- अब तक हजार डम्पर से ज्यादा गाद निकाली
- किनारों पर बन गए गाद के पहाड़, अब ट्रेंचिंग ग्राउंड भेजेंगे
इंदौर। नगर निगम एक बार फिर कान्ह की गंदगी साफ करने के लिए करोड़ों रुपए फूंक रहा है। निगम ने कान्ह नदी के कई किनारों के आसपास सफाई अभियान चलाने का दावा करते हुए कृष्णपुरा छत्री, शिवाजी मार्केट, मच्छी बाजार, चंद्रभागा, हरसिद्धि और गणगौर घाट क्षेत्र में एक हजार डम्पर से ज्यादा गाद निकालने का दावा किया है, लेकिन गाद है कि कम होने का नाम नहीं ले रही।
हर साल कान्ह की हालत बदतर हो जाती है और जगह-जगह नदी का पानी न केवल अवरुद्ध होता है, बल्कि कई जगह कचरे के ढेर और गाद नजर आने लगती है और इसकी सफाई के लिए निगम करोड़ों रुपए खर्च करता है। इस सप्ताह भी स्वास्थ्य विभाग के साथ-साथ ड्रेनेज और वर्कशॉप विभाग की टीमों ने संसाधनों के साथ यह अभियान शुरू किया तो पता चला कि नदी के हिस्से कचरे से अटे पड़े थे। पहले कचरा जैसे-तैसे निकाला गया और उसके बाद पोकलेन और जेसीबी के माध्यम से गाद निकालने का काम शुरू किया गया। करीब 10 से ज्यादा स्थानों पर यह कार्य किए जाने का दावा किया गया।
निगम के मुताबिक अब तक सर्वाधिक गाद रामबाग पुल से लेकर शिवाजी मार्केट होते हुए कृष्णपुरा छत्री तक निकाली गई है और वहां आसपास के किनारों पर अस्थायी तौर पर पटकी गई है, ताकि उसके सूखने के बाद उसे शिफ्ट कराने की कार्रवाई जा सके। करीब एक हजार डम्पर से ज्यादा गाद अब तक निकाली जा चुकी है। अब कृष्णपुरा क्षेत्र के बाद कई अन्य हिस्सों में जोर-शोर से यह अभियान चलाया जाएगा। नदी से निकाली गई गाद को ट्रेंचिंग ग्राउंड पर भेजने के लिए कई अतिरिक्त डम्पर निगम और झोनलों से लगाए गए हैं। मुसीबत यह है कि यह गाद अब ट्रेंचिंग ग्राउंड को गंदा करेगी।
भ्रष्टाचार का जरिया बनी कान्ह की गंदगी… सफाई के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी
कभी नाले के नाम से जानी जाने वाली खान नदी को कान्ह नदी में परिवर्तित करने के प्रयास के चलते निगम अब तक इसके सौंदर्यीकरण पर जहां करोड़ों रुपए फूंक चुका है, वहीं कान्ह की गाद निकालने के नाम पर अब तक लगातार पैसे खर्च किए जा रहे हैं। दरअसल गाद निकाले जाने का कोई प्रमाण नहीं होता है, लेकिन भुगतान किया जाता है। ठेकेदार द्वारा हजारों गाडिय़ों से गाद निकाले जाने का बिल निगम को थमाया जाता है, लेकिन सफाई हुई या नहीं यह देखा नहीं जाता और इसके चलते हर बार कान्ह की गाद निकालने के लिए ठेका दिया जाता है और करोड़ों की हेेराफेरी की जाती है। दरअसल कान्ह भ्रष्टाचार का जरिया बन गई है, जिससे अधिकारी और ठेकेदार दोनों हर साल लाखों रुपए कमा रहे हैं।