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त्योहारी सीजन में ई-कॉमर्स कंपनियों का मायाजाल

– डॉ. रमेश ठाकुर

मौसम त्योहारी है। लोगों का खरीदारी करना स्वाभाविक है। ग्राहक घर बैठे ही सस्ता माल खरीदें, इसको लेकर ‘ई-कंपनियों’ ने जाल बिछाया है। कंपनियां तरह-तरह के उत्पाद में ऑफर देकर ग्राहकों को ललचा रही हैं। लेकिन यहां ग्राहकों को थोड़ा सावधान और सतर्क होना होगा, क्योंकि ऑनलाइन खरीदारी का मतलब ऑनलाइन ठगी भी हो गया है। समूचे भारत में इस वक्त ऑनलाइन ठगी का मुद्दा गरमाया हुआ है। ई-भुगतान के जरिए हमारा डेटा आसानी से चोरी हो रहा है। इंटरनेट से संचालित ई-कॉमर्स कंपनियां सस्ते और लुभावने लालच देकर धीरे-धीरे हमारे पारंपरिक बाजारों को कब्जाने की फिराक में हैं। करीब आधे से ज्यादा बाजार पर इन्होंने कब्जा कर भी लिया है। इंटरनेट की आड़ लेकर वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने-बेचने में ई-कॉमर्स कंपनियों ने भारतीय उपभोक्ताओं पर ऐसी छाप छोड़ी हैं जिससे ग्राहक उनकी ओर खिंच रहे हैं। पर, अब ग्राहक सस्ते दामों का गणित समझने लगे हैं। ई-कॉमर्स कंपनियां सस्ते सौदे के नाम पर जमकर लूटपाट मचा रही हैं।


त्योहारों में ग्राहकों को फंसाने के लिए इन कंपनियों ने चारों ओर अपना जाल बिछाया हुआ है। दो अव्वल ऑनलाइन कंपनियां फ्लिपकार्ट और अमेजन ने ग्राहकों को लोक-लुभावने लालची ऑफर दिए हैं। ये ऑफर बाजार में उपलब्ध तकरीबन सभी वस्तुओं पर हैं। इसके पीछे कंपनियों की चालाकी और धोखाधड़ी भी छिपी होती है, जो खरीदारी के करते वक्त ग्राहक समझ नहीं पाते। कंपनियां ग्राहकों को दो तरीकों से ठगती हैं। एक तो सस्ता ऑफर देकर रद्दी किस्म का माल देती हैं, वहीं दूसरा ग्राहकों से पैसे डिजिटल तरीके से लेती हैं, यानी ऑनलाइन? जिससे कंपनियां उनकी निजता पर भी चुपके से प्रहार करती हैं। इससे ग्राहकों का डेटा आसानी से चोरी हो जाता है। डेटा चोरी का मुद्दा भी इस वक्त गर्म है। कई बार तो ऐसा भी प्रतीत होता है कि ई-कॉमर्स कंपनियों और साइबर ठगों के बीच डेटा चोरी को लेकर सांठगांठ है।

