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समृद्धि और खुशियों का त्‍यौहार है बैसाखी, इतिहास की इन दो घटनाओं ने बना दिया और भी खास

नई दिल्ली (New Delhi)। बैसाखी मुख्‍य रूप से समृद्धि और खुशियों (prosperity and happiness) का त्‍योहार है। इसके मनाए जाने का मुख्‍य आधार पहली वैसाख को पंजाबी नववर्ष का प्रारंभ फसलों के पकने और कटने की किसानों की खुशियां हैं। इतिहास की दो घटनाओं ने बैसाखी के पर्व को अधिक यादगार और महत्वपूर्ण बना दिया। ये दो घटनाएं हैं- 1699 की बैसाखी को सिख धर्म के दशम गुरू गुरू गोविंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ का निर्माण किया तथा 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियावाले बाग में देश की आजादी के लिए हजारों लोग शहीद हुए।

1699 की बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब (पंजाब) में बैसाखी के विशाल समागम में गुरू गोविंदसिंग ने बड़े नाटकीय ढंग से देश और कौम के लिए शहीदी के जज्बे की पांच सिक्खों की परीक्षा ली। गुरू और सिख धर्म के प्रति पांचों सिक्खों की निष्ठा और समर्पण को देखते हुए गुरू साहिब से उन्हें अमृत छकाया और पांचों प्यारों का नाम दिया।


लोहे के बाटे (बड़ा कटौरा) में सतलुज नदी का पानी लेकर उसमें शकर मिलाकर गुरूजी ने अपनी कटार से हिला दिया और ये जल अमृत कहलाया। पांचों प्यारों को अमृत छकाने के बाद गुरू साहिब ने स्वयं भी पांचों प्यारों से अमृत ग्रहण किया।

अमृत छकना एक तरह से धर्म और देश की खातिर कुर्बानी के लिए तैयार रहने का संकल्प था। इसी समागम में गुरूजी ने सिक्खों को पांच ककार-कच्छ (कच्छा), कंगा, केस, कृपाण और कड़ा अनिवार्य रूप से धारण करने का निर्देश दिया। खालसा पंथ का यह स्वरूप आज भी यथावत विद्यमान है।

पद्म पुराण में कहा गया है कि वैसाख माह में प्रात: स्नान का महत्व अश्वमेध यज्ञ के समान है। वैसाख शुक्ल सप्तमी को महर्षि जह्नु ने अपने दक्षिण कर्ण से गंगाजी को बाहर निकाला था। इसीलिए गंगा का एक नाम जाह्नवी भी है। अत: सप्तमी को गंगाजी के पूजन का विधान है।

भगवान बद्रीनाथ की यात्रा की शुरुआत भी इसी माह होती है। बैसाखीबंगाल में ‘पैला (पीला) बैसाख’ नाम से, दक्षिण में ‘बिशु’ नाम से और केरल, तमिलनाडु, असम में ‘बिहू’ के नाम से मनाया जाता है।

सिख समाज बैसाखी के त्योहार को सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। पंजाब और हरियाणा के किसान सर्दियों की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियां मनाते हैं। इसीलिए यह त्योहार पंजाब और आसपास के प्रदेशों का सबसे बड़ा त्योहार और खरीफ की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक बताया गया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु गोविन्द सिंह ने वैसाख माह की षष्ठी तिथि के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसी दिन मकर संक्रांति भी थी। इसी कारण से बैसाखीका पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा। प्रत्येक 36 साल बाद भारतीय चन्द्र गणना के अनुसार बैसाखी 14 अप्रैल को पड़ती है।

बैसाखी का त्योहार बलिदान का त्योहार है। मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने तेगबहादुर सिंह को दिल्ली के चांदनी चौक पर शहीद कर दिया था, तभी गुरु गोविंदसिंह ने अपने अनुयायियों को संगठित कर ‘खालसा पंथ’ की स्थापना की थी।

अलग-अलग राज्य, अलग-अलग पर्व : बंगाल का नया वर्ष वैशाख महीने के पहले दिन 14 अप्रैल से शुरू होता है। बंगाल में इस दिन से ही फसल की कटाई शुरू होती है। इस दिन नया काम करना शुभ मानकर नए धान के व्यंजन बनाए जाते हैं।

मलयाली न्यू ईयर विशु वैशाख की 13-14 अप्रैल से ही शुरू होता है। केरल में इस दिन धान की बोवनी आरंभ होती है। हल और बैलों को रंगोली से सजाकर पूजा कर बच्चों को उपहार दिए जाते हैं।

तमिल लोग 13 अप्रैल से नया साल पुथांदू मनाते हैं। असम में लोग 13 अप्रैल को नया वर्ष बिहू मनाते हैं।

नोट- उपरोक्‍त दी गई जानकारी व सुझाव सिर्फ सामान्‍य सूचना के आधार पर पेश की गई है हम इन पर किसी भी प्रकार का दावा नहीं करते हैं.

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