ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

 

पटवारी खुद बना रहे दूरी या कर दिया है दूर?
कांग्रेस की राजनीति में सवाल उठने लगे हैं कि विधानसभा से निलंबन के बाद जीतू पटवारी को उनकी ही पार्टी के नेताओं ने सहयोग नहीं किया और वे अपनी ही पार्टी के लिए अंजाने हो गए। पटवारी भले ही प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हो, लेकिन उनके समर्थन में किसी नेता का न आना, उन पर प्रश्नचिन्ह भी लगा रहा है। अभी एक तरह से पटवारी शहर कांग्रेस की राजनीति से खुद को अलग-थलग रखे हुए हंै। इसमें उनकी क्या राजनीतिक रणनीति है, ये वे खुद ही जाने, लेकिन इस तरह का व्यवहार कांग्रेसियों के गले नहीं उतर रहा है। कोई कह रहा है कि पटवारी दूर की कौड़ी देख रहे हैं और वे दमदार किरदार में नजर आएंगे, लेकिन जिस तरह से अभी पटवारी का माहौल बना है, उसने कई सवालों को जन्म दे दिया है। पटवारी की तेज राजनीतिक चाल को धीमा करने और उन्हें डेमेज के चक्कर में कुछ नेताओं ने सक्रियता बढ़ा दी है। इसके पहले पटवारी अपने भाई भरत को विधानसभा में आगे कर रहे थे, लेकिन अब वे स्वयं ही आगे नजर आ रहे हैं।


यहां भी नहीं मानी कांग्रेस नेत्रियां
संविधान बचाओ दिवस पर तिरंगा यात्रा निकाली गईं, लेकिन अपने आपको आगे रखने की होड़ में कुछ कांग्रेस नेत्रियां आपस में लड़ पड़ी। बात वरिष्ठता की थी और पहले कौन भाषण दें, इसको लेकर तू-तू मैं-मैं हो गई। बड़े नेताओं ने इशारा किया कि चुप हो जाओ, वरना यहां मीडिया भी हैं। बाद में कुछ नेत्रियां तो यह कहती रही कि भैया ने मना कर दिया था, नहीं तो आज उसको बता देती कि मैं क्या हूं?

पोती के साथ नजर आए कांग्रेस के नेहरूजी
कांग्रेस के नेहरूजी के रूप में जाने जाने वाले वरिष्ठ नेता कृपाशंकर शुक्ला आजकल अपनी पोती शंभवी शुक्ला के साथ नजर आ रहे हैं। शंभवी उनके पुत्र स्व. अतुल शुक्ला की बेटी है। वैसे शंभवी लंबे समय से कांग्रेस में सक्रिय हैं, लेकिन राजनीति में मैदानी और व्यावहारिक ज्ञान होना बहुत जरूरी है, इसलिए शायद शुक्ला शंभवी को साथ रखकर राजनीति का ककहरा सिखा रहे हैं।


पांच नंबर में एक और दावेदार की एंट्री
किसी समय हिन्दू नेताओं में फायर ब्रांड नेता रहे प्रदीप नायर फिर से इंदौर में राजनीतिक पकड़ मजबूत कर रहे हैं, विशेषकर पांच नंबर क्षेत्र में सक्रिय हैं। युवा मोर्चा में प्रदेश की राजनीति में उन्हें ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ और अब पार्टी ने उन्हें सांस्कृतिक प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, लेकिन अब उनका समय ज्यादा इंदौर में ही बीत रहा है। कारण समझ आने लगा है। उन्होंने कल अपने जन्मदिन को नववर्ष मिलन का नाम देकर एक तरह से शक्ति प्रदर्शन कर बताया कि पांच नंबर में टिकट के जो दावेदार सामने आ रहे हैं, उनमें उनका भी नाम है। वैसे उनके जमावड़े में हिन्दू संगठन के पदाधिकारियों और संत-महात्माओं की आधी भीड़ थी तो पांच नंबर के पार्षद प्रणव मंडल, राजेश उदावत, पुष्पेन्द्र पाटीदार, राजीव जैन और महेश बसवाल भी पहुंचे थे। पांच नंबर के संगठन के कई नेता भी यहां नायर को बधाई देते नजर आए। वैसे उन्हें ताकत देने के लिए मंत्री उषा ठाकुर, महापौर पुष्यमित्र भार्गव, गोलू शुक्ला, नानूराम कुमावत और बबलू शर्मा जैसे नेता भी पहुंचे।


