ब्‍लॉगर

स्वच्छता और स्वास्थ्य की एक और मजबूत पहल

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वक्त और कार्य दोनों का महत्व समझते हैं। वे किसी भी कार्य को आरंभ करने से पहले उसकी योजना बना लेते हैं। उसके नफा-नुकसान का आकलन कर लेते हैं। जिन मुद्दों की ओर उनके पूर्व के समकक्षों का ध्यान नहीं गया, उन मुद्दों को योजना के पटल पर लाकर इस देश के रणनीतिकारों को न केवल अक्सर चौंकाते हैं बल्कि उस योजना की उपयोगिता पर भी सार्थक जन संवाद करते हैं। प्रकाश डालते हैं। इससे उनकी दूरदर्शिता का पता चलता है। अगर यह कहा जाए कि कब क्या करना है, कैसे करना है, इसका मनोविज्ञान उनसे बेहतर कोई नहीं जानता तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी।

महात्मा गांधी साफ-सफाई पर ध्यान देते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी साफ-सफाई पर ध्यान देते हैं। महात्मा गांधी ने अगर गंदगी से भरा टोकरा अपने सिर पर ले लिया था तो प्रधानमंत्री ने भी झाड़ू अपने हाथ में लेकर देश को स्वच्छता का संदेश दिया था। प्रयागराज के कुंभ मेले में तो उन्होंने स्वच्छता कर्मियों के पैर भी पखारे थे। कोरोना काल में भी उन्होंने स्वच्छता कर्मियों को पहला कोरोना योद्धा करार दिया था। यह और बात है कि कुछ राजनीतिक दलों ने यह भी कहा कि हमें झाड़ू लगाने वाला नहीं, काम करने वाला प्रधानमंत्री चाहिए। जहां तक काम करने का सवाल है तो प्रधानमंत्री ने हर छोटी-छोटी समस्याओं को दूर करने की ओर अपना ध्यान केंद्रित किया है। इस निमित्त भरपूर कोशिश की है और निरंतर इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। उनका हमेशा इस बात पर जोर रहा है कि संवाद और जागरूकता के बिना यह देश तरक्की के शिखर पर नहीं पहुंच सकता।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती से ठीक एक दिन पहले देश को स्वच्छता योजना का एक और बड़ा उपहार देकर उन्होंने यह साबित कर दिया है कि स्वच्छता और देश के स्वास्थ्य को लेकर वे वाकई कितने गंभीर हैं ? गांधी जयंती से ही वर्ष 2014 में उन्होंने देश में स्वच्छता मिशन की शुरुआत की थी और स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छ रहने की अहमियत पर जोर दिया था। स्वच्छ भारत मिशन अर्बन-2 और अमृत-2 प्रोग्राम की शुरुआत कर उन्होंने एकबार फिर कहा है कि स्वच्छता हर किसी का, हर दिन, हर पखवाड़े, हर साल, पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाला महा अभियान है। स्वच्छता जीवन शैली है, जीवन मंत्र है।

वे व्यक्तिगत जीवन में तो स्वच्छता को महत्व देते ही हैं, आमजन को इसकी प्रेरणा देते हैं। उनकी इस बात में दम है कि अब स्वच्छता अभियान को मजबूती देने का दायित्व नई पीढ़ी ने संभाल लिया है। अब तो बच्चे चॉकलेट के रैपर या तो डस्टबिन में डालते हैं या अपनी जेब में रख लेते हैं। गंदगी फैलाने पर बड़ों को भी टोकते हैं। यह अपने आप में बड़ा बदलाव है। उनका मानना है कि अब कचरा व्यक्ति की आर्थिक समृद्धि की वजह बन रहा है। आज का युवा कचरे के जरिए भी पैसा कमा रहा है। उन्होंने आश्वस्त किया है कि स्वच्छ भारत मिशन के दूसरे चरण में शहरों से कूड़े के पहाड़ पूरी तरह हटाए जाएंगे।

