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कोरोना के खात्मे से पहले क्या जरूरी है बूस्टर डोज, जानिए क्या कहना है एक्सपर्ट का

नई दिल्ली: ब्रिटने, यूरोप और चीन में भले ही कोरोना (Coronavirus) के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन भारत में संक्रमण से हालात नियंत्रण में है. पिछले दो सालों में कोरोना के नए मामले सबसे निचले स्तर पर है. देश में टीकाकरण (Vaccination) भी तेज गति से चल रहा है. अब तक 180 करोड़ से ज्यादा वैक्सीन डोज लगाई जा चुकी है. स्वास्थ्य कर्मचारियों और 60 से अधिक उम्र वाले लोगों को बूस्टर डोज (Booster dose) लगाई जा रही है. ओमिक्रॉन वैरिएंट (Omicron Variant) के कारण आई तीसरी लहर के बाद आबादी के एक बड़े हिस्से में संक्रमण के खिलाफ इम्यूनिटी भी बन गई है. तेजी से चल रहे टीकाकरण अभियान और नेचुरल इंफेक्शन से बनी इम्यूनिटी का तर्क देते हुए एक्सपर्ट्स का भी कहना है कि भारत में कोरोना की कोई खतरनाक लहर अब नहीं आएगी.

इस बीच केंद्र सरकार वयस्को को भी बूस्टर डोज देने की तैयारी कर रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि जब देश में किसी नई लहर का खतरा काफी कम है और संक्रमित होने के बाद लोगों में इम्यूनिटी बन चुकी है, तो क्या सभी लोगों को बूस्टर डोज (booster dose) की जरूरत है? इन सवालों का जवाब जानने के लिए Tv9 ने हेल्थ एक्सपर्ट्स से बातचीत की है. स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ और कोविड एक्सपर्ट डॉ. अंशुमान कुमान ने बताते हैं” अभी देश कोरोना को लेकर काफी राहत की स्थिति में है. यहां कोरोना की तीन लहर आ चुकी है. ओमिक्रॉन से आई लहर में तो अधिकतर आबादी संक्रमित हो गई थी, जिससे लोगों में एक नेचुरल इम्यूनिटी बन गई है. ऐसे में अगले चार से छह महीने तक किसी नई लहर के आने की आशंका नहीं है”


इस सवाल के जबाव में डॉ. अंशुमान कहते हैं ” मुझे नहीं लगता कि फिलहाल सभी लोगों को बूस्टर डोज लगनी चाहिए. बुजुर्गों और स्वास्थकर्मचारियों के कोरोना से संक्रमित होने की आशंका ज्यादा रहती है. ऐसे में फिलहाल हमें इन लोगों के ही बूस्टर टीकाकरण पर ध्यान लगाना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि देश की 80 फीसदी व्यस्क आबादी को वैक्सीन के दोनों डोज लग चुके हैं. ओमिक्रॉन से नेचुरल इम्यूनिटी भी मिल गई है. ऐसे में अगले चार से छह महीने तक इस वर्ग में बूस्टर डोज लगाने का बिलकुल भी फायदा नहीं है.” डॉ. के मुताबिक, जिस तरीके से कोरोना वायरस की मारक क्षमता कम हो रही है, उससे ऐसा लगता है कि आने वाले समय में इस वायरस के जो भी वैरिएंट आएंगे, वे कम संक्रामक ही होंगे. इसलिए ये भी हो सकता है कि बूस्टर डोज लगाने की जरूरत ही न पड़े.

नई दिल्ली एम्स (AIIMS) के क्रिटिकल केयर विभाग के प्रोफेसर डॉ. युद्धवीर सिंह बताते हैं “मौजूदा कोवैक्सिन या कोविशील्ड को बूस्टर डोज के रूप में लगाने का कोई औचित्य नहीं है. क्योंकि आने वाले समय में कोरोना के नए वैरिएंट आ सकते हैं. यह भी हो सकता है कि नए वैरिएंट इन वैक्सीन से बनी इम्यूनिटी को बाइपास कर जाएं. पहले भी हमने देखा है कि वैक्सीन लगने के बाद भी लोग काफी संख्या में संक्रमित हुए हैं. ऐसे में जरूरी है कि हम एक ऐसी वैक्सीन को बूस्टर डोज के तौर पर लगाएं, जो सभी वैरिएंट पर कारगर हो. जिससे आने वाले समय में संक्रमण के नए मामलों को काबू में रखा जाए. साथ ही मौतें और हॉस्पिटलाइजेशन भी कम से कम रहे. ऐसे में पहले हमें इसपर रिसर्च करनी चाहिए कि किस नई वैक्सीन को बूस्टर के तौर पर देना सही रहेगा. और क्या सभी को बूस्टर की जरूरत है भी या नहीं”

