आचंलिक

दादावाड़ी में हुए आयोजन के हजारों गुरुभक्त व रहवासी बने साक्षी

  • दीक्षा ग्रहण कर विकास बने यति श्रीसुमतिसुंदरजी, इंदिरा बनी आर्या श्रीमुक्तिप्रभाश्रीजी, अंजली बनी आर्या श्रीसमकितप्रभा श्रीजी-दीक्षार्थियों के जयकारों से गूंजा नगर- जगह जगह हुआ बहुमान

महिदपुर। नगर व देशभर के गुरूभक्तों की प्रतिक्षा रविवार को पूर्ण हुई जो नगरवासियों के लिए भी यादगार बन गई। अवसर था मालवा के इतिहास में पहली बार यति-यतिनयों की दीक्षा भावी श्रीपूज्य उद्घोषणा का। जिसको लेकर दीक्षार्थियों के परिजनों, गुरूभक्तों में सुबह से ही उत्साह का माहौल रहा। दीक्षा महोत्सव खरतरगच्छाधिपति, जैनाचार्य जिनचंद्रसूरीजी की निश्रा में सम्पन्न हुआ। सबसे पहले नागौरी बाजार स्थित विकास चौपड़ा के निवास, अजय धाड़ीवाल के निवास से इंदिरा नाहर, गांधी मार्ग स्थित अंजलि राखेचा निवास से दीक्षार्थियों का गृह त्याग जुलूस एक साथ निकला जिसमें दीक्षार्थी सुसज्जितत रथ में सवार हो सभी का अभिवादन स्वीकर कर रहे थे। वहीं भौतिक सुख, ऐश्वर्य और अपने परिवार को छोड़ दीक्षा की भावना रखने वाले तीनों दीक्षार्थी अपने दोनों हाथों से भौतिक वस्तुओं का दान कर रहे थे। नगर में जगह जगह दीक्षार्थियों का बहुमान हुआ। इनके आगे धर्मालुजन नाचते-गाते, दीक्षार्थियों के जयकारें लगाते हुए चल रहे थे। जुलूस के आगे कलाकारों द्वारा बनाई गई रंगोली सभी को लुभा रही थी। पंजाबी ड्रेस कोड में बैंड के सभी कलाकार भी सभी को आकर्षित कर रहे थे।


जुलूस नगर के प्रमुख मार्गों से होता हुआ सुमतिनाथ जिन प्रासाद एवं दादावाड़ी भीमाखेड़ा रोड पहुंचा। सर्वप्रथम दीप प्रज्जवलन सरदारमल गिरिया परिवार ने किया। दीक्षार्थी का बहुमान संदीप कोठारी हैदराबाद, जयंती धूपिया नलखेड़ा, ओम डोसी परिवार ने किया। राजू भाई कुशल विधि कारक, स्तुतियों का पाठ यति अमृतसुंदरजी ने किया। शासन देवता की स्तुति, चैत्यवंदन, चतुर्मुखी परमात्मा प्रतिमा के सम्मुख किया। दसेड़ा परिवार ने रजोहरण प्रदान करने का लाभ लिया। यति अमृतसुंदरजी को भावी श्रीपूज्य नियुक्त करने की घोषणा परिसर में मुमुक्षु चौपड़ा, नाहर, राखेचा को परिवार जन कंधे पर बैठाकर सभा स्थल पर लाए। केश लोचन और वस्त्र परिवर्तन पश्चात विकास चौपड़ा का नामकरण यति श्रीसुमतिसुंदरजी, इंदिरा नाहर का नाम आर्या श्रीमुक्तिप्रभाश्रीजी, अंजली राखेचा का नामकरण आर्या श्रीसमकितप्रभाश्रीजी हुआ। इन्हें क्रमश: 15, 11 और 10 वर्ष का अनुभव रहा। वही यति अमृतसुंदरजी को भावी श्रीपूज्य नियुक्त करने की घोषणा श्रीपूज्य जी ने उपस्थित जनों के सामने की। जो करीब 5 वर्ष पहले दीक्षा लेकर सांसारिक नाम प्रतिक वैद से यति अमृतसुंदरजी बने थे।

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