इंदौर न्यूज़ (Indore News)

खुद फटेहाल हैं टंट्या भील के वंशज

जिन वंशजों को सर पर बिठाया उनमें असली-नकली का झगड़ा… 50 से ज्यादा परिवार रहते हैं जन्मस्थली बड़दाअहीर में
इन्दौर।  जिस टंट्या भील (Tantya Bhil) के नाम पर प्रदेश सरकार ने पातालपानी (Patalpani) से लेकर इन्दौर के नेहरू स्टेडियम (Nehru Stadium) में करोड़ों रुपए खर्च कर भव्य समारोह (Grand Ceremony) आयोजित किया और बलिदान दिवस (Sacrifice Day) मनाते हुए ढेरों योजनाएं भी घोषित कर दीं, उन्हीं के वंशज (Descendants) आज भी फटेहाल ही हैं। 50 से अधिक परिवार टंट्या भील (Tantya Bhil)  की जन्मस्थली बड़दाअहीर ( Barda Ahir) और अन्य आसपास के गांवों में रहते हैं। इनमें भी असली और नकली का झगड़ा चला आ रहा है। कल भी आयोजन के दौरान यह विवाद सामने आता रहा।


समूचा आदिवासी समाज (Tribal Society)इस बात को लेकर भौचक है कि अचानक शिवराज सरकार (Shivraj Sarkar) का टंट्या भील (Tantya Bhil) के प्रति प्रेम कैसे उमड़ आया। यहां तक कि उनके वंशजों को इन्दौर लाया गया। वे भी भौचक ही नजर आए। अग्निबाण प्रतिनिधि ने उनके कुछ वंशजों से स्टेडियम पर आयोजन के बाद चर्चा की तो उन्होंने कहा कि सालों से नेताओं के आश्वासन ही मिलते रहे हैं। आज भी परिवार के लोग अधिकांश कच्चे घरों में रहते हैं। इतना ही नहीं कुछ सदस्यों के पास थोड़ी बहुत खेती-बाड़ी है और बाकी तो मजदूरी (Wages) करके ही पेट पालते हैं। टंट्या भील (Tantya Bhil)  के नाम पर करोड़ों रुपए की योजनाएं मुख्यमंत्री ने घोषित की और हर साल बलिदान दिवस धूमधाम से मनाने का निर्णय लिया और पेसा एक्ट से लेकर पट््टे बांटने जैसी कई सौगातें भी दे डालीं, मगर टंट्या भील के वंशजों (Descendants) की सुध आज तक नहीं ली गई। इतना ही नहीं उनके असली वंशज कौन हैं, इसको लेकर भी रिश्तेदारों में विवाद कम नहीं है। दरअसल जब से सरकार ने टंट्या भील (Tantya Bhil)  में रुचि दिखाई और उनके परिवार की पूछपरख शुरू होने लगी, तब से ही असली और नकली का झगड़ा और बढ़ गया। कल भी पातालपानी से लेकर स्टेडियम के आयोजनों में रिश्तेदारों के बीच का झगड़ा देखा गया। आगे कौन बैठे और किसका सम्मान पहले हो, इसको लेकर सदस्यों में नाराजगी भी देखी गई।


हमारा इस्तेमाल सिर्फ राजनीतिक ही होता आया, बोले सबसे बुुजर्ग सदस्य
टंट्या भील (Tantya Bhil) का एक ही बेटा था और उससे ही आगे का वंश चला। परिवार के सबसे बुजुर्ग सदस्य रूपचंद नत्थु सिरसाटे का कहना है कि हमेशा नेताओं ने हम लोगों का राजनीतिक (Political) इस्तेमाल ही किया है। हर बार चुनाव (Election) के दौरान हमारी पूछपरख होती है, उसके बाद कोई पलटकर नहीं आता। हम सब लोग मेहनत-मजदूरी कर अपना पेट पालते हैं। सालों से हमें कोई सरकारी मदद नहीं मिली है।

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