खाना बनवा लिया, अब पेमेन्ट के लिए उठापटक
चार नंबर विधानसभा के एक पार्षद कैटरिंग व्यवसाय से भी जुड़े हुए हंै। खबर उड़ रही है कि उन्हीं की पार्टी के एक पार्षद ने अपने एक धार्मिक आयोजन में उनसे कैटरिंग का काम करवाया था, लेकिन अब पेमेन्ट के लिए टरका रहे हैं। तकादा लगाया जा रहा है, लेकिन पेमेन्ट नहीं मिल पा रहा है। वैसे राजनीति में इस प्रकार के पेमेन्ट निकालना आसान नहीं रहता है, लेकिन दोनों ओर से बराबरी का मामला होने के बाद देखना दिलचस्प होगा कि कौन किस पर भारी पड़ता है।
इसीलिए मुझे चाय पे बुलाया है…
कांग्रेस की एक वरिष्ठ नेत्री ने महिलाओं को चाय पर बुलाया और नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे को भी आमंत्रित कर डाला। एक बार आपको याद दिला दें कि महिला कांग्रेस में चल रही गुटबाजी में पुरानी नेत्रियों का गुट अलग हो गया है और नई नेत्रियों का गुट साक्षी शुक्ला के साथ हैं। चिंटू शुरू से ही साक्षी के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। चिंटू समझ गए कि मुझे किसलिए चाय पर बुलाया है और वे वहां नहीं पहुंचे। उन्होंने इशारा कर दिया कि मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता, आप सिर्फ साक्षी का साथ दें।
नए साल के मजमे में शंकर पर भारी पड़ गए टीनू
लोक संस्कृति मंच के साथ-साथ राजनीति की डगर पकडऩे वाले शंकर लालवानी की पकड़ अब कम होती जा रही है, इसका उदाहरण राजबाड़ा पर हुए नए साल के कार्यक्रम में नजर आया। जो आए थे वो लालवानी को चेहरा दिखाने आए थे। इनमें अधिकांश वे ही चेहरे थे जो हर साल आते रहे हैं। इसमें आम लोगों की भागीदारी नहीं हो पाती। पहले तो लालवानी फोन लगाकर खुद निमंत्रित करते थे, लेकिन अब उन्होंने मंच के कर्ताधर्ताओं पर ही पूरी जवाबदारी छोड़ दी और उसका परिणाम यह हुआ कि इस बार शंकर का मजमा फीका रहा। वहीं दूसरी ओर बड़ा गणपति चौराहे पर जिस तरह से टीनू जैन ने भी मजमा जमाया, उससे उनकी आम लोगों और संगठन में पकड़ नजर आई। बड़े नेताओं के अलावा, यहां दूसरे क्षेत्रों के पार्षद और कार्यकर्ता भी दिखे। बताया गया कि टीनू ने एक-एक को फोन कर बुलाया था, जबकि लालवानी अपने समर्थकों के भरोसे रह गए और उनका मजमा फीका रह गया।
गौरव रणदिवे की निगाह उन बूथ विस्तारकों पर हैं, जिन्होंने जानबूझकर काम नहीं किया। उन्होंने हर क्षेत्र में कई वरिष्ठ नेताओं को जवाबदारी दी थी, लेकिन वे भी कार्यकर्ताओं के भरोसे रहे और जब डायरियां जमा कर इंट्री करने की बात आई तो उन्होंने तकनीकी समस्या बता दीं। रणदिवे ने भी अपनी स्टाइल में समझा दिया कि मैंने हर बूथ पर टेक्नीकल एक्सपर्ट रखा है, उनसे मदद लें और ऑनलाइन एंट्री कर काम पूरा करें। -संजीव मालवीय

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