उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

दक्षिण के नेता बाहर भाग गये.. उत्तर में भीतरघात कर दिया तो कैसे जीतती कांग्रेस

  • एक बार फिर उज्जैन उत्तर और दक्षिण में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा..और उसके नए चेहरे भी कोई कमाल नहीं दिखा पाए

उज्जैन। भाजपा और कांग्रेस में एक ही अंतर है कि भाजपा के पास वफादार कार्यकर्ता हैं और कांग्रेस के पास दोगले नेता..उज्जैन उत्तर में माना जा रहा था कि माया त्रिवेदी चुनाव जीत सकती है और जब टिकट की घोषणा हुई थी तो कांग्रेसी खेमे में उत्साह का माहौल था लेकिन धीरे-धीरे इस क्षेत्र के कांग्रेस नेताओं ने अपनी आदत के अनुसार खेल दिखाना शुरू किया और आखिरकार कल हुई मतगणना में परिणाम सबके सामने रहा..दक्षिण में भी जमकर मुँह दिखाई हुई।
एक तरह से जो परिणाम आया है उससे लग रहा है कि उत्तर विधानसभा का चुनाव एकतरफ़ा था और भाजपा प्रत्याशी अनिल जैन कालूहेड़ा ने 27513 वोटों से बड़ी जीत दर्ज की। कारण यही रहा कि भाजपा ने अपने रूठे नेताओं को मना लिया और कार्यकर्ताओं ने काम किया, जबकि कांग्रेस में जो टिकट माँग रहे थे वह मुँह दिखाई कर रहे थे और पर्दे के पीछे भाजपा की मदद कर रहे थे। घर के भेदियों ने मिलकर लंका ढहा दी, तो इसका दोष किसी दूसरे को देने से क्या फ़ायदा। पूर्व में भी इसी तरह कांग्रेस के नेता कांग्रेस को हराते रहे हैं। उज्जैन उत्तर में कांग्रेस के नेताओं ने जमकर भीतरघात किया और अब इसकी शिकायत होगी तथा कार्रवाई की नौटंकी चलेगी और थोड़े दिन बाद पार्टी की पीठ में छुरा घोंपने वालों की ससम्मान वापसी हो जाएगी।


आश्चर्य की बात है कि भाजपा ने कांग्रेस की कमजोरियों का भरपूर लाभ उठाया, लेकिन कांग्रेस के नेता भाजपा को देखकर कुछ भी नहीं सीखना चाहते और ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ता विहीन संगठन हो गया है। चुनाव परिणाम से एक बात और स्पष्ट दिख रही है की बड़ी हिन्दू आबादी ने कांग्रेस को वोट देना बंद कर दिया है और माया त्रिवेदी की बड़ी हार ने भी यही संदेश दिया है। पूरे चुनाव के दौरान माया त्रिवेदी को मुसलमानों का समर्थक और हितैषी बताकर भाजपा ने मतदाताओं का समर्थन जुटाया। उज्जैन उत्तर क्षेत्र में ब्राह्मण समुदाय के भी 50 हज़ार से अधिक वोट हैं तो क्या जाति का कार्ड भी नहीं चल पाया और ब्राह्मणों ने भी अपने समाज की महिला प्रत्याशी को वोट देने में संकोच किया। बात दक्षिण विधानसभा क्षेत्र की, की जाए तो यहाँ पर कांग्रेस के नेता अपनी ही पार्टी के उम्मीदवारों को कई चुनावों से हराते आ रहे हैं। इस बार दक्षिण से जो नेता टिकट माँग रहे थे जब उन्हें नहीं मिला तो वे बाहर निकल गए और बताया गया कि किसी दूसरी विधानसभा में प्रचार कर रहे हैं। अब सवाल उठता है कि दूसरी विधानसभा में इन नेताओं को कितने लोग पहचानते हैं, जबकि दक्षिण में ही यदि दिल से काम करते तो 5 हज़ार वोट चेतन यादव को दिलवा सकते थे। यहाँ भी हिन्दू मुस्लिम कार्ड जमकर चला और भाजपा प्रत्याशी मोहन यादव विजयी रहे। दक्षिण क्षेत्र के बड़े कांग्रेस नेता तो जनसंपर्क तक में मुँह दिखाने के लिए नहीं आए तो ऐसे में कांग्रेस को जीत के सपने देखना छोड़ देना चाहिए। एक बात कहनी होगी कि कांग्रेस के नए चेहरे चेतन यादव ने दक्षिण में कड़ी टक्कर दी है। इस तरह कांग्रेस जिन सीटों पर जीत के दावे कर रही थी, वहीं शहर की दोनों सीटें वह हार गई। अब आने वाले 5 सालों में कांग्रेस की हालत संगठन स्तर पर उज्जैन में और खऱाब होने वाली है। इन चुनाव के परिणामों ने एक बात साफ़ कर दी है कि मतदाता जिन्हें वोट देना होता है उसे ही देता है।

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