लोहरदगा। रंगों का पर्व होली एक ऐसा त्योहार है कि पूरे देश में अलग अलग ढंग से लोग मनाते हैं। कहीं कहीं ऐसी होली मनाई जाती है कि कुछ अलग अलौकिक (supernatural) ही रहती है। जैसे कुमाऊं में होली गायन की विशिष्ट परंपरा (Holi Singing Tradition) है। यहां होली हुड़दंग नहीं, बल्कि उत्सव व उल्लास का पर्व है। हारमोनियम, तबला व मजीरे की जुगलबंदी में शास्त्रीय रागों पर मधुर होली गीत कानों में मिठास घोल देते हैं। गांव हो या शहर, आजकल हर तरफ यहीं नजरा है।
इस इसी तरह झारखंड में भी अलग ही तरह की होली मनाई जाती है। जिले के सेन्हा प्रखंड अंतर्गत बरही चटकपुर गांव का ढेला मार होली जिला भर में ही नहीं बल्कि पूरे राज्य भर में प्रसिद्ध है। बुद्धिजीवियों का कहना है कि साल संवत कटने के दूसरे दिन लोग धर्म के प्रति आस्था के साथ खूंटा उखाड़ने जाते हैं। इस समय लोग खूंटा उखाड़नेवाले को ढेला से मारते हैं।
बताया जाता है कि यह असत्य पर सत्य के विजय का प्रतीक है। इसे देखने के लिए जिले के अलावा विभिन्न इलाकों से ग्रामीण पहुंचते हैं। चौंकाने की बात यह है कि इस ढेला मार होली में मुसलिम समुदाय के लोग भी खूंटा उखाड़ने के लिए दौड़ते हैं। यहां सभी मिल कर भाईचारे के साथ ढेला मार होली मनाते हैं।
लोगों का कहना है कि यहां के ग्रामीण कई वर्षों से इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं। मान्यता है कि पत्थर से लोगों को चोट नहीं लगती। पत्थर मारने के बावजूद जो बिना डरे खंभे को उखाड़ कर देवी मण्डप के पीछे फेंकता है, उसे सुख, शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। लोगों के मुताबिक इस परंपरा को निभाने और प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए लोगों में उत्सुकता नजर आती है। Share: