मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे, कि दाना ख़ाक में मिल कर गुल-ओ-गुलज़ार होता है। डॉ. जवाहर कर्नावट हिंदी ज़बान की खिदमत में दिलोजान से मसरूफ रहते हैं। अगर ये कहा जाए के जवाहर भाई ने हिंदी ज़बान और हिंदी अदब के फऱोग़ के लिए पूरी उमर ही खपा दी है। कौमी […]