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कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी कानून हो रहा रद्द, यह सही समय है खुशी मनाने का!

– डॉ. मयंक चतुर्वेदी

कर्नाटक की 224 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और भारतीय जनता पार्टी विधानसभा की 66 सीटें पाकर सत्ता से बाहर हो गई। देश ने देखा भी कि जब इलेक्शन के परिणाम घोषित हो रहे थे तब कांग्रेस के नेताओं के साथ आम कार्यकर्ताओं के चेहरे पर एक अलग प्रकार की खुशी थी। कई कार्यालयों में हनुमान जी की गदा कार्यकर्ताओं के साथ नेताओं के हाथों में लहरा रही थी और दावे यही किए जा रहे थे कि बजरंगबली का साथ भाजपा को नहीं कांग्रेस को कर्नाटक में मिला और वह सत्ता पर काबिज हो गई। लेकिन उन्हीं बजरंगबली को पूजनेवाले बहुसंख्यक समाज की रक्षा करने एवं उसके अस्तित्व को बनाए रखने के लिए जिस संविधानिक व्यवस्था से धर्मांतरण विरोधी कानून कर्नाटक में पिछली भाजपा सरकार लाई थी, आज उसी को नई कांग्रेस सिद्धारमैया सरकार रद्द करने जा रही है।

सही भी है, सत्ता जिसकी, निर्णय भी उसका । किंतु क्या यह सिद्धारमैया सरकार उन मुट्ठीभर मुसलमानों के भरोसे आई है, जोकि इस कानून के बनने के पहले दिन से ही इसका विरोध कर रहे थे? क्या यह कांग्रेस सरकार का निर्णय उन बहुसंख्यक हिन्दुओं को फिर एक संघर्ष की आग में झोंक देने वाला नहीं होगा? जिसमें प्रशासन अब तक कानून होने के कारण सहयोग करता रहा और अब तक कई लव जिहाद या अन्य इसी प्रकार के मामलों में बेटियां बचाई जाती रहीं । क्या इस एक निर्णय से पुन: ऐसी घटनाओं को बढ़ने से रोका जा सकेगा? प्रश्न अनेक हो सकते हैं, लेकिन इन सभी प्रश्नों का उत्तर एक ही है कि कानून का भय समाप्त होते ही लव जिहादी पहले से ओर अधिक खुला घूमेंगे।

कहना होगा कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने एक बार फिर हिन्दुओं को उन तमाम विवादों में झोंक दिया है, जिससे वे राज्य में धर्मांतरण विरोधी कानून होने के कारण से बचते आ रहे हैं । हम सभी जानते हैं कि कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी कानून 2022 में लाया गया था, इसके बाद पूर्व की तुलना में ऐसे मामलों में कमी देखी गई, जिसमें कि एक धर्म से दूसरे धर्म में जबरन, किसी के प्रभाव में या बहकाकर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था। वस्तुत: पूर्व की भाजपा सरकार ने ऐसा करना गैर कानूनी बना दिया था । यहां जो धर्मांतरण विरोधी कानून का उल्लंघन करता पाया जाता, उसे इसके अंतर्गत तीन से पांच साल की कैद और 25000 रुपये जुर्माना देना अनिवार्य कर दिया गया था।

इतना ही नहीं तो इस कानून के तहत धर्म परिवर्तन कराने वाले व्यक्ति पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाने का भी प्रावधान किया गया । सामूहिक तौर पर धर्म परिवर्तन के लिए तीन से दस साल तक की कैद और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है। यह भी कहा गया कि कोई भी शादी जो धर्म परिवर्तन के इरादे से ही की गई है, उसे फैमिली कोर्ट द्वारा अवैध माना जाएगा और ऐसा किया जाना गैरजमानती अपराध की श्रेणी में रखा गया।


वास्तव में इस कानून के प्रभाव से यहां देखने में आया कि जब से यह कानून बना, राज्य में ऐसे मामलों में अचानक से कमी आ गई थी। फिर भी इसमें जो सबसे अधिक प्रकरण पंजीबद्ध हुए, उनमें लव जिहाद के ही सबसे अधिक रहे, इसमें धर्मांतरण के मामलों में शिकार अधिकतम हिन्दू ही बने, जिसकी शिकायत होने पर पुलिस ने इस कानून में नियमानुसार अपनी कार्रवाई भी की । लेकिन अब आगे से यह कानून समाप्त हो रहा है। इसके साथ कानून के नियमन से व्याप्त होनेवाला भय भी समाप्त हो जाएगा। अब इसके समापन का नकारात्मक प्रभाव किस पर सबसे अधिक पड़ेगा ? स्वभाविक उत्तर है, कर्नाटक के बहुसंख्यक हिन्दू समाज पर ।

यह कुछ घटनाएं पिछले साल की हैं, जिनका उदाहरण यहां देना समीचीन होगा। पिछले साल कर्नाटक के मांड्या जिले में 13 साल की नाबालिग लड़की से ब्लैकमेलिंग और दुष्कर्म का मामला सामने आया । पता चला वह ‘लव जिहाद’ की शिकार हुई थी, एक 25 वर्षीय आरोपी ने दुष्कर्म के बाद पीड़िता को इस्लाम कबूल करने और उससे शादी करने के लिए नाबालिग को प्रताड़ित किया था। एक अन्य घटना में हुबली में मोहम्मद एजाज शिरूर से शादी करने के बाद इस्लाम धर्म अपनाने वाली अपूर्वा पुराणिक को तलाक लेने के लिए 20 बार चाकू मारा । एजाज पहले से ही शादीशुदा था और उसके दो बच्चे हैं। जांच से पता चला कि ऑटो चालक एजाज ने एमबीए स्नातक युवती को फंसाया, उसके निजी वीडियो बनाए, ब्लैकमेल किया और शादी के लिए फुसलाया था ।

वस्तुत: अकेले कर्नाटक राज्य में लव जिहाद से जुड़े ऐसे अनेकों प्रकरण अब तक दर्ज हो चुके हैं। पता नहीं राज्य के किस कौने में इस समय भी कोई बेटी, लव जिहाद की शिकार बनाई जा रही होगी! इस ठगी का कोई ठिकाना नहीं। सिर्फ कर्नाटक में ही नहीं देश भर में मुस्लिम युवाओं को हिंदू लड़कियों को फंसाने के लिए प्रशिक्षित किया जाने के आज अनेकों मामले प्रकाश में आ चुके हैं। इसके पीछे काम करने वाले संगठन न केवल युवाओं को प्रशिक्षण देते हैं, वे उन्हें बाइक, नकदी और फैशनेबल पोशाक भी प्रदान करते हैं।

इस विशेष प्रशिक्षण का परिणाम यह है कि हिन्दू लड़कियां इनके झांसे में आ जाती है, जब तक इनके गैर हिन्दू होने का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। फिर हिन्दू परिवारों में यह सिखाना कि सभी मत, पंथ धर्म समान होते हैं, वह तो बाद में जब व्यवहार में आता है तब पता चलता है कि हकीकत क्या है? तब तक एमबीए, इंजीनियरिंग और स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही हिंदू लड़कियां मैकेनिक, राजमिस्त्री और ऑटो चालकों के झांसे में आ रही हैं। इस प्रयास को मुस्लिम समुदाय और आरोपितों के परिजनों का समर्थन मिलता हुआ भी देखा गया है। जो ऐसा करने का समर्थन करते हैं, वे इसे अपनी आबादी बढ़ाने का एक हिस्सा मानते हैं।

इसके आगे यह भी एक सच है कि धर्म परिवर्तन के लिए हिंदू लड़कियों, महिलाओं को फंसाना एक बात है, किंतु उनका इस्तेमाल लाइव बॉम्बर्स के रूप में किया जाना भी सामने आ चुका है। हुबली में प्रसिद्ध बेकरी मालिक की बेटी किसी के साथ भाग जाने के बाद लापता थी, 15 साल बाद उसकी तस्वीर 1999 में कोयम्बटूर विस्फोट मामले के वांछित व्यक्तियों की सूची में दिखाई दी थी, उसे 10 वांछित व्यक्तियों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। यह साक्ष्य है कैसे हिंदू लड़कियों का उपयोग आतंकवाद के लिए किया जाता है। हिंदू लड़कियों को अगवा करने और ‘लव जिहाद’ में फंसाने के बाद उन्हें सीरिया भेजे जाने के प्रकरण भी आज सामने आ चुके हैं।

कई प्रकरणों में नाबालिग लवजिहाद की शिकार होकर पुलिस के पास मामला दर्ज कराने पहुंची हैं और कई में पुलिस नाबालिग को खोजकर मुस्लिम बस्तियों एवं अन्य स्थानों से लेकर आई और उसे उसके माता-पिता को सौंपा है। आज भी यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। प्रकरणों का आना बंद नहीं हुआ है, हां, कर्नाटक में इतना जरूर हुआ है कि धर्मांतरण कानून के भय से ऐसे प्रकरणों में कमी जरूर आई, अब कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी कानून के रद्द होने के बाद फिर से ऐसे मामलों में बढ़ोत्तरी हो जाएगी । जिनकी नाबालिग लड़की भी इसका बहुतायत में शिकार होंगी, उसका परिवार पुलिस थानों के चक्कर लगाता नजर आएगा, पहले कानून का भय था, अब ऐसे लव जिहाद करनेवाले अपराधियों को किसी का भय नहीं होगा।

अंत में यही कि सनातन धर्म यानी कि हिन्दू धर्म में बजरंगबली रहेंगे, उनकी पूजा भी होती रहेगी, लेकिन उनकी गदा जोकि शक्ति का प्रतीक है और एक तरह से आज के समय में कानून का स्वरूप है। वह कानून रूपी गदा अब बजरंग बली के पास नहीं रहेगी! हिन्दुओं के आराध्य बजरंगबली अब शक्ति रूपी इस गदा के बिना कर्नाटक में कैसे अधर्मी से किसी युवती की रक्षा कर पाएंगे, यही आज का यक्ष प्रश्न है ? जिसके बारे में अब उन तमाम हिन्दुओं को सोचना है, जिन्होंने छोटे-छोटे सत्ता में किए गए वादों के चलते कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन में अपनी आहुति दी है।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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