कभी साथ में घूमते थे, अब हो गए दावेदार
सांवेर क्षेत्र से आने वाले एक दलित नेता को सोनकच्छ विधानसभा से लडऩे के सपने आ रहे हैं। ये वही नेता है जो कभी राजेश सोनकर के विधायक रहते उनके साथ कार में घूमा करते थे। चूंकि सांवेर में अब तुलसी सिलावट के रहते किसी दूसरे भाजपा नेता की दाल गलना मुश्किल है, इसलिए यहां से चुनाव लडऩे की चाह रखने वाले अब अपने बोरिया-बिस्तर बांधकर कहीं ओर कूच कर रहे हैं। खुद राजेश सोनकर अपने लिए दूसरी सुरक्षित सीट तलाश रहे हैं, ताकि फिर से विधायक बनने का सपना साकार हो सके। वैसे सोनकच्छ उनकी पसंदीदा सीट के रूप में सामने आ रही है, लेकिन उक्त नेता ने वहां से दावेदारी ठोंककर बता दिया कि सोनकर की डगर में उनके अपने ही रोड़े बन गए हैं। दलित नेता धार्मिक आयोजनों से अपनी शुरूआत भी कर चुके हैं।
लाख कोशिश के बावजूद भी भूरिया इंदौर युकां का ढर्रा सुधार नहीं सके
लाख कोशिशों के बावजूद युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया इंदौर की युवक कांग्रेस का ढर्रा नहीं सुधार सके। उन्होंने लाख कोशिश कर ली और दो-दो कार्यवाहक अध्यक्ष बना डाले, उसके बावजूद इंदौर की यूथ कांग्रेस में वो ताकत नहीं आई जो आना चाहिए थी। यहां जिले में दौलत पटेल और शहर में रमीज खान को अध्यक्ष बनाया गया है तो कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में स्वप्निल कामले और तत्सम भट्ट को रखा था। भट्ट को तो कुछ दिनों पहले हटा दिया गया, लेकिन तीन-तीन अध्यक्ष होने के बावजूद युवक कांग्रेस सरकार के सामने आज तक ऐसा जनआंदोलन खड़ा नहीं कर पाई है, जैसा विपक्षी पार्टी का होना चाहिए।
मधु भी करेंगे कथा!
आईडीए के पूर्व अध्यक्ष मधु वर्मा के यहां भागवत कथा का आयोजन था। हालांकि आयोजन पारिवारिक था, लेकिन समापन पर वर्मा ने सभी नेताओं को बुलाया था। वहां पहुंचे एक विधायक ने चुटकी ले ली कि मधु भिया अब क्षेत्र में भी कथा करना शुरू करो, चुनाव नजदीक है। मधु भी अपने स्वभाव के मुताबिक हां में हां मिलाते रहे। वैसे इस सलाह को मधु कितना मानते हैं ये तो आने वाले दो-चार महीने ही बता पाएंगे।
समानांतर संगठन खड़ा कर रहे कांग्रेसी दावेदार
प्रदेश सरकार बनाने का दावा करने वाली कांग्रेस में इस बार कई चुनावी दावेदार हैं। कर्नाटक की जीत के बाद इनकी संख्या बढऩे लगी है, लेकिन कांग्रेस में संगठन का अभाव होने के कारण गुटबाजी लगातार बढ़ रही है। इंदौर में ही कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां चुनाव लडऩे के इच्छुक कांग्रेस नेताओं ने अपना-अपना समानांतर संगठन खड़ा कर लिया है। उन्होंने बीएलओ 2 भी अपने बना लिए हैं, ताकि वोटरों का समीकरण समझा जा सके। यही नहीं ब्लाक, सेक्टर और मंडलम में भी अपने प_ों की नियुक्ति अपने स्तर पर ही कर दी है,ताकिचुनाव में इसका लाभ मिल सके, लेकिन कांग्रेस संगठन को मजबूत करने में किसी का ध्यान नहीं है और न ही पार्टी गाइड लाइन का। इस कवायद से दावेदारों को लग रहा है कि उनका पेरेलर संगठन मजबूत देख कहीं टिकट उनकी झोली में ही आ जाए।
कहां हैं छोटू शुक्ला?
कभी कांग्रेस की राजनीति में अपना सिक्का चलाने वाले छोटू शुक्ला दो नंबर विधानसभा में हुए दिग्गी के कार्यक्रम और बैठक में नदारद रहे। पिछले चुनाव में दो नंबर विधानसभा से लडऩे वाले शुक्ला को पार्टी के प्रोटोकाल के अनुसार बैठक में पहुंचना था, लेकिन वे नहीं पहुंचे। यूं भी कांग्रेस की सक्रिय राजनीति से वे अब दूर दिखाई देने लगे हैं। उन्होंने अपने पुत्र को भाजपा में लांच करने की तैयारी भी की थी, लेकिन वो भी धरी रह गई।
तीसरी पीढ़ी को स्थापित करने में लगे हैं कृपा पंडित
दिग्गी के दौरे में पंडित कृपाशंकर शुक्ला के साथ एक युवा चेहरा नजर आया, जो उनके साथ ही था। समझने वाले समझ नहीं पा रहे थे। बाद में मालूम पड़ा कि वह उनका पोता है। वे भी एक पंडित की तरह पीले वस्त्र पहने हुए थे। अपने दादा की उंगली पकडक़र वे भी राजनीति का ककहरा सीख रहे हैं और दादा भी चाह रहे हैं कि वे अपनी तीसरी पीढ़ी को कांग्रेस में स्थापित कर दें। हालांकि वे पोती शम्भवी शुक्ला को भी साथ लेकर चलते हैं। अगर पंडितजी की चल निकली तो पोता-पोती में से एक राजनीति की बड़ी कुर्सी पर नजर आ सकता है।
बेटे को राजनीतिक विरासत सौंपने पर विचार
एक वर्तमान विधायक और मंत्री अपने पुत्र को राजनीतिक विरासत सौंपने का विचार कर रहे हैं। कभी कांग्रेस में दबदबा बनाए रखने वाले इन विधायक ने अपने पुत्र को विधानसभा में तभी से सक्रिय कर रखा है जब से वे मंत्री बने हैं। हालांकि कई भाजपाई इससे सहमत नहीं है। मंत्रीजी के सामने एक बड़ी समस्या उनके अपने ही है जो उनके भाजपा में जाने से खुश नहीं है। अगर सबकुछ ठीक रहा तो बेटा ही उनकी राजनीतिक विरासत संभालने चुनाव में सामने आएगा और अगर अंदरूनी गड़बड़ हुई तो फिर मंत्रीजी खुद ही चुनाव मैदान में नजर आएंगे। कुछ का तो मानना है कि बेटे की कमर में लचक नहीं है और वे लोगों के सामने झुकने में झिझक महसूस करते हैं। वैसे मंत्रीपुत्र अभी एक बड़ा आयोजन विधानसभा में कर चुके हैं।
चार नंबर की कांग्रेस की राजनीति में एक बिल्डर की इंट्री के साथ कांग्रेस के लोगों ने ही बता दिया कि वे पहले तुलसी सिलावट के पोस्टरों और बैनरों में नजर आते थे। हालांकि उन्हें लाए हैं एक पूर्व मंत्री। उनके जन्मदिन पर पूर्व मंत्री ने यह कहकर भाजपाई होने की चर्चा पर विराम लगा दिया कि वे वहां कांग्रेस के लिए अंदरूनी तौर पर काम कर रहे थे। बोलने वाले अब खुलेआम नहीं बोलकर कानाफूसी करने में लगे हैं। -संजीव मालवीय
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