यमंत्री के रूप में रविवार को शिवसेना-भाजपा सरकार में शामिल हो गए। जिसके बाद अब ऐसा लगता है कि चार साल पुरानी महा विकास अघाड़ी (MVA) एक बड़े संकट की ओर बढ़ रही है। एमवीए, जिसकी ताकत 165 विधायकों की थी जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे अब घटकर 74 रह गई है।
2019 के विधानसभा चुनावों के बाद, जब देवेंद्र फडणवीस सरकार बनाने में विफल रहे तो शरद पवार ने कांग्रेस और शिवसेना के साथ गठबंधन करने का बीड़ा उठाया और एमवीए का गठन किया। एकनाथ शिंदे के उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह का झंडा उठाने से पहले ढाई साल तक इसने अच्छा काम किया। फिर 40 शिवसेना विधायकों के समर्थन के साथ शिंदे ने फडणवीस से हाथ मिलाया और सीएम पद की शपथ ली।
हालांकि, हाल के दिनों में विधान परिषद के महत्वपूर्ण चुनावों और पुणे विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार हार गए थे। ऐसे समय में जब ऐसा लग रहा था कि एमवीए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगी, कर्नाटक चुनाव में बीजेपी की हार से इसे दोबारा बल मिला।
खतरे में है MVA का अस्तित्व
कर्नाटक में अपनी शानदार जीत के बाद, जब कांग्रेस ने महाराष्ट्र के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए एक सर्वे कराया तो नतीजों से पता चला कि एमवीए 38 लोकसभा और 180 विधानसभा सीटें जीत सकती है। पर अब 40 शिवसेना विधायकों और इतनी ही संख्या में एनसीपी नेताओं के बाहर निकलने से एमवीए ने अपना महत्व खो दिया है। एनसीपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि निश्चित रूप से एमवीए का अस्तित्व खतरे में है। हमें यकीन नहीं है कि हम संयुक्त रूप से चुनाव लड़ेंगे या नहीं।
कांग्रेस विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट ने कहा कि एकनाथ शिंदे और अजित पवार के विद्रोह के बावजूद, एमवीए जमीनी स्तर पर लोगों का समर्थन जुटाएगा और शिंदे-फडणवीस गठबंधन को हराएगा। उन्होंने कहा, “राजनीतिक इतिहास देखें, दलबदलुओं को कभी भी मतदाताओं ने दोबारा नहीं चुना है।”
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