ग्वालियर। समय और परिस्थितियां हमेशा एक जैसे नहीं रहती, किसी को नहीं मालूम होता कि हालात कब बदल जाएं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण फिलहाल मध्यप्रदेश के ग्वालियर में सामने आया है। दरअसल इसी हफ्ते ग्वालियर में उपचुनाव की मतगणना के दिन डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिह भदौरिया गस्त लगा रहे थे और झांसी रोड की तरफ से गुजर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने सड़क के किनारे एक भिखारी को ठंड से ठिठुरते और कचरे के ढेर में खाना तलाशते देखा। इस पर दोनों अधिकारी रुककर उस भिखारी के पास पहुंचे।
भिखारी की हालत देखकर एक अफसर ने जैकेट तो दूसरे ने अपना जूता दे दिया। इसके बाद दोनों ने भिखारी से बातचीत शुरू की और उसके बारे में पता लगाना शुरू किया, लेकिन बातचीत के बाद दोनों ही अधिकारी हैरान रह गए। बातों-बातों में भिखारी ने बताया कि वह डीएसपी के ही बैच का ही ऑफिसर है।
भिखारी ने अपना नाम मनीष मिश्रा बताया जिसने डीएसपी के साथ ही थानेदार के रूप में नौकरी ज्वाइन की थी। मिश्रा ने बताया कि वह पिछले 10 सालों से लावारिस हालात में घूम रहा है। बातचीत आगे बढ़ने के बाद पता चला कि मनीष मिश्रा अपना मानसिक संतुलन खो बैठे थे, वह शुरुआत में पांच साल तक घर पर रहे इसके बाद घर में नहीं रुके यहां तक कि इलाज के लिए उन्हें जिस सेंटर व आश्रम में भर्ती कराया गया, वह वहां से भी भाग गए थे। उसके बाद से वे सड़को पर भीख मांग कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
मनीष दोनों अफसरों के साथ सन 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर की पोस्ट पर भर्ती हुए थे। उन्होंने 2005 तक पुलिस की नौकरी की और अंतिम समय में दतिया में पोस्टेड रहे। वे एक शानदार निशानेबाज भी थे। हालांकि मानसिक स्थिति खराब होने और विपरीत परिस्थितियों के साथ ही उनकी पत्नी ने भी उन्हें तलाक दे दिया।
मनीष की सारी बातें सुनने के बाद उनके दोस्तों ने उन्हें मनाकर अपने साथ ले जाने की कोशिश की, लेकिन वह साथ जाने को राजी नहीं हुए। इसके बाद दोनों अधिकारियों ने मनीष को एक समाजसेवी संस्था में भिजवा दिया, जहां उनका सही तरीके से इलाज शुरू हो गया है।
जानकारी के मुताबिक मनीष के भाई भी थानेदार हैं और पिता और चाचा एसएसपी के पद से रिटायर हुए हैं। उनकी एक बहन किसी दूतावास में अच्छे पद पर हैं। मनीष की पत्नी, जिसका उनसे तलाक हो गया, वह भी न्यायिक विभाग में पदस्थ हैं।
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