ब्‍लॉगर

ये पॉलिटिक्स है प्यारे

 


2 केले देकर 5 लोग फोटो मत खिंचवा लेना
कोरोना काल ठंडा पड़ते ही भाजपा नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे ने संगठन में कसावट लाना शुरू कर दी है। 30 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के लगातार 7 साल पर कुछ करना था। जश्न मना नहीं सकते, इसलिए तय हुआ कि समाज में जाकर पार्टी सेवा का संदेश देगी। इसकी मॉनीटरिंग करने राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री और प्रदेश के सहसंगठन मंत्री भी इंदौर आए थे। गौरव ने इसके पहले एक वर्चुअल बैठक ली और अपनी स्टाइल में सबको समझा दिया कि वास्तव में हम सबको सेवा कार्य करना है। ऐसा न हो कि 5 लोग 2 केले देते हुए फोटो खिंचवा लो और बता दो कि हमने सेवा कार्य किए हैं। गौरव के लाख समझाने के बाद भी कुछ लोगों ने नाम की सेवा की और कुछ तो घर से बाहर भी नहीं निकले। कुछ ने कंट्रोल का राशन बांटने में अपना हाथ दिखा दिया तो कुछ ने आयुष्मान कार्ड बंटवाकर इतिश्री कर ली।
विजयवर्गीय के सामने आवाज खुली
शहर, प्रदेश और अब देश में कैलाश विजयवर्गीय जिस रसूख से काम करते हैं या करवाते हैं, उससे संगठन भली-भांति परिचित हैं। पिछले दिनों वे भाजपा कार्यालय में थे और कोर ग्रुप के सदस्यों को शहर को अनलॉक करने संबंधी सुझाव देने के लिए बुलाया था। जो नेता रेसीडेंसी कोठी में चुपचाप हां में हां मिलाते थे, वे विजयवर्गीय के सामने खुलकर बोले और यह भी कह दिया कि लॉकडाउन और सख्ती करने का सुझाव हमारा नहीं था। विजयवर्गीय ने प्रतिक्रिया तो नहीं दी, लेकिन समझ सब गए।
अलग-थलग रहने लगे पटवारी
कभी प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में आगे रहने वाले जीतू पटवारी ने अब इस ओर से मुंह मोड़ लिया है, लेकिन प्रदेश के मीडिया प्रभारी के नाते वे भोपाल जाकर मजमा जमा लेते हैं। इंदौर में अब उनका ध्यान भी कम लग रहा है, क्योंकि सज्जनसिंह वर्मा के साथ संजय शुक्ला, विशाल पटेल और विनय बाकलीवाल की तिकड़ी ही सबकुछ कर रही है। पिछले दिनों जब डीआईजी ऑफिस में ज्ञापन देने पहुंचे तो थोड़ी ही देर में वे बाहर आकर अपनी गाड़ी में चिंटू चौकसे और शेख अलीम को बिठाकर रवाना हो गए।
सीएम सामने नहीं आए या आने नहीं दिया?
सीएम इंदौर आएं और यहां की मीडिया से चर्चा नहीं करें, ऐसा हो ही नहीं सकता है। सीएम जब कलेक्ट्रेट से निकलने वाले थे, तब तय हुआ था कि उनकी मुलाकात मीडिया से करवाई जाएगी, लेकिन उस समय सवालों का जखीरा मीडिया के पास ज्यादा था और अधिकारियों को भी डर था कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो सकेगा। वहीं शहर के हालात को लेकर भी कुछ नेता सीएम को मीडिया के सामने नहीं आने देना चाह रहे थे। अब बात बनाई जा रही है कि सीएम के कार्यक्रम में मीडिया से मिलने का कोई कार्यक्रम ही नहीं था।
फिर गायब हो गए संजय शुक्ला
बंगाल चुनाव के दौरान जब विजयवर्गीय इंदौर आए थे, उसके पहले कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला ने शहर के हालात को लेकर प्रेस क्लब में आत्मदाह की धमकी तक दे डाली थी, लेकिन मामला आया-गया हो गया और थोड़े दिन बाद शुक्ला ने शांति पकड़ ली। अब फिर विजयवर्गीय इंदौर में हैं और 5 दिन से शुक्ला कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। मीडिया ने उनको आखिरी बार डीआईजी ऑफिस पर ज्ञापन देने जाते हुए देखा था। हालांकि उनके ईर्द-गिर्द घूमने वाले कह रहे हैं कि भैया अब अपने क्षेत्र में ही घूम रहे हैं और पता कर रहे हैं कि किसे राशन-पानी नहीं मिला?
लेने के देने पड़ जाते हैं लालवानी को
सांसद लालवानी अकसर सोशल मीडिया पर आलोचकों से ट्रोल हो जाते हैं और जो किया-धरा होता है वो मिट्टी में मिल जाता है। पिछले दिनों डीआरडीओ की दवा का प्रचार करने में ट्रोल हो गए। वे सफाई देते तब तक बहुत देर हो चुकी थी और रातोरात उनके शुभचिंतकों ने वीडियो के साथ मिर्च-मसाला लगाकर वायरल कर दिया। वैसे इसमें योगदान उनकी निजी मीडिया का भी है जो करना अच्छा चाहती है और हो उलटा जाता है। अब भले ही वे कहते फिर रहे हैं कि मैं तो उस मरीज की डिमांड पर उनके साथ फोटो खिंचवाने गया था और मैंने कोई बयान जारी नहीं किया।
खंडवा में किसकी किस्मत खुलेगी?
नंदकुमारसिंह चौहान के निधन के बाद खाली हुई खंडवा लोकसभा सीट को लेकर भाजपा की राजनीति गर्म है। हो सकता है कि सितम्बर- अक्टूबर तक नगरीय निकाय चुनावों के साथ-साथ लोकसभा उपचुनाव भी घोषित हो जाए। वैसे अर्चना चिटनीस खंडवा से बाहर नहीं जा रही हैं, लेकिन साब यानी मोघेजी के चक्कर जरूर खंडवा क्षेत्र में बढ़ गए हैं। कोरोना राहत के नाम पर वे खंडवा लोकसभा के कुछ खास क्षेत्रों की चाशनी भी ले आए हैं। एक नाम कैलाश विजयवर्गीय का भी चल रहा है, लेकिन जाहिर तौर पर बताया जा रहा है कि उनकी रुचि खंडवा में नहीं है, क्योंकि जल्द ही उन्हें किसी प्रदेश का प्रभारी बनाकर भेजा जा सकता है। वैसे यहां से भाजपा का कोई नया नाम भी आ जाए तो चौंकिएगा मत।
और हां, कांग्रेस-भाजपा के नेता जो ज्यादा बोलवचन करते थे, वे कोरोना काल में घरों से तो नहीं निकले, लेकिन अब मरीज कम होते ही उन्होंने मुंह दिखाना शुरू कर दिया है। इनमें सबसे ज्यादा वे शामिल हैं। जिन्हें चुनाव लडऩा है। ऐसे नेता कल मुंह दिखाने के लिए पार्टी के आयोजनों में दिखाई दिए, लेकिन बड़े नेताओं ने उनकी लू उतार दी कि अब तक कहां थे? -संजीव मालवीय

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