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डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर राष्ट्रीय सम्मान से विभूषित होंगी दो विभूतियां

– संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर बुधवार को करेंगी प्रो. रविन्द्र कोरिसेट्टार और डॉ. नारायण व्यास को सम्मानित

भोपाल। प्रदेश की संस्कृति, पर्यटन और धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व मंत्री उषा ठाकुर (Minister Usha Thakur) बुधवार 4 मई को शाम 4:30 बजे डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर सम्मान (Dr. Vishnu Shridhar Wakankar Award) से दो विभूतियों को सम्मानित करेंगी। इस वर्ष प्रो. रविन्द्र कोरिसेट्टार (Pro. Ravindra Korisettar) वर्ष 2018-19 और डॉ. नारायण व्यास (Dr. Narayan Vyas) को 2019-20 के लिए सम्मानित किया जाएगा।


जनसम्पर्क अधिकारी अनुराग उइके ने मंगलवार को बताया कि संस्कृति विभाग और संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय के तत्वावधान में राज्य संग्रहालय सभागार में 4 मई को सम्मान समारोह होगा। पुरा सम्पदा के संरक्षण एवं पुरातात्विक संस्कृति के क्षेत्र में रचनात्मक, सृजनात्मक एवं विशिष्ट उपलब्धियाँ अर्जित करने वाले सक्रिय भारतीय नागरिक और संस्था को पुरातत्व विभाग की ओर से यह सम्मान दिया जाता है।

प्रो. रविन्द्र कोरिसेट्टार
प्रो. रविन्द्र कोरिसेट्टार का जन्म 8 जुलाई 1952 को होसपेट (कर्नाटक) में हुआ। उन्होंने प्रो. एचडी सांकलिया के सानिध्य में पुरातत्व के क्षेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने पुरातत्व में प्रागेतिहास को अपना विषय चुना एवं भारतीय प्रागेतिहास को विश्व में महत्वपूर्ण स्थान दिलाने में अहम योगदान दिया। विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं एवं शोध पत्रिकाओं से सक्रिय रूप से जुड़े रहे एवं कुछ शोध पत्रिकाओं का संपादन भी किया। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने डॉ. डीसी सरकार पेवेट चेयर प्रोफेसर (2013 – 15), डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर सीनियर फेलो (2015 – 17), उच्च शिक्षा अनुदान आयोग के इमेरिटस फेलो (2017-19) और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के सीनियर विधा विषयक फेलो (2019-21) के रूप में अनेक शोध कार्य किए है।

डॉ. नारायण व्यास
डॉ. नारायण व्यास का जन्म 5 जनवरी 1949 को उज्जैन में हुआ। गुरूवर पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर के पद चिन्हों पर चलते हुये उन्होंने भारतीय शैल चित्रकला को विश्व पटल पर विशेष स्थान दिलाने में अहम् योगदान दिया। वर्ष 2009 में सेवानिवृत्ति के बाद पुरातत्व में विशेषकर शैल चित्रकला के सरंक्षण एवं प्रबंधन के लिये भोपाल के विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के छात्रों एवं शोधार्थियों के लिये सतत् प्रेरणा स्रोत बने हुये हैं। उनके 100 से अधिक शोध-पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। (एजेंसी, हि.स.)

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