आचंलिक

सहारा में जमा रुपया मिलने से पूर्व की नियमावली छोटे निवेशकों की जेब पर भारी

नागदा। एक समय शहर में सबसे अधिक बिजनेस करने वाली कम्पनी सहारा इंडिया में अचानक कानूनी अड़चन के चलते भुगतान पिछले कई वर्षों से लगभग बंद के समान हो गया था। तब से ही शहर और आसपास के हजारों छोटे-बड़े सभी निवेशकों का रुपया बैंक में फंस गया।
कई बार स्थानीय स्तर पर विवाद और आंदोलन के बाद भी मामला सुप्रीम कोर्ट में होने के कारण कोई हल नहीं निकल पाया। अब जबकि सरकार के दखल और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश से निवेशकों का पैसा निकलने की उम्मीद जगी पर इस पर लागू गाइडलाइन छोटे गरीब निवेशकों की जेब पर भारी पड़ रही है। हाल ही में जारी निर्देशों के अनुसार निवेशकों का आधार कार्ड, बैंक अकाउंट और पेन कार्ड होना जरूरी है तथा उनका आपस में लिंक होना भी आवश्यक है। यही निर्देश छोटे निवेशक जैसे सब्जी वाले, ठेले वाले, घरेलू महिलाएँ जिन्होंने उस दौरान छोटी रकम एकत्र करने की चाह में प्रतिदिन कलेक्शन के रूप में एजेंट को किश्त जमा की थी पर भारी पड़ रहे हैं।



जिनके के पास पेनकार्ड नहीं है उन्हें पेनकार्ड बनवाना पड़ रहा है। उसके बाद पेनकार्ड को आधार से लिंक कराने के लिए सरकारी फीस (पेलेंटी) एक हजार और सेवा शुल्क भी जमा करना पड़ रहे है। गौरतलब है कि सहारा के निवेशक बड़े-बड़े व्यापारियों के अलावा सड़क पर व्यापार करने वाले निचले स्तर के व्यापारी और घरेलू महिलाएँ भी थे। व्यापारियों को तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा, परंतु छोटे निवेशकों को अपने कुछ हजार रुपए मिलने की उम्मीद में 1200 से 1500 रुपए और खर्च करना पड़ रहे है। ये ऐसे निवेशक हैं जिन्हें कभी पेनकार्ड इंकमटैक्स से कुछ लेना-देना नहीं रहा है न ही वो इस श्रेणी में आते हैं। ऐसे हजारों स्थानीय और पूरे देश में लाखों निवेशक हो सकते हैं जिन्हें बिना किसी जुर्म के इस सरकारी पेलेंटी की सजा भुगतना पड़ रही है जो कि इन लोगों की जेब पर भारी पड़ रही है।

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