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कोविड-19 : ‘मैं जब रात मे सोती हूँ, तब मेरा फ़ोन कोरोना वायरस पर रिसर्च करता है’

आज तक अपने कई अजीबो गरीब घटनाये सुनी होगी, ऐसा ही कुछ घटना है लन्दन की रहने वाली हैना लॉसन की, रात में हैना लॉसन-वेस्ट का रूटीन सभी सामान्य जीवन जीने वाले लोगों की तरह होता है। वे क़रीब साढ़े दस बजे सोने की तैयारी करती हैं। बिस्तर में जाने से पहले ब्रश करना, इस बीच अपने इलेक्ट्रिक बेड को गर्म होने के लिए छोड़ देना और मुँह धोकर सोने के लिए जाना। सोने से पहले हैना कुछ ख़बरिया साइट्स देखती हैं। अपना इंस्टाग्राम चेक करती हैं और फिर फ़ोन को चार्जिंग पर लगाकर सो जाती हैं। जब 31 वर्षीय हैना अपने लंदन स्थित घर में सो रही होती हैं, तो क़रीब आठ घंटे तक उनका फ़ोन एक अलग ड्यूटी पर होता है। वो कुछ वैज्ञानिकों को अपनी पावर इस्तेमाल करने देता है, ताकि कोरोना वायरस से जुड़ी रिसर्च में उनकी मदद हो सके. हैना, दुनिया के उन क़रीब एक लाख लोगों में शामिल हैं जो निरंतर रूप से ड्रीमलैब ऐप को ‘स्मार्टफ़ोन कम्प्यूटिंग टाइम’ डोनेट करते है।

ये ऐप एक रिसर्च के ज़रिये यह पता करने की कोशिश कर रहा है कि किन न्यूट्रिएंट्स की मदद से कोविड-19 के मरीज़ों का फ़ायदा हो सकता है,  ख़ासकर उन लोगों का जो लंबे समय तक ‘कोविड-19’ के लक्षणों से ग्रसित रहे। अब तक इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि किसी किस्म के खाने से कोविड से बचा जा सकता है या कुछ चीज़ें खाने से यह वायरल संक्रमण नहीं होता। लेकिन इस क्षेत्र में रिसर्च की जा रही है और यह ऐप इसी का पता लगाने की कोशिश कर रहा है। यह अध्ययन इम्पीरियल कॉलेज लंदन और द वोडाफ़ोन फ़ाउंडेशन चैरिटी द्वारा किया जा रहा है. बताया गया है कि स्मार्टफ़ोन कंप्यूटर नेटवर्क जिस डेटा को तीन महीने में प्रोसेस कर सकता है, उसे प्रोसेस करने में सामान्य कंप्यूटर को 300 वर्ष लगेंगे।

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