बहरहाल, ई-कॉमर्स कंपनियों ने अब और विस्तार कर लिया है। सिर्फ बेचने-खरीदने तक ही सीमित नहीं रहीं। ई-बैंकिंग, ई-शॉपिंग व ई-बिजनेस इत्यादि क्षेत्रों पर भी ई-कॉमर्स कंपनियों ने कब्जा कर लिया है। हालांकि इससे उत्पादकों एवं विक्रेताओं को वस्तुओं एवं सेवाओं के विश्वव्यापी बाजार जरूर मिले है। पर, व्यापारिक सूचनाओं के आदान-प्रदान और क्वालिटी में भारी कटौती भी हुई है। दुखद पहलू ये है कि ई-कॉमर्स क्षेत्र में अब धीरे-धीरे वृद्धि के साथ, ई-कॉमर्स कंपनियों में धोखाधड़ी का खतरा तेजी से बढ़ा है। समय की दरकार है कि इन कंपनियां पर अंकुश लगना चाहिए, वरना इनकी मनमानी और बढ़ेगी। केंद्र सरकार और राज्य सरकारें बिना देर किए ऑनलाइन संगठन के धोखेबाजों पर चाबुक चलाएं। उनकी दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों को रोकने के लिए मजबूत समाधान और रणनीति बनाने की दरकार है। सरकारी और सामाजिक सतर्कता और सक्रियता नहीं हुई तो इनका खेल बदस्तूर जारी रहेगा। फिलहाल केंद्र सरकार ने डार्क पैटर्न अपनाने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए एक गाइडलाइन जारी की है जिससे इन पर नकेल कसी जाएगी। डार्क पैटर्न का मतलब होता है ‘अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस’ यानी इंटरनेट पर डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल करके गलत तरीकों से ग्राहकों को प्रभावित करना और ऐसा करने पर 10 लाख के जुर्माने का प्रावधान? सरकार ने ये जिम्मेदारी उपभोक्ता मंत्रालय के सचिव रोहित सिंह को सौंपी है। वह खुद स्वीकारते हैं कि मामला बहुत पेचीदा है। फिर भी सरकार को ग्राहकों का ख्याल है। सरकार एक ऐसा नियम बनाने जा रही है जिससे कंपनियां ग्राहकों को मूर्ख नहीं बना सकेंगी।

भारत में ई-कॉमर्स कंपनियों का जब आगमन हुआ, तब लगा कि इन्होंने परेशानियों को कम किया है। भागदौड़ भरी खरीदारी के झंझटों से निजात दिलवाया दिया है। लेकिन बाद में पता चला कि शुरुआत में ये कंपनियां अपना पैर जमा रही थीं, अपनी जमीनें तैयार की रही थीं। लेकिन अब उनका असली रूप दिखना आरंभ हो चुका है। कुछ दिन पहले की ही बात है जब दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र के रहने वाले एक ग्राहक ने सस्ता समझकर अमेजन से एक फोन खरीदा, डिलीवरी घर पहुंची तो उसमें फोन के जगह ईंट का टुकड़ा मिला। पीड़ित ने स्थानीय पुलिस थाने में शिकायत भी की, लेकिन समाधान नहीं निकला। ऐसी घटनाएं समूचे भारत में हो रही हैं। ऐसा ही पिछले सप्ताह पंजाब के बठिंडा में हुआ। एक अध्यापक ने फ्लिपकार्ट के माध्यम से कुछ मंगवाया, भुगतान ऑनलाइन किया, लेकिन दूसरे दिन उनका पूरा बैंक खाता चोरों ने साफ कर दिया। इस तरह की बढ़ती घटनाओं से पुलिस-प्रशासन भी सकते में है। इन ठगों का पुलिस को आसानी से सुराग नहीं मिल पाता। ठग पुलिस की पहुंच से बहुत दूर होते हैं।

फ्लिपकार्ट और अमेजन की तुलना करें तो भारत में फ्लिपकार्ट पहले और अमेजन दूसरे पायदान पर है। विगत वर्षों में कुछ और कंपनियां भी सक्रिय हुईं लेकिन इन दोनों ने किसी को बाजार में नहीं टिकने दिया। ये कंपनियां सरकार के खजाने को भी खूब भर रही हैं। जीएसटी से लेकर तरह-तरह के टैक्स बिना कहे देती हैं। इन पर सरकारी चाबुक नहीं चलने का एक कारण यह भी हो सकता है। फ्लिपकार्ट और अमेजन दोनों ने कभी अपनी शुरुआत ऑनलाइन बुक स्टोर से की थी। देखते ही देखते अमेजन अमेरिका की सबसे बड़ी और फ्लिपकार्ट भारत की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी बन गई। दोनों में एक निवेशक कंपनी टाइगर ग्लोबल कॉमन है। वॉलमार्ट से पहले अमेजन भी फ्लिपकार्ट को खरीदने की दौड़ में शामिल थी। उसने तीन बार फ्लिपकार्ट को खरीदने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाई। बहरहाल, ग्राहकों को इनसे सतर्क रहने की जरूरत है। खुद से जांचना-परखना होगा। वरना, सस्ते लालच के चलते लेने के देन पड़ सकते हैं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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