प्रधानमंत्री का दावा है कि देश में प्रतिदिन 70 प्रतिशत कूड़े का निस्तारण हो रहा है। इस क्षमता को बढ़ाकर शत-प्रतिशत करना है। वर्ष 2014 में जब स्वच्छता मिशन की शुरुआत हुई थी तब देश भर में केवल 20 प्रतिशत कूड़े का ही निस्तारण हो पाता था। प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत मिशन के दूसरे चरण की शुरुआत करते हुए देशवासियों को आश्वस्त किया है कि इस चरण में शहरों को कचरामुक्त तो करना ही है, जल संरक्षण के लक्ष्य को भी पाना है। इस चरण में तकरीबन 2.64 करोड़ सीवर कनेक्शन और 2.68 करोड़ नल कनेक्शन देना है। 500 अमृत शहरों में सीवरेज और सेप्टेज को 100 प्रतिशत कवर करना है। 4700 शहरी स्थानीय निकायों के जरिये हर घर में नल से पेयजल की आपूर्ति करनी है। शहरी क्षेत्रों के 10.5 करोड़ से अधिक लोग इससे लाभान्वित हो सकेंगे। प्रदूषण किसी भी तरह का हो, वह नुकसान ही पहुंचाता है। प्रधानमंत्री अगर इस देश को प्रदूषण मुक्त रखना चाहते हैं तो इससे अच्छी बात भला और क्या हो सकती है ?

देश में स्वच्छता अभियान सुचारू रूप से चलता रहे, इस निमित्त धन की कोई कमी न हो, इस लिहाज से उन्होंने वर्ष 2015 में सेवा कर के दायरे में आने वाली सभी सेवाओं पर 0.5 प्रतिशत अधिभार यानी सेस लगाने का निर्णय किया था। नीति आयोग की बैठक में मुख्यमंत्रियों के समूह ने स्वच्छता अभियान के लिए पेट्रोल, डीजल पर दो फीसदी सेस लगाने की सिफारिश की थी। वहीं कोल, एल्युमीनियम, आयरन ओर के उत्पादन पर भी सेस की सिफारिश की गई थी और इस पर अमल भी शुरू हो गया है।

प्रधानमंत्री जानते हैं कि खर्च का बोझ थोड़ा-थोड़ा डाल दिया जाए तो किसी भी परियोजना का संचालन आसान हो जाता है। वायु स्वच्छ न हो तो अस्थमा, नेत्र और हृदय के रोगी बढ़ते हैं। ध्वनि प्रदूषण हो तो व्यक्ति बहरा हो सकता है और जल प्रदूषित हो तो दस्त, हैजा, टाइफाइड, अमीबीय रोग, अतिसार, ट्रेकोमा, खुजली, मलेरिया, डेंगू ज्वर, पीलिया, आंत्रशोथ, पोलियो, ट्रिपैनोसोमियासिस, ब्रैंकोफटियन, फाइलेरियासिस, चर्मरोग आदि रोग होते हैं। चिकित्सा वैज्ञानिकों की मानें कि शुद्ध वायु और शुद्ध जल मिले तो व्यक्ति 80 प्रतिशत बीमारियों से सहज ही बच जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का हाल के वर्षों में एक सर्वे आया था कि प्रतिवर्ष दुनिया भर में लगभग 50 लाख लोगों की मानव मल जनित बीमारियों से मृत्यु हो जाती है और इनमें पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या अधिक होती है। इसमें संदेह नहीं कि भारत में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च दुनिया के देशों के मुकाबले सबसे कम है, जिसमें व्यापक सुधार की जरूरत है।

महात्मा गांधी ने अपने आसपास के लोगों को स्वच्छता बनाए रखने संबंधी शिक्षा प्रदान कर राष्ट्र को एक उत्कृष्ट संदेश दिया था। उन्होंने स्वच्छ भारत का सपना देखा था। वह चाहते थे कि भारत के सभी नागरिक एक साथ मिलकर देश को स्वच्छ बनाने के लिए कार्य करें। बापू के सपनों को पूरा करने के लिए ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया था और इसके दूसरे चरण का आगाज कर उन्होंने अपने तरीके से उन्हें श्रद्धांजलि दी है। पहले चरण में उन्होंने नवरत्न बनाए थे। उन नवरत्नों ने क्या कुछ किया, इस पर चर्चा करने का कोई औचित्य नहीं है लेकिन यह एक अच्छी पहल है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।

यह देश स्वच्छता के लिए किसी न किसी रूप में सेस दे भी रहा है लेकिन जरा सी सावधानी बरतकर हम खुद भी स्वच्छ और स्वस्थ रह सकते हैं और अपने पड़ोसियों की भी मदद कर सकते हैं। जल और वायु को स्वच्छ रखना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। यह अकेले सरकार का काम नहीं है। जब तक इसमें जन भागीदारी नहीं होगी तब तक न तो हम स्वच्छ भारत बना पाएंगे और न ही स्वस्थ भारत। जिन राज्यों में भाजपा की डबल इंजन की सरकारें नहीं हैं, उन राज्यों की सरकारों को भी बिना किसी राजनीतिक राग-द्वेष के इस योजना को आगे बढ़ाना चाहिए, संप्रति यही युगधर्म भी है।

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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