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ज्ञानवापी विवाद : ‘Places of Worship Act 1991’ पर टिकी मुस्लिम पक्ष की दलीलें, जानिए क्‍या है कानून ?

नई दिल्‍ली । ज्ञानवापी विवाद (Gyanvapi Masjid controversy) में कल का दिन काफी अहम होने वाला है. मुस्लिम पक्ष (Muslim Community) की तरफ से सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) का रुख किया गया है और ‘Places of Worship Act 1991’ के आधार पर अपनी दलीलें पेश की जाएंगी. कहा जा रहा है कि मुस्लिम पक्ष का पूरा मामला ही इस एक कानून पर टिका है. ऐसे में इस कानून की एबीसीडी समझना जरूरी हो जाता है जिसकी आधारशिला साल 1991 में पड़ी थी.

1990 के दौरान जब अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन तेज हुआ तो केंद्र सरकार को लगा कि देशभर में अलग-अलग धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद बढ़ सकता है और इससे हालात बेहद गंभीर हो जाएंगे. ऐसे में नरसिम्हा राव सरकार.. 11 जुलाई 1991 को Places of Worship Act 1991 लेकर आई. इस एक्ट के अनुसार 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था और जिस समुदाय का था… भविष्य में भी उसी का रहेगा. चूंकि अयोध्या का मामला उस समय हाई कोर्ट में था इसलिए उसे इस क़ानून से अलग रखा गया था.


1991 में केंद्र सरकार जब ये क़ानून लाई तब भी संसद में इसका विरोध हुआ था और इस मामले को संसदीय समिति के पास भेजने की मांग उठाई गई थी. हालांकि ये एक्ट पास होकर लागू हो चुका था. इसके बाद नवंबर 2019 में राम मंदिर विवाद ख़त्म होने के बाद काशी और मथुरा सहित देशभर के लगभग 100 मंदिरों की जमीनों को लेकर दावेदारी की बात उठने लगी. लेकिन Places of Worship Act के कारण… दावेदारी करने वाले लोग… अदालत का रास्ता नहीं चुन सकते, इससे ये विवाद और बढ़ता चला गया.

हाल ही में बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. याचिका में कहा गया है कि Places of Worship क़ानून…. हिंदू, जैन, सिख और बौद्धों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करता है. उनके जिन धार्मिक और तीर्थ स्थलों को विदेशी आक्रमणकारियों ने तोड़ा उन्हें फिर से बनाने के क़ानूनी रास्ते को बंद करता है.

इस याचिका में एक्ट की धारा 2, 3 और 4 को चुनौती दी गई है इसमें विशेष रूप से कानून के सेक्शन 4 का सब-सेक्शन 3 कहता है कि जो प्राचीन और ऐतिहासिक जगहें हैं उन पर ये कानून लागू नहीं होगा. इस कानून में Ancient sites की परिभाषा भी दी गई है जिसके अनुसार सौ साल या उससे ज़्यादा पुराना कोई भी निर्माण हो तो उसे Ancient माना जाएगा. इस नियम के हिसाब से कानून के कुछ जानकारों का मानना है कि मथुरा और काशी के मंदिरों के मामले इस कानून से बाहर हो जाते हैं.

याचिका के मुताबिक ये कानून… संविधान के समानता के अधिकार, गरिमा के साथ जीवन के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दखल देता है इसलिए इस पर रोक लगानी चाहिए. अश्विनी उपाध्याय का तर्क है कि अगर सुप्रीम कोर्ट में Places of Worship Act 1991 में Ancient sites की परिभाषा साबित हो जाती है तो काशी और मथुरा इस कानून के दायरे बाहर हो सकते हैं… अगर ऐसा हुआ तो देशभर में 100 से ज़्यादा ऐसे धार्मिक स्थान हैं जिन्हें लेकर ये तथ्य रखे जाते हैं कि इन्हें औरंगजेब के शासन के दौरान तोड़ा गया था और अब इन्हें मूल स्वरूप में फिर से लौटाया जाए.

इनमें 1645 में अहमदाबाद में चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर का ये तथ्य सामने आता है कि औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण करवाया था. इसके बाद 1655 में तेलंगाना के बोधान में एक मंदिर को नष्ट करने की जानकारी मिलती है. इसी तरह 17वीं शताब्दी के शुरूआत में सतारा, महाराष्ट्र में खंडोवा मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने के प्रमाण मिलते हैं. 1665 में एक बार फिर औरंगजेब शासन के दौरान सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण की बात सामने आई थी. ये दावा किया जाता है कि 1669 में काशी में विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद के अलावा बिन्दुमाधव मंदिर को तोड़कर औरंगजेब ने आलमगीर मस्जिद बनवाई थी. इतिहासकारों के अनुसार ये लिस्ट बहुत लंबी है..इसमें हरियाणा से लेकर कर्नाटक और बंगाल से लेकर राजस्थान तक मंदिर तोड़ने के प्रमाण मिलते हैं.

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