भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

‘के’ फॉर्म की उलझन में सड़क पर नहीं आ पा रही हजारों बसें

  • पहले जिन रूटों पर हर 15 मिनट में बसें मिला करती थीं उस पर अब यह समय बढ़कर 45 मिनट से एक घंटा हो गया

भोपाल। कोरोना काल में घाटे से जूझ रहे बस संचालकों का राहत पाने के लिए ‘के’ फॉर्म भरना अब उन्हीं के लिए मुसीबत बन गया है। नवंबर और दिसंबर के लिए ‘के’ फॉर्म भर कर अपने परमिट को अस्थाई रूप से सरेंडर करने वाले बस संचालक अब नए साल में संचालन ही शुरू नहीं कर पा रहे हैं। अब इस संबंध में बस संचालक जल्द ही परिवहन आयुक्त से चर्चा कर हस्तक्षेप की मांग करेंगे। जानकारी के अनुसार डीजल की बढ़ती कीमतों और कोरोना के कारण यात्रियों की लोक परिवहन वाहनों से दूरी बनाए रखने से उन बस संचालकों जिनके पास स्थाई परमिट थे। उन्होंने ने अक्टूबर माह में फॉर्म के भरकर नवंबर और दिसंबर में बसे नहीं चलाने का निर्णय लिया था। प्राइम रुट बस ऑनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोविंद शर्मा बताते हैं, हमारे बस संचालकों ने फॉर्म भरकर आरटीओ के पास भेज दिए थे। वहां से इसे ट्रांसपोर्ट कमिश्नर कार्यालय भेजा गया था, इसके अनुसार अब हमारे परमिट सरेंडर हो गए हैं। लेकिन अब कोराना की मामले कम होता देख बस संचालक जब बसे चलाना चाहते हैं, तो उन्हें फिर से अनुमति लेना होगी। लेकिन अब तक अनुमति नहीं मिल पाई है। जिससे बसों का संचालन नहीं कर पा रहे हैं। हम लोग इस मामले में परिवहन आयुक्त से चर्चा कर जल्द ही निर्णय करने के लिए कहेंगे। ताकि परेशान बस चालक संचालन शुरू कर सके।
गौरतलब है कि बस संचालक पहले कोराना काल की अवधि के टैक्स माफी की मांग करते रहे बाद में सरकार ने उन्हें राहत तो दी। फिर बस संचालक डीजल की बढ़ती कीमतों का हवाला देकर किराए में 55 प्रतिशत की वृद्धि की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक सरकार ने उनकी यह मांग नहीं मांगी है जिससे मध्य प्रदेश में हर रूट पर चलने वाली बसों की संख्या में 60 प्रतिशत तक की कमी आ गई है। पहले जिन रूटों पर हर 15 मिनट में बसें मिला करती थीं उस पर अब यह समय बढ़कर 45 मिनट से एक घंटा हो गया है।

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