खरी-खरी ब्‍लॉगर

जनता पर निर्भरता की बर्बरता… और नेताओं की आत्मनिर्भरता


जुमलों से पेट भरता देश इन दिनों एक नए शब्द की जुगाली कर रहा है… प्रधानमंत्री (Prime Minister) पूरे देश को आत्मनिर्भरता  (self-sufficiency) का नारा परोस रहे हैं… शिवराज भी उसी शब्द की जुगाली कर रहे हैं… योगी भी आत्मनिर्भरता के रोगी होने का स्वांग रच रहे हैं… सारे भाजपाशासित राज्यों के मुख्यमंत्री (Chief Minister) इसी नारे को बुलंदी में भरे हुए हैं… लेकिन हकीकत यह है कि प्रधानमंत्री सहित सारे भगवाई मुखिया अपनी आत्मनिर्भरता के लिए जनता के कांधे पर निर्भर हो रहे हैं और जनता के कांधे उनकी निर्भरता की बर्बरता सहते हुए जमीन में धंस रहे हैं… कभी पेट्रोल-डीजल की दरों पर नियंत्रण रहता था… रसोई गैस का भाव कभी नहीं बढ़ता था… दाल दो सौ की हो जाए तो हंगामा बरपता था और आलू-प्याज के दाम बढ़ जाएं तो जनता का गुस्सा इस कदर चढ़ता था कि सरकारें बदल जाती थीं… गरीब की भूख इस कदर उत्पात मचाती थी कि नेताओं के चेहरे की सुर्खियां उड़ जाती थीं, लेकिन अब लोग जुमले खाते हैं… बतोले परोसे जाते हैं… सपनों में बहलाए जाते हैं… राष्ट्रभक्ति के गीत सुनाए जाते हैं और भूखे पेट भजन गवाए जाते हैं… लोग राम मंदिर की भक्ति में इस कदर खो जाते हैं कि भूख, नींद और तड़प सब भूल जाते हैं… आवाज उठाना, दर्द जताना, विरोध पर उतर जाना अब हिमाकत कहे जाते हैं… विरोधी इस कदर नोंचे जाते हैं कि उनकी पुश्तें तक सिहर उठती हैं… जो सरकार के खिलाफ आवाज उठाता है वो राष्ट्रदोही कहा जाता है… सोशल मीडिया पर इस कदर नंगा किया जाता है कि उसकी आवाज तो आवाज आत्मा तक मर जाती है… विपक्षियों के घरों पर आयकर से लेकर हर विभाग की चढ़ाई हो जाती है… कांग्रेस ने तो आपातकाल लगाया था, लेकिन देश आज आपत्तिकाल से गुजर रहा है… विरोधियों के विनाश की कोशिशों में देश का नाश हो रहा है… सरकार आत्मनिर्भरता चाहती है, लेकिन अपनी निर्भरता देश पर लादना चाहती है… दो रुपए की बिजली दस से लेकर पंद्रह रुपए तक बेचकर कहीं उत्पादन को महंगा कर रही है… कहीं उपभोक्ता पर वजन धर रही है… 40 रुपए का पेट्रोल सौ-सौ रुपए में बेचकर देश की गति में रोड़ा बन रही है… संपत्ति कर की दरें दिनोदिन बढ़ रही हैं… आयकर से राहत नहीं मिल रही है… जीएसटी से लेकर सर पर इतने कर लदे हुए हैं कि लोग व्यापार कम करते हैं दिनभर खाते-बही मेें उलझे रहते हैं… कानून के दांव-पेंच इस कदर सताते हैं कि लोग केवल वकीलों के चक्कर लगाते नजर आते हैं… वसूली करने वाले अधिकारी दुकान-दफ्तरों पर ताले लगा जाते हैं…देश को यदि आत्मनिर्भर बनाना है… अपने पैरों पर खड़ा देश दुनिया को दिखाना है तो कीमतों को काबू में लाना होगा… सस्ती बिजली, नियंत्रित कर और अधिकारियों की आफत से मुक्ति दिलाना होगा…

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