ज़रा हटके विदेश

पहले 30 दिन, अब 100 दिन पानी के अंदर रहेगा यह वैज्ञानिक, जानिए क्‍या है इस प्रयोग का मकसद?

फ्लोरिडा कीज़ (Florida Keys) । क्या आप पानी के अंदर किसी डिब्बे में बंद होकर कुछ मिनट बिता सकते हैं? अकेलापन, पानी का दबाव, सन्नाटा आपको पागल कर देगा. लेकिन एक अमेरिकी वैज्ञानिक 1 मार्च 2023 से फ्लोरिडा कीस में 30 फीट गहरे पानी में रह रहा है. एक महीने से ज्यादा हो चुका है. वैज्ञानिक का नाम है जोसेफ दितुरी (Joseph Dituri) उर्फ जो दितुरी.

जोसेफ का मकसद है कि वो पानी के अंदर 100 दिन बिताने का रिकॉर्ड बनाएं. फिलहाल वो एक पानी में 592 वर्ग फीट के एक बक्से में बंद हैं. अगर उन्होंने यह काम कर लिया तो वो समुद्र के अंदर रहने का पुराना रिकॉर्ड (old record) तोड़ डालेंगे. इस दौरान जोसेफ हाइपरबेरिक प्रेशर (Hyperbaric Pressure) की वजह से शरीर पर पड़ने वाले असर को जांचेंगे.

जोसेफ एक पूर्व नौसैनिक गोताखोर और बायोमेडिकल इंजीनियर हैं. हाइपरबेरिक प्रेशर यानी समुद्र की सतह पर हवा के दबाव की तुलना में पानी के अंदर मौजूद दबाव ज्यादा होता है. इसे ही हाइपरबेरिक प्रेशर कहते हैं. दितुरी का एक्सपेरिमेंट इसलिए अलग है क्योंकि जोसेफ का बक्सा पनडुब्बी की तरह सीलबंद नहीं है. उसमें कोई एयरलॉक नहीं है. बक्से के अंदर भी पानी आ-जा रहा है.

एक एयरपॉकेट, एक पूल और खुला समुद्र
बस एक ही चीज खास है कि इस बक्से में एयरपॉकेट बना है, जिसमें वो बीच-बीच में सांस लेने और सोने के लिए आते हैं. बक्से में पानी का एक पूल है. इसी पूल से वो बाहर खुले समुद्र में आते-जाते हैं. बक्से में मौजूद एयरपॉकेट समुद्री प्रेशर यानी हाइपरबेरिक प्रेशर से घिरा हुआ है. जो लगातार जोसेफ के चारों तरफ दबाव बढ़ाकर रखता है. 30 फीट की गहराई में सतह की तुलना में दोगुना हवा का प्रेशर होगा.


क्या करना चाहते हैं जोसेफ दितुरी?
लंबे समय तक पानी के अंदर भारी दबाव में रहना नुकसानदेह है. एक पूर्व नौसेना गोताखोर होने की वजह से जोसेफ दितुरी ये बात जानते हैं कि उन्हें किस तरह का नुकसान हो सकता है. लेकिन वो ये भी कहते हैं कि हमारे शरीर ने पर्यावरण के हिसाब से ढलना सीखा है. कई पीढ़ियों से उसमें पर्यावरण और जलवायु के हिसाब से परिवर्तन हुए हैं. समुद्र में रहक इवोल्यूशन की प्रक्रिया को समझना आसान हो जाएगा. सिर्फ ऑक्सीजन और CO2 ही फेपड़े को मिलेंगे.

कुछ दिन में वो हमेशा नशे में रह सकते हैं
ये दोनों हवा ही हमारे फेफड़ों तक जाते हैं. निकलते हैं. खून में घुलते हैं. साफ होते रहते हैं. लेकिन जब दबाव बढ़ता है तब नाइट्रोजन फेफड़ों और खून में मिलने लगता है. 33 से 98 फीट की गहराई में 30 फीट की गहराई में जोसेफ को ऐसा लगेगा जैसे उन्होंने कोई तेज नशा किया हो. इसे नार्कोसिस कहते हैं. वैज्ञानिक इसके पीछे की वजह अभी तक नहीं खोज पाए हैं.

सोने-जगने की साइकिल बिगड़ सकती है
जोसेफ जहां हैं, वहां पर एक बड़ी खिड़की है, लेकिन उन्हें जमीन की तुलना में सूरज की सिर्फ आधी रोशनी ही मिल रही है. इसकी वजह से उनके सिरकार्डियन रिदम पर असर पड़ेगा. यानी शरीर की अंदरूनी घड़ी, जो शरीर के जरूरी अंगों के काम को नियंत्रित करती है. जगने और सोने के साइकिल को चलाती है. ये दिन की रोशनी पर निर्भर करती है. यानी जोसेफ की नींद खराब होने वाली है. या अब तक हो चुकी होगी.

14 दिनों में कम हो चुकी होगी इम्यूनिटी
सूरज की रोशनी कम मिलने से उन्हें विटामिन डी की कमी होगी. इससे उनकी हड्डियों का घनत्व, मांसपेशियों की कार्यशैली और इम्यूनिटी कमजोर होंगे. पानी के अंदर रहने पर 14 दिन के अंदर ही इंसानों की इम्यूनिटी कम हो जाती है. जोसेफ तो एक महीना पहले ही पानी के अंदर बिता चुके हैं. इसके लिए उन्हें विटामिन डी की गोलियां खानी होंगी. सप्लीमेंट्स या यूवी लैंप से रोशनी लेनी होगी. ताकि इम्यूनिटी को नुकसान कम हो.

बीमारियों का खतरा भी ज्यादा
अगर इम्यूनिटी कमजोर हुई तो हमारे शरीर के वायरस, बैक्टीरिया सक्रिय हो जाते हैं. ऐसे में जोसेफ को यह खतरा भी है कि वो जल्द ही बीमार पड़ जाएं. ऐसे छोटे से बंद बक्से के अंदर उन्हें स्वीमिंग करके, एक्सरसाइज करके खुद को फिट रखना होगा. वो वैसा कर भी रहे हैं. ताकि मांसपेशियां, हड्डियां और इम्यूनिटी कमजोर न पड़े. क्योंकि पनडुब्बियों में रहने वाले लोग भी दो महीने में कई तरह की दिक्कतों से परेशान होने लगते हैं.

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