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मणिपुर की घटना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछे तीखे सवाल, भीड़ को देखती रही पुलिस

नई दिल्ली (New Delhi)। मणिपुर के वायरल वीडियो के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (SC) में सुनवाई करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने सरकार को जमकर फटकार लगाते हुए तीखे सवाल दागे। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि जब घटना 4 मई को हुई तो एफआईआर 18 मई को क्यों दर्ज की गई? चार मई से 18 मई तक पुलिस क्या कर रही थी? उन्होंने कहा कि वीडियो के सामने आने के बाद यह मामला सामने आया, लेकिन यह एकमात्र घटना नहीं है, जहां महिलाओं के साथ मारपीट या उत्पीडऩ किया गया है।

उन्होंने पूछा कि तीन मई के बाद से, जब मणिपुर में हिंसा शुरू हुई थी, ऐसी कितनी एफआईआर दर्ज की गई हैं। चीफ जस्टिस ने आप इस बात का हवाला देकर पल्ला नहीं झाड़ सकते हैं कि देश के बाकी राज्यों में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं। इसके अलावा सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि यह मामला निर्भया जैसा नहीं है। पीडि़तों के बयान हैं कि उन्हें पुलिस ने भीड़ को सौंपा था। यह निर्भया जैसी स्थिति नहीं है, जिसमें एक बलात्कार हुआ था, वह भी काफी भयावह था, लेकिन इससे अलग था। यहां हम प्रणालीगत हिंसा से निपट रहे हैं, जिसे आईपीसी एक अलग अपराध मानता है। उधर, मणिपुर की दो पीडि़त महिलाओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि महिलाएं मामले की सीबीआई जांच और मामले को असम स्थानांतरित करने के खिलाफ हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मणिपुर में दो महिलाओं से सामूहिक दुष्कर्म के बाद उन्हें निर्वस्त्र परेड कराना भयानक अपराध है। शीर्ष अदालत ने कहा, पुलिस ने दोनों महिलाओं को उग्र भीड़ को सौंप दिया और चुपचाप खड़ी रही। यह सुनने के बाद हम नहीं चाहते कि पुलिस मामले की जांच संभाले। कोर्ट ने मणिपुर पुलिस से अब तक दर्ज प्राथमिकियों, उनमें उठाए कदमों की पूरी जानकारी मंगलवार की सुनवाई में रखने को कहा। कोर्ट ने संकेत दिया कि केंद्र व मणिपुर सरकार के वकीलों को सुनने के बाद वह वहां स्थिति की निगरानी के लिए एसआईटी या पूर्व जजों की समिति गठित कर सकता है।

सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ वीडियो में नजर आने वाली दोनों महिलाओं की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीड़िताओं ने मामले की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी) से कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
पीठ ने कहा, हमें छह हजार एफआईआर को अलग-अलग श्रेणी में बांटने की जरूरत पड़ेगी। कितनी जीरो एफआईआर हैं, कितनी गिरफ्तारियां हुई, कितने न्यायिक हिरासत में हैं, कितने मामले 156(3) के तहत दर्ज किए गए, कितने धारा 164 के बयान दर्ज किए गए और कितनी कानूनी सहायता दी जा रही है, इन सभी बातों को जानने की जरूरत है। शीर्ष कोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए व्यापक तंत्र विकसित करने का आह्वान किया। पीठ ने एसआईटी गठन की स्थिति में उसकी संरचना पर राज्य और केंद्र सरकारों की राय भी मांगी। पीठ ने कहा, हमें अपने-अपने नाम भी दें और याचिकाकर्ताओं के सुझाए नामों पर भी राय दें।

मणिपुर की बर्बरता को दूसरे राज्यों से नहीं जोड़ सकते
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हिंसाग्रस्त मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ बर्बर हिंसा अभूतपूर्व है। इसे पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और केरल जैसे राज्यों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घटनाओं से जोड़कर नहीं देख सकते। शीर्ष अदालत ने वकील व भाजपा नेता बांसुरी स्वराज की विपक्ष शासित इन राज्यों में इसी तरह की घटनाओं से जुड़ी हस्तक्षेप याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया।

सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष वकील व भाजपा नेता बांसुरी स्वराज ने कहा, बंगाल में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं पर भी विचार करने की जरूरत है और जो तंत्र विकसित करने की मांग की गई है उसे अन्य राज्यों पर भी लागू किया जाना चाहिए। भारत की सभी बेटियों का निवेदन है कि उनकी रक्षा होनी चाहिए। इस पर पीठ ने कहा, क्या आप एक पल के यह कह रही हैं कि भारत की सभी बेटियों के लिए कुछ करें या किसी के लिए कुछ भी न करें? पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध होते हैं। यह हमारी सामाजिक वास्तविकता का हिस्सा है। वर्तमान में, हम ऐसी किसी चीज से निपट रहे हैं जो अभूतपूर्व की है।

सरकार के कदम से तय होगा हम हस्तक्षेप करेंगे या नहीं
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, मणिपुर हिंसा मामले में हमारे हस्तक्षेप की सीमा इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार ने अब तक क्या किया है। यदि अदालत संतुष्ट है कि अधिकारियों ने पर्याप्त रूप से काम किया है, तो वह बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करेगी। पीठ ने कहा, मान लीजिए कि एक महिला मणिपुर के राहत शिविर में है, जो अपना बयान दर्ज कराने जा रही है। हम उसे मजिस्ट्रेट अदालत में जाकर (धारा) 164 के तहत बयान दर्ज कराने के लिए नहीं कह सकते। हमें अनिवार्य रूप से यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय की प्रक्रिया उसके दरवाजे तक जाए, उसका बयान दर्ज करे, उसका बयान उन स्थितियों में दर्ज करे जो बयान दर्ज करने के लिए अनुकूल हों।



जिन्होंने सब कुछ गंवा दिया, उन्हें राहत की जरूरत
कपिल सिब्बल (पीड़ित महिलाओं के वकील) : पुलिस अपराध को अंजाम देने वालों के साथ मिली हुई है। वही दोनों महिलाओं को भीड़ के पास ले गई। सीबीआई जांच से भरोसा पैदा नहीं होगा। जांच एसआईटी से होनी चाहिए।
वकील इंदिरा जयसिंह : विश्वास निर्माण का एक तंत्र लागू किया जाना चाहिए, ताकि ऐसी सभी दुष्कर्म पीड़िताएं अपनी बात कहने के लिए आगे आएं।
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी : कोर्ट जो जानकारी मांग रहा है, उसे उपलब्ध कराने के लिए और समय दिया जाए।
पीठ : समय खत्म हो रहा है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता : सभी जानकारी एक दिन में देना तार्किक रूप से संभव नहीं। करीब छह हजार एफआईआर दर्ज हैं।
पीठ : एफआईआर ऑनलाइन है। जिन्होंने प्रियजनों समेत सब कुछ गंवाया है, सरकार को उन्हें राहत देने की जरूरत है। राज्य सरकार दर्ज जीरो एफआईआर की संख्या बताए। यह भी जानना चाहते हैं कि पुनर्वास के लिए क्या पैकेज दिया जा रहा है?

मणिपुर के राहत शिविरों में सुविधाएं नहीं: विपक्ष
वरिष्ठ कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, ‘इंडिया’ गठबंधन के सांसदों ने राज्य का दौरा करने के बाद वहां के लोगों से उनका दर्द सुना जो दिल दहलाने वाला है। उन्होंने दावा किया कि मणिपुर में करीब 10,000 मासूम बच्चों सहित 50,000 से अधिक लोग अपर्याप्त सुविधाओं वाले राहत शिविरों में हैं, खासकर महिलाओं के लिए सुविधाओं का अभाव है, लोग दवाओं और भोजन की कमी का सामना कर रहे हैं।
इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने सोमवार को धमकी दी कि अगर राज्य सरकार मोरेह से पुलिसकर्मियों को तुरंत वापस बुलाने में विफल रही तो मणिपुर के सभी आदिवासी जिलों में आंदोलन शुरू किया जाएगा।

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