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नाकाम हो गई ट्रंप प्रशासन की चीन को ‘आर्थिक सजा’ देने की नीति! चीन में बढ़ रहा है अमेरिकी निवेश

चीन के खिलाफ अमेरिका का व्यापार युद्ध अपने मकसद को हासिल करने में अब तक नाकाम है। ये बात यहां जारी ताजा आंकड़ों से जाहिर होती है। इनका निष्कर्ष है कि चीन में असल में अमेरिकी निवेश बढ़ रहा है। कुल मिलाकर हाल के महीनों में चीन की अर्थव्यवस्था का बाकी दुनिया की अर्थव्यवस्था से जुड़ाव बढ़ा है। जबकि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के व्यापार युद्ध का मकसद चीन को अलग-थलग करना रहा है। चीन ने अपने यहां तकनीक के क्षेत्र और अनुसंधान और विकास (आर-एंड-डी) में निवेश में भारी बढ़ोतरी की है। इसका नतीजा यह हुआ है कि देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में भारी इजाफा हुआ है। गौरतलब है कि हाल में चीन ने योजनाबद्ध ढंग से तकनीक क्षेत्र में आत्म- निर्भरता हासिल करने के लिए आविष्कार केंद्रित विकास में निवेश बढ़ाया है।

चीन के वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक अक्तूबर लगातार सातवां ऐसा महीना था, जब चीन में एफडीआई बढ़ा। पिछले महीने कुल 12.4 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया, जो सितंबर की तुलना में 18.3 फीसदी ज्यादा है। इस साल की पहली तिमाही में कोरोना महामारी के कारण एफडीआई में भारी गिरावट आई थी। फिर भी गुजरे दस महीनों में चीन में आने वाले एफडीआई में 6.4 फीसदी की वृद्धि हुई है। सबसे ज्यादा ग्रोथ हाई टेक इंडस्ट्री में देखने को मिला है। अक्तूबर में पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 27.8 फीसदी की वृद्धि इसमें देखने को मिली। रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेक्टर का प्रदर्शन इससे भी बेहतर रहा है।

विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी निवेशकों ने चीन में अपना निवेश जारी रखा है। चीन ने अब विकास नीति अपने घरेलू बाजार में खपत बढ़ाने का मकसद रखते हुए बनाई है। ये साफ है कि विदेशी निवेशक इस बाजार में संभावित मुनाफे से दूर नहीं रहना चाहते हैं। ब्रिटेन की फाइनेंशियल डाटा कंपनी- मर्जरमार्केट के मुताबिक अमेरिकी निवेशक अपना पैसा चीन में पहले से मौजूद कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने में लगा रहे हैं। इस साल जनवरी से अक्टूबर के बीच उन्होंने कंपनियों को खरीदने या उनके विलय (एक्वीजीशन एंड मर्जर) में तकरीबन 11.35 अरब डॉलर का निवेश किया। यह पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 69 फीसदी ज्यादा है। मर्जरमार्केट के अनुसार इसका मतलब यह हुआ कि संबंध तोड़ने के बजाय अमेरिकी निवेशक चीन से अपना संबंध और अधिक मजबूत बना रहे हैं।

ऑक्सफॉर्ड स्थित एशिया इकॉनोमिक्स यूनिट के प्रमुख लुई कुजिस ने कहा है कि अमेरिका सरकार के लिए अपनी कंपनियों को यह निर्देश देना कठिन है कि वे चीन में पैसा ना लगाएं। इसलिए सरकार जहां संबंध घटाने की दिशा में जा रही है, वहीं कंपनियां संबंध बढ़ा रही हैं। डीबीएस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री तैमूर बेग ने हांगकांग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहा कि पिछले पांच वर्षों में चीन में अमेरिकी निवेश में 26 फीसदी का इजाफा हुआ है। हाल की घटनाओं का इस ट्रेंड पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।

अमेरिका और चीन का ट्रेड वॉर शुरू होने के पहले ऐसी खबरें थीं कि अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियां अपने कारखानों को चीन से निकाल कर कहीं और लगाने की योजना बना रही हैं। ऐसा वो इसलिए करना चाहती थीं, ताकि सप्लाई चेन के मामले में चीन पर निर्भरता को घटाया जा सके। लेकिन कोरोना महामारी के बाद जहां बाकी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं संकट में पड़ी हुई हैं, वहीं चीन ने तेजी से विकास दर को हासिल कर लिया है। इस बीच चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था के कई हिस्सों खासकर वित्तीय क्षेत्र में उदारीकरण का फैसला किया है। जानकारों के मुताबिक इससे बने मौकों से अमेरिकी कंपनियां दूर नहीं रहना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने चीन में अपना निवेश बढ़ा दिया है। और इस तरह ट्रंप प्रशासन की चीन को सजा देने की नीति नाकाम होती नजर आ रही है।

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