उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

उज्जैन में शिप्रा नदी सहित सप्त सागरों की हालत खराब

  • पर्यावरण दिवस विशेष..कैसे सुधरे धार्मिक नगरी का पर्यावरण
  • शहर में सिर्फ खेल मैदानों की जमीन ही कच्ची बाकी सब पर सीमेंट कांक्रीट-नया मास्टर प्लान लागू हुआ तो शहर के बाहर 10 किमी तक नहीं दिखेगा जंगल

उज्जैन। आज विश्व पर्यावरण दिवस है। इस अवसर पर पर्यावरण को सुधारने का संकल्प जगह-जगह लिया जाएगा लेकिन धार्मिक नगरी उज्जैन का पर्यावरण कैसे सुधरे यहाँ तो नदी से लेकर सप्त सागर तक की हालत खराब है और खेल मैदानों को छोड़ दो तो शहर का कोई भी भाग कच्चा नहीं बचा है। विश्व पर्यावरण दिवस पर यदि हम उज्जैन की बात करें तो जिस शिप्रा नदी से हमारी उज्जैन की पहचान होती है। वह शिप्रा नदी इस समय अपने सबसे बुरे हाल में दिखती है। शिप्रा नदी में गंदे नाले लगातार मिल रहे हैं। इनको रोकने की कोशिश भी प्रशासन पिछले 25 से अधिक सालों से कर रहा है लेकिन सफलता नहीं मिली है। अभी कुछ दिनों पूर्व ही रामघाट जैसे पवित्र क्षेत्र में भी गंदे नालों का पानी मिलता रहा और प्रशासन देखता रहा। आज की स्थिति में शिप्रा नदी का जल सीधे पीने लायक भी नहीं बचा है, वहीं शहर के सप्तसागर की बात करें तो मात्र उंडासा का रत्नाकर सागर और राम जनार्दन मंदिर के पास का विष्णु सागर ही ठीक स्थिति में है। बाकी के सागर यदि क्षीरसागर की बात करें तो यहाँ पर आसपास के मकानों का सीवरेज का पानी तालाब में सीधा मिल रहा है। इसके निदान का अभी तक कोई उपाय नगर निगम ने नहीं किया है, वहीं गोवर्धन सागर जो कि निकास चौराहे के पास है इसकी कहानी सबको पता है।



एनजीटी से लेकर जिला प्रशासन ने यहाँ पर अतिक्रमण हटाने की बात कही थी लेकिन अभी तक अतिक्रमण नहीं हट पाया है। यह सागर साफ जरूर हो गया लेकिन फिर से अतिक्रमण होने के कारण इसकी स्थिति वापस बिगडऩे लगी है, वहीं रुद्रसागर में तो बेगम बाग का गंदा नाला हमेशा मिलता है और बारिश के दौरान तो यह ओवरफ्लो होता है तो सीधा रामघाट में पानी आता है। 5 करोड़ की पाइप लाइन डाली गई लेकिन इस समस्या का हल भी अभी तक नहीं हो पाया है, वहीं नलिया बाखल स्थित पुष्कर सागर की जमीन को अतिक्रमणकर्ताओं ने घेर लिया है। यह सागर अब 30 बाई 50 की बावड़ी बनकर रह गया है। इसके अलावा पुरुषोत्तम सागर की स्थिति थोड़ी ठीक है। यहाँ पर आसपास प्रतिदिन लोग योग करने और घूमने आते और नगर निगम ने यहाँ की स्थिति सुधारी है। इसके अलावा शहर में पर्यावरण को बिगाडऩे का दूसरा सबसे बड़ा कारण पूरे शहर में सीमेंट कांक्रीट करना भी है।नगर निगम के पार्षदों एवं जनप्रतिनिधियों ने शहर में खेल मैदानों और कुछ सार्वजनिक स्थानों को छोड़ दिया जाए तो 1 इंच जमीन भी कच्ची नहीं छोड़ी है। ऐसे में बारिश का पानी धरती के अंदर कैसे समाएगा यह सबसे बड़ा विषय है। इसी के चलते उज्जैन में भी अब तापमान बढऩे लगा है। इसके अलावा वर्तमान में जो नया मास्टर प्लान शहर में लागू होने वाला है वह यदि लागू हो गया तो आने वाले दिनों में शहर के आसपास 10 किलोमीटर तक जंगल और हरे पेड़ पौधे नहीं दिखेंगे, सिर्फ सीमेंट कांक्रीट और बड़े मकानों के जंगल दिखाई देंगे।

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