डॉ. युद्धवीर के मुताबिक, जिस हिसाब से कोरोना का वायरस लगातार कमजोर हो रहा है. उससे देखते हुए यह भी संभावना है कि आने वाले समय में यह महामारी एंडेमिक बन जाए और कोरोना सामान्य फ्लू की तरह बनकर रह जाए. उस स्थिति में हमें बूस्टर डोज की जरूरत ही नहीं होगी. डॉ. अंशुमान का कहते है ” विदेशों में कोरोना के केस बढ़ रहे हैं, इसलिए यहां चौथी लहर (Corona Fourth wave) की आशंका जताई जा रही है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. ब्रिटेन, चीन या हांगकांग में संक्रमण के मामले बढ़ने का कारण ओमिक्रॉन का वैरिएंट बीए.2 (Omicron Variant BA.2) है. भारत में इस वैरिएंट से तीसरी लहर आई थी, जो अब खत्म हो गई है. जब ये वैरिएंट पहले ही देश में फैल चुका है, तो अब इससे कोई खतरा नहीं होगा. ऐसे में किसी को भी चौथी लहर को लेकर पैनिक नहीं होना चाहिए.”


डॉ. के मुताबिक, आईआईटी कानुपर की चौथी लहर को लेकर की गई भविष्यवाणी को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए. आईआईटी ने जून में चौथी लहर आने की जो बात कही है, वह गणित के मॉडल पर आधारित है, जबकि कोरोना पर ऐसा कोई मॉडल काम नहीं करता है. इससे पहले भी आईआईटी का कोरोना को लेकर कोई भी बात सही साबित नहीं हुई है. इसलिए फिलहाल हमें कोरोना को लेकर किसी नई चिंता में नहीं पड़ना चाहिए. बस जरूरी ये है कि अगर किसी इलाके में संक्रमण के नए मामलों में इजाफा दिखाई देता है, तो वहां तुरंत जीनोन सीक्वेंसिंग बढ़ा दी जानी चाहिए. अगर जांच में किसी नए वैरिएंट का पता चलता है तो उसके मरीजों को कम से कम एक महीने निगरानी में रखें. नए वैरिएंट के लक्षणों की पहचान करके उसके लक्षणों की जानकारी लोगों से साझा की जाए. अगर जरूरत पड़े तो कोविड को लेकर सख्ती भी की जाए.

सफदरजंग हॉस्पिटल के मेडिसिन विभाग के एचओडी प्रोफेसर डॉ. जुगल किशोर कहते हैं” देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट तीसरी लहर में फैल चुका है. जिस नए डेल्टाक्रॉन वैरिएंट के संकेत मिले हैं, उसको लेकर भी अभी रिसर्च चल रही है. इस वैरिएंट के मामले जिन देशों में रिपोर्ट हुए हैं. वहां इससे न तो अचानक से मौतें बढ़ी और और न ही हॉस्पिटलाइजेशन. ऐसे में इस बात की आशंका कम है कि भारत में इन वैरिएंट्स से आने वाले समय में कोई बड़ा खतरा होगा. हालांकि ऐसा नहीं है कि अब कभी कोरोना के केस नहीं बढ़ेंगे. हो सकता है कि कुछ इलाकों में केस बढ़ें, लेकिन अगर हॉस्पिटलाइजेशन और मौतों के आंकड़े नहीं बढ़ते हैं, तो चिंता की कोई बात ही नहीं है. ऐसे में हमें किसी नई लहर की आशंका पर ध्यान न देकर संक्रमण से बचाव और अपने सर्विलांस को बढ़ाने पर जोर देने की जरूरत है.

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