इंदौर न्यूज़ (Indore News)

2 साल घास काटी और 225 एकड़ जमीन का मालिक बन बैठा वन विभाग

  • जमीनी जादूगरों के शहर में एक सरकारी महकमे ने भी दिखाई जादूगरी… छोटा बांगड़दा और नैनोद की जमीनें अपनी बताई और प्राधिकरण का कन्वेंशन सेंटर प्रोजेक्ट अटका दिया
इंदौर, राजेश ज्वेल। जमीनी जादूगरों के शहर में तो नित नए करतब नजर आते हैं, वहीं सरकारी महकमे भी इस तरह की जादूगरी दिखा देते हैं। योजना 172 में शामिल 95 हेक्टेयर राजस्व विभाग की जमीन कुछ समय पूर्व प्राधिकरण को सौंपी गई। मगर इस जमीन पर वन विभाग अपना आधिपत्य बताता रहा है, जिसके चलते मुख्यमंत्री द्वारा घोषित किए गए 10 हजार की बैठक क्षमता वाले कन्वेंशन सेंटर का प्रोजेक्ट अटका पड़ा है। प्राधिकरण को टीसीए और इन्फोसिस को दी गई जमीन के बदले शासन-प्रशासन ने छोटा बांगड़दा और नैनोद की ये जमीन आबंटित की है। मजे की बात यह है कि राजस्व रिकॉर्ड में केवल दो साल शिकमी काश्तकार यानी किसी और की जमीन पर खेती करने वाले किसान के रूप में वन विभाग ने घास कटाई का काम किया और बदले में 225 एकड़ जमीन का मालिक बन बैठा। जबकि होल्कर राज में मिलेट्री डिपार्टमेंट को इन जमीनों पर घास घटाई का काम सौंपा गया था।
इंदौर विकास प्राधिकरण ने सुपर कॉरिडोर पर 85 एकड़ जमीन टीसीएस और इन्फोसिस के लिए शासन को सौंपी थी, उसके बदले नगरीय विकास और आवास विभाग मंत्रालय के आदेश के चलते छोटा बांगड़दा और नैनोद की 95 हेक्टेयर सरकारी जमीन प्राधिकरण को आबंटित की गई, जिस पर प्राधिकरण ने मुख्यमंत्री की घोषणा अनुरूप विशाल कन्वेंशन सेंटर का प्रोजेक्ट तैयार करवाया। मगर वन विभाग ने इस जमीन पर आपत्ति ले ली। नतीजतन प्राधिकरण कन्वेंशन सेंटर के प्रोजेक्ट पर अमल अभी तक नहीं कर पाया। इस संबंध में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में होने वाली कमेटी में ही हालांकि तय होगा। मगर जो राजस्व रिकॉर्ड अग्निबाण को हासिल हुए उससे पता चलता है कि छोटा बांगड़दा और नैनोद की जमीन 1925-26 से लेकर 17-18 तक खालसा हाउस कारखाना होल्कर स्टेट के नाम से दर्ज थी और बाद में उसे प्राधिकरण के नाम से दर्ज कर दिया गया। पूर्व में उषा राजे ट्रस्ट ने भी इन जमीनों पर अपना आधिपत्य जताया था, मगर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पूर्व जो आदेश दिया था उसमें ये जमीनें ट्रस्ट की बजाय सरकारी ही बताई गई। दो वर्ष तक इस जमीन पर 1953-54 और 57-58 में वन विभाग शिकमी काश्तकार के रूप में घास कटाई का काम करता रहा, जो कि उसे होल्कर राज के मिलेट्री विभाग ने सौंपा था। मात्र 2 साल घास कटाई करने के आधार पर ही वन विभाग ने इस 225 एकड़ जमीन को अपने स्वामित्व की मान लिया।
इसमें से कुछ जमीन सश पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र के नाम पर भी रही है। राजस्व रिकॉर्ड बताते हैं कि होल्कर राज के दौरान उसके आर्मी विभाग के पास उक्त जमीन थी, जहां पर घास उगाई जाती थी और जिसकी कटाई का जिम्मा वन विभाग को सौंपा था। सुप्रीम कोर्ट ने भी जब इन जमीनों के संबंध में अपना अभिमत दिया था उसमें  वन विभाग को हस्तांतरित होने के कोई साक्ष्य नहीं मिले थे। बिजासन बीड की जमीनें भी संरक्षित वन भूमि के रूप में होने के कोई साक्ष्य सिद्ध नहीं पाए गए और ना ही यह भूमि वन अधिनियम के तहत घोषित की गई। संरक्षित भूमि पाई गई। बावजूद इसके सालों से वन विभाग इन जमीनों पर अपना स्वामित्व जताता रहा और नतीजतन प्राधिकरण कन्वेंशन सेंटर प्रोजेक्ट को अमल में अभी तक नहीं ला पाया है। जबकि केफियत कॉलम में भी जो प्रविष्टि हुई वह वन विभाग को इन दोनों खसरे को रमणा बिजासन के रूप में चिन्हित करने में भी कोई मदद नहीं करती है। प्राधिकरण द्वारा कलेक्टर से लेकर शासन को भी इस संबंध में लगातार पत्र लिखे गए हैं और अब जल्द ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में होने वाली कमेटी में खसरा नं. 322, 334 में शामिल 95 हेक्टेयर जमीन पर निर्णय होगा और वन विभाग की आपत्ति हटेगी।
प्राधिकरण का भी मानना है कि टीसीएस और इन्फोसिस के बदले जो जमीन शासन-प्रशासन ने दी है वह राजस्व विभाग की जमीन होने के चलते ही प्राप्त हुई है और तमाम रिकॉर्डों से यह स्पष्ट है कि ग्राम नैनोद की उक्त भूमि अधिसूचित रक्षित वन की श्रेणी में नहीं आती है और इसके बावजूद वन विभाग के स्वामित्व और आधिपत्य में फिलहाल अधिक भूमि वैसे भी मौजूद है। इतना ही नहीं, प्राधिकरण ने बोर्ड संकल्प क्रमांक 11, दिनांक 06.02.2023 के मुताबिक 10 हजार की बैठक क्षमता वाला कन्वेंशन सेंटर बनाने का निर्णय उक्त जमीन पर ले लिया और प्राधिकरण अध्यक्ष जयपालसिंह चावड़ा का कहना है कि हमारी सारी तैयारी हो चुकी है। ड्राइंग-डिजाइन से लेकर कंसल्टिंग फर्म से भी प्रोजेक्ट तैयार करवा लिया है। जल्द ही मुख्यमंत्री से भी इस संबंध में चर्चा की जाएगी ताकि वन विभाग की आपत्ति का जल्द निराकरण हो सके और प्राधिकरण उनकी मंशा अनुरूप विशाल कन्वेंशन सेंटर निर्मित कर सके। उल्लेखनीय है कि प्रवासी भारतीय सम्मेलन में विदेशी मेहमानों को प्रवेश ना मिलने का मुद्दा जब गरमाया था तब मुख्यमंत्री ने इंदौर में विशाल कन्वेंशन सेंटर का जिम्मा प्राधिकरण को सौंपा।
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