उज्‍जैन न्यूज़ (Ujjain News)

आ गया बर्ड फ्लू… प्रदेशभर में अलर्ट

  • नॉनवेज के कारोबार पर मंडराया खतरा
  • 48 से ज्यादा पक्षियों की मौत बीते वर्ष दिसंबर-जनवरी के मध्य
  • बीते वर्ष 32 जिलों में हुई थी 4500 पक्षियों की मौत

उज्जैन। मानव जिंदगी पर मंडराते कोरोना की तीसरी लहर के खतरे के बीच प्रदेश में पक्षियों पर भी संक्रमण का जोखिम बढ़ गया है। आगर-मालवा जिले में बर्ड फ्लू की पुष्टि हुई है। तीन दिनों में करीब 48 कौओं की मौत के बाद राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान केन्द्र भोपाल भेजी गई सैंपल रिपोर्ट ने बर्ड फ्लू की पुष्टि की है। इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग ने सतर्कता बरतने का निर्देश जारी कर दिया गया है। गौरतलब है कि बीते वर्ष प्रदेश के 32 जिलों में 4500 पक्षियों की मौत बर्ड फ्लू से हुई थी। इस कारण चिकन-मटन के कारोबार पर विपरीत प्रभाव पड़ा था। इस बार भी फिलहाल आगर-मालवा में चिकन-मटन की दुकानें बंद करा दी गई हैं। अगर बर्ड फ्लू पैर पसारता है तो प्रदेशभर में कारोबार पर असर पड़ेगा।


सभी जगह की जा रही निगरानी
प्रदेश में आगर-मालवा जिले से बर्ड फ्लू ने दस्तक दे दी है। बीते वर्ष भी इस इलाके में बर्ड फ्लू फैला था, उम्मीद थी कि गुजरे घटनाक्रम के बाद इस वर्ष सर्दियों की शुरूआत में ही पशु चिकित्सा विभाग सक्रिय होकर प्रवासी पक्षियों के संभावित स्थलों पर निगरानी एवं त्वरित बचाव और सुरक्षा के लिए कुछ खास करेगा, लेकिन तमाम दावे फिर से कागजी साबित हो गए। भोपाल मुख्यालय प्रदेशभर में प्रवासी पक्षियों की आमद पर नजर रखने का दावा करता रहा और मैदानी हालात एक नए खतरे में डाल गए हैं। प्रदेश के ज्यादातर वे स्थल जहां प्रवासी पक्षियों का कुछ दिनों के लिए ठहराव होता है, वहां अब तक कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है। ऐसे सभी ठहराव स्थलों वाले प्रमुख जिलों में तो कंट्रोल रूम भी नहीं बने हैं तो स्थानीय अमले की अनदेखी भी जारी है।

प्रवासी से स्थानीय को खतरा
प्रवासी पक्षियों से स्थानीय पक्षियों को खतरा रहता है, क्योंकि ज्यादातर प्रवासी अपने साथ संक्रमण लेकर आते है। प्रदेश में सर्दियों की शुरूआत के साथ ही मेहमान (प्रवासी) पक्षियों का आना शुरू हो गया है। अरावली के पठार से लेकर गांधीसागर, नर्मदा-क्षिप्रा तटों वाले इलाकों और मध्यप्रदेश-राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों के जलाशयों पर इन पक्षियों को देखा जा सकता है। मेहमान की आमद वैसे तो खुशियों वाली होती है, लेकिन अनदेखी और निगरानी तंत्र की लचरता के कारण मेजबान पक्षियों की जान जोखिम में आ गई है। दअरसल, प्रवासी पक्षियों के ठहराव स्थलों पर अब तक न तो कोई निगरानी व्यवस्था सक्रिय हुई है और ना ही किसी विशेष सूचना व सतर्कता का संदेश देता कंट्रोल रूम ही स्थापित किया गया है, महज कागजों पर समूचित चौकसी का दावा हो रहा है।

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