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अबादी बानो बेगमः पहली मुस्लिम महिला राजनेता

– प्रतिभा कुशवाहा

अबादी बानो बेगम उस महिला का नाम है, जिन्होंने अपने समय में अपनी स्थिति-परिस्थिति से आगे बढ़कर न केवल नेतृत्व प्रदान किया, बल्कि अपने समय के समाज को प्रभावित किया। ‘बी अम्मा’ के उपनाम से मशहूर अबादी बेगम को पहली ऐसी मुस्लिम महिला का दर्जा प्राप्त है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए न सिर्फ राजनीतिक गतिविधियों में भाग लिया, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करके आजादी के काम में लगाया। वह ऐसी क्रांतिकारी विचारों वाली महिला थीं, जिन्होंने अपने समय से आगे के निर्णय बखूबी लिए। इन सब परिचय के बीच बी अम्मा को अली बंधु की मां के रूप में भी जाना जाता है। मौलाना शौकत अली और मौलाना मुहम्मद अली जौहर की मां अबादी बेगम ही थीं।

अबादी बेगम का जन्म 1850 में उत्तर प्रदेश के ऐसे राष्ट्रभक्त परिवार में हुआ था, जिन्हें 1857 की क्रांति में भाग लेने के कारण अत्यधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उनका विवाह अब्दुल अली खान के साथ हुआ, जो रामपुर रियासत में एक वरिष्ठ पद पर प्रतिष्ठित थे। अबादी बेगम को कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी, फिर भी अपने प्रगतिशील विचारों के चलते उनका अशिक्षित होना कभी बाधा नहीं बना। वे अंग्रेजी शिक्षा की प्रबल समर्थक थीं। अपने बच्चों को मॉडर्न शिक्षा देने के लिए उन्होंने अपने जेवर तक गिरवी रख दिये थे। उन्होंने अपने बेटों को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से लेकर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक शिक्षा के लिए भेजा। अबादी बेगम काफी कम उम्र में ही विधवा हो गई थीं। उन्होंने अपने बच्चों के लालन-पालन में राष्ट्रवाद के मूल्यों को स्थापित करने वाली परवरिश दी।

1917 में अबादी बेगम उस आंदोलन में शामिल हुईं, जो जेल में बंद एनी बेसेंट और उनके दो बेटों को छुड़ाने के लिए आयोजित था। यह वही समय था जब महात्मा गांधी ने उन्हें सुझाव दिया कि वे महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ें। गांधी जी की बात को तबज्जो देते हुए उन्होंने सक्रियता से खिलाफत आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने बहुत सी महिलाओं को आजादी की लड़ाई के लिए तैयार किया। खिलाफत और असहयोग आंदोलन के दौरान बी अम्मा ने न केवल धन इकट्ठा किया, बल्कि जगह-जगह सभाएं करके विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का आह्वान भी किया। उन्होंने बेगम हसरत मोहानी, सरला देवी चौधरानी, बसंती देवी और सरोजनी नायडू के साथ मिलकर आंदोलन के लिए काम किया। उन्होंने सभाओं में तिलक स्वराज फंड के लिए दान की भी अपील की, जिसका स्वतंत्रता आंदोलन में उपयोग किया जाना था।

अबादी बेगम ने अपने सारे जीवन पर्दा प्रथा का पालन किया। वे पर्दे में रहकर ही बड़ी-बड़ी सभाओं को संबोधित करती थीं। इन सबके बावजूद उन्होंने अनेक पर्दानशीं औरतों को आजादी के आंदोलन से जोड़ दिया। उन्होंने महिलाओं को आंदोलन में लाने के लिए पाबंदियों और बंधनों को तोड़ा भी। वे देश की आजादी की एक प्रतिबद्ध और बहादुर सेनानी थीं। एक बार जब यह अफवाह उड़ी कि मोहम्मद अली सरकारी दया या माफी के तहत जेल से रिहा कर दिए गए हैं, तो उन्होंने बड़ी दृढ़ता से कहा था कि पहले तो मोहम्मद अली अंग्रेजों से माफी मांगेंगे नहीं, अगर उन्होंने ऐसा किया है तो मेरे बूढ़े हाथों में अभी भी इतना दम है कि मैं उनका गला दबा सकती हूं।

अबादी बेगम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिन्दु-मुस्लिम एकता को बनाने वालों में एक मुख्य किरदार बनीं। वे हिन्दु-मुस्लिम को ‘भारत की दो आंखें’ कहा करती थीं। शायद इसीलिए वे बिना थके इन दोनों समुदायों के बीच मित्रता बनाये रखने का काम करती रहीं।

(लेखिका हिन्दुस्थान समाचार से सम्बद्ध हैं)

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