क्राइम भोपाल न्यूज़ (Bhopal News) मध्‍यप्रदेश

कुठियाला की क्लोजर रिपोर्ट में उलझी EOW

  • भ्रष्टाचार की जांच करने वाली सरकारी एजेंसी खुद कठघरे में

भोपाल। सरकारी धन के दुरुपयोग, गबन और आर्थिक अनियमिताओं की जांच करने वाली मप्र सरकार की एक मात्र एजेंसी आर्थिक अपराध अन्वेषण प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू)खुद कठघरे में है। ईओडब्ल्यू ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविवद्यालय (एमसीयू)से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में हाल ही में कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट पेश की थी। इसी रिपोर्ट के मामले में ईओडब्ल्यू खुद उलझ गई है। साथ ही खास पर भी सवाल उठ रहे हैं।



दरअसल, ईओडब्ल्यू ने भ्रष्टाचार के मामले में एमसीयू के पूर्व कुलपति बीके कुठियाला सहित 20 लोगों के खिलाफ दर्ज एक प्रकरण में खात्मा लगाने के लिए प्रदेश सरकार के नियमों को धता बताते हुए स्पेशल कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी। कमलनाथ सरकार के दौरान राज्य शासन की जांच के लिए 181 शिकायतें कमेटी मिलीं थी। इसमें से 131 शिकायतें विवि में विभिन्न पदों पर हुईं नियुक्तियों से संबंधित हैं। मजेदार बात यह है कि एमसीयू की धांधली उजागर करने और शिकायत करने वालों में शामिल आशुतोष मिश्रा को क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट में रखे जाने की सूचना नहीं दी, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार के ही एक सर्कुलर से पूरा मामला उलझ गया। शिकायतकर्ता आशुतोष मिश्रा को इसकी जानकारी मीडिया से मिली। इसके बाद उन्होंने अपना पक्ष रखने की कोशिश की तो ईओडब्ल्क्यू ने उसका भी विरोध किया। अलग-अलग कारण बताते हुए ईओडब्ल्क्यू ने कोर्ट में कहा कि आशुतोष मिश्रा की क्लोजर रिपोर्ट और इसके साथ दिए गए दस्तावेजों की कॉपी उपलब्ध कराए जाने का आवेदन खारिज किया जाए। इस मामले में प्रो. कुठियाला सहित 20 लोगों पर चल रहा केस खत्म होने की वाला था कि उनके द्वारा दिए गए तर्क को स्पेशल कोर्ट के जज समाधिया ने सही मानते हुए, उन्हें पक्ष रखने का मौका दिया। कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। इससे ईओडब्ल्यू की साख पर सवाल उठना शुरू हो गए हैं।

बड़े मामलों की जांच कर रही है ईओडब्ल्यू
ईओडब्ल्यू में मप्र सरकार में हुए अरबों रुपए के भ्रष्टाचार की जांच लंबित हैं। जिनमें ई-टेंडरिंग घोटाला भी एक हैं। इसके अलावा एनवीडीए, जल संसाधन विभाग, छात्रवृत्ति वितरण, लेपटॉप एवं साइकिल खरीदी, बुंदेलखंड पैकेज घोटाला समेत कई प्रकरण सालों से लंबित हैं। एमसीयू मामले में ईओडब्ल्यू ने जिस तरह से वित्तीय अनियमितता और अवैध नियुक्तियों के आरोपियों को बचाने की कोशिश की है, उससे ईओडब्ल्यू की कार्यप्रणाली कठघरे में है।

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