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कोरोना से मौतों का सवाल, WHO की रिपोर्ट पर क्यों भड़का भारत? क्या कहते हैं जानकार


नई दिल्ली। भारत में कोरोना वायरस संक्रमण से मौत को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर भारतीय जानकारों ने नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने ‘सभी के लिए एक ही नीति’ पर निराशा जताई। साथ WHO के गणना करने के तरीके पर भी सवाल उठाए हैं। संगठन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि दो सालों में दुनियाभर में करीब 1.5 करोड़ लोगों की मौत हुई है। जबकि, भारत में संक्रमण के चलते 47 लाख लोगों ने जान गंवाई।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव, नीति आयोग के सदस्य वीके पॉल और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने WHO की रिपोर्ट आपत्ति जताई। साथ ही जानकारों ने इसे दूर्भाग्यपूर्ण बताया है।

डॉक्टर भार्गव ने कहा, ‘जब हमारे यहां कोविड से मौतें हो रहीं थी, तो हमारे पास मौतों की परिभाषा नहीं थी। यहां तक की WHO के पास भी नहीं थी। अगर कोई आज संक्रमित हो और दो सप्ताह बाद मर जाए, तो क्या वह कोविड से मौत होगी? या उसकी मौत 2 महीने या 6 महीने बाद हो, तो क्या वह कोविड से मौत होगी?’ उन्होंने कहा, ‘इस परिभाषा के लिए हमने सभी डेटा को देखा और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कोविड-19 जांच में संक्रमित होने के बाद 95 फीसदी मौतें पहले 4 हफ्तों में हुईं। ऐसे में मौत की परिभाषा के लिए 30 दिनों का कट-ऑफ रखा गया।’


उन्होंने मॉडलिंग के बजाय व्यवस्थित डेटा की बात पर जोर दिया है। उन्होंने कहा, ‘हमारे पास इतनी बड़ी मात्रा में डेटा है। हमारे पास 1.3 बिलियन में से पहले डोज का टीकाकरण करा चुके 97-98 फीसदी का डेटा है और करीब 190 करोड़ वैक्सीन डोज का इस्तेमाल हो चुका है। यह सब व्यवस्थित तरीके से जुटाया गया है। एक बार हमारे पास व्यवस्थित डेटा होता है, तो हमें मॉडलिंग, एक्स्ट्रापोलेशन्स और प्रेस रिपोर्ट्स लेने और उनका इस्तेमाल मॉडलिंग में करने की जरूरत नहीं है।’

रणदीप गुलेरिया ने भी रिपोर्ट पर आपत्ति जताई और कहा कि भारत में जन्म और मृत्यु पंजीकरण की बहुत मजबूत प्रणाली है और वे आंकड़े उपलब्ध हैं लेकिन डब्ल्यूएचओ ने उन आंकड़ों का उपयोग ही नहीं किया है।

पॉल ने डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि भारत वैश्विक निकाय को पूरी विनम्रता से और राजनयिक चैनलों के जरिए, आंकड़ों और तर्कसंगत दलीलों के साथ स्पष्ट रूप से कहता रहा है कि वह अपने देश के लिए अपनाई गई कार्यप्रणाली से सहमत नहीं है। उन्होंने कहा, ‘…अब जबकि सभी कारणों से अधिक मौतों की वास्तविक संख्या उपलब्ध है, केवल मॉडलिंग आधारित अनुमानों का उपयोग करने का कोई औचित्य नहीं है।”

पॉल ने कहा, ‘… दुर्भाग्य से, हमारे लगातार लिखने, मंत्री स्तर पर संवाद के बावजूद, उन्होंने मॉडलिंग और धारणाओं पर आधारित संख्याओं का उपयोग चुना है।’ उन्होंने कहा कि भारत जैसे आकार वाले देश के लिए इस तरह की धारणाओं का इस्तेमाल किया जाना और ‘हमें खराब तरीके से पेश करने से सहमत नहीं है।’
राष्ट्रीय टीकाकरण तकनीकी परामर्श समूह (एनटीएजीआई) के अध्यक्ष एन के अरोड़ा ने रिपोर्ट को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि कई विकसित देशों की तुलना में भारत की मृत्यु दर (प्रति दस लाख) सबसे कम है।

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