खुद के न्याय के लिए लडऩा पड़ेगा भावी जजों को
इंदौर। मध्यप्रदेश (MP) उच्च न्यायालय (High Court) द्वारा सिविल जज (व्यवहार न्यायाधीश कनिष्ठ डिवीजन) की भर्ती परीक्षा के लिए जारी विज्ञापन में अनुचित एवं मापदंडों के कारण लगभग 90 प्रतिशत अभ्यर्थी परीक्षा देने से वंचित हो जाएंगे परीक्षा की शर्तों के अनुसार वे ही अभ्यर्थी यह परीक्षा दे सकते हैं, जो 3 वर्षों तक वकालत का अनुभव रखते हो अथवा एलएलबी या बीए एलएलबी में मेरिटोरियस छात्र के रूप में प्रति सेमेस्टर 70 प्रतिशत से अधिक अंक लेकर एक ही प्रयास में उत्तीर्ण हुए हो। इसके साथ ही योग्यता मापदंड में 3 वर्ष की वकालत को लेकर यह भी स्पष्ट किया गया है कि प्रतिवर्ष 6 न्यायिक प्रोसिडिंग, जिसमें सारवन निर्णय हुए हो, उन्हें आवेदन के साथ प्रस्तुत करना आवश्यक है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट और मप्र के चीफ जस्टिस को रिप्रेजेंटेशन भेजते हुए लॉ प्रोफेसर पंकज वाधवानी ने कहा कि व्यावहारिक धरातल पर दोनों ही दोनों ही शर्तें सिविल जज अभ्यर्थियों के लिए अनुचित एवं अन्यायपूर्ण है।
वाधवानी का कहना है कि पहली शर्त 3 वर्ष की वकालत तक तो यह उचित हो सकती है, किंतु प्रतिवर्ष 6 न्यायिक प्रोसिडिंग, जिसमें सारवन आदेश अथवा निर्णय को प्रस्तुत किए जाने की शर्त पूर्णत: अनुचित है, क्योंकि विधि स्नातक होने के उपरांत वकालत करते समय किसी न किसी सीनियर के इंटर्न होकर अभ्यर्थी जूनियर अधिवक्ता वकालत व्यवसाय प्रारंभ करता है। ऐसे में अभ्यर्थी के जूनियर अधिवक्ता होने की वजह से न्यायिक प्रोसिडिंग में किसी भी निर्णय अथवा आदेश में उसे जूनियर अभ्यर्थी का नाम अंकित हो, यह संभव नहीं रहता है, क्योंकि सीनियर अधिवक्ता केस की मुख्य बहस में जूनियर अधिवक्ता को भेजते ही नहीं हैं। इसी वजह से जूनियर अभ्यर्थी अधिवक्ता का नाम सारवन प्रोसिडिंग में आना संभव नहीं है। इसी तरह दूसरी शर्त कि विद्यार्थी अभ्यर्थी को एलएलबी अथवा बीए एलएलबी में बिना दूसरे प्रयास के 70 प्रतिशत अंकों से पास होना उत्तीर्ण होना आवश्यक है, जबकि ऐसे अनेक मेरिटोरियस छात्र-छात्राएं हैं, जिनके 70 से ऊपर प्रतिशत है, किंतु किसी ने किसी कारणवश कोई एक पेपर छूट जाने की वजह से उन्हें दूसरा प्रयास करना पड़ा। ऐसे में वे छात्र-छात्राएं भी इस शर्त की वजह से परीक्षा से वंचित हो जाएंगे।
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