ब्‍लॉगर

440 वर्ष पुराना ईस्वी सन् के ग्रेगौरियन कैलेण्डर का इतिहास, भारत में इसका प्रचलन 269 वर्ष पूर्व ही

– रमेश शर्मा

जिस ईस्वी सन् परिवर्तन के आधार पर हम आज नववर्ष मना रहे हैं इसका आरंभ बहुत पुराना नहीं है और न ही इसके आरंभ का संबंध ईसा मसीह के जन्म से ही है । औ यह भी निश्चित नहीं है कि इसीदिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था । यह सब अनुमान और मान्यताएं ही हैं । इसका अंतर हम यूँ भी देख सकते हैं कि पूरी दुनियाँ 25 दिसम्बर को क्रिसमस का त्यौहार मन जाता है और इसके लगभग एक सप्ताह बाद नया वर्ष आरंभ होता है ।

ईसा मसीह के नाम पर आरंभ इस कैलेण्डर का इतिहास केवल 440 वर्ष पहले ही हुआ था । इसका आरंभ ईस्वी सन् 1582 में हुआ था । इसे आरंभ करने वाले पोप ग्रेगरी थे इसीलिए इस कैलेण्डर का नाम ग्रेगोरियन है । और उनकी जन्मतिथि का अनुमान करके ही इसके आरंभ को मान्यता दी गई । इस ईस्वी सन् कैलेण्डर का भारत में प्रचलन मात्र 269 वर्ष पहले ही हुआ था । इसकी शुरुआत करने वाले वे अंग्रेज थे जो व्यापार के लिये भारत आये थे और यहाँ शासक बने । इस सन् को वैश्विक बनाने का श्रेय भी उन्हीं अंग्रेजों को है जो पूरी दुनियाँ में व्यापार करने के बहाने

लंदन से निकले थे और शासक बन गये । वे अपनी जड़ो और अपनी परंपरा से इतने गहरे जुड़े रहे कि उन्होंने पूरी दुनियाँ को अपने परिवेश में ढालने का प्रयास किया।

यह अंग्रेजों की संकल्प शक्ति ही है कि उनका शासन समाप्त हो जाने के बाद भी उनके द्वारा पूर्व में शासित सभी उन्ही के कैलेंडर से अपनी गणना करते हैं । यदि कोई किसी स्थानीय कैलेण्डर का उल्लेख करें तो भी गणना के लिये मानक अंग्रेजी महीनों और तिथियों का ही सहारा लेना पड़ेगा । इसमें सम्मिलित महीनों के नाम भी अंग्रेजों के अपने नहीं हैं उन्होंने इधर उधर से जुगाड़े हैं ।

सबसे पहले इसका नाम ही देखें, इसे “कैलेण्डर” कहते हैं । कैलेण्ड शब्द लैटिन भाषा का है इसका अर्थ हिसाब-किताब होता है । उधर चीन यूनानी भाषा में केलैण्ड का अर्थ चिल्लाना होता है । तब वहाँ ढोल बजाकर तिथि दिन खी सूचना दी जाती थी । इस तरह नाम कैलेण्डर पड़ा ।

समय के साथ इसके कयी स्वरूप बदले महीने कम और अधिक हुये दिन भी घटे बढ़े ।

संसार के ज्ञात इतिहास में जितने भी सन् संवत् या न्यू एयर परंपराएँ मिलतीं हैं उनमें सबसे प्राचीन परंपरा भारत में युगाब्ध संवत् की मानी जाती है जो लगभग 5124 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था । इसका संबंध महाभारत काल से है । यह संवत् युधिष्ठिर के राज्याभिषेक की तिथि से आरंभ हुआ था । इसका सत्यापन द्वारिका के किनारे समुद्र की पुरातत्व खुदाई में मिली सामग्री से होती है । जिसका कालखंड पाँच हजार से पाँच हजार दो वर्ष के बीच ठहरता है । संवत् का दूसरा प्राचीन उल्लेख बेबीलोनिया से मिलता है । इस संवत् का इतिहास लगभग चार हजार वर्ष पुराना है । तब वहां नववर्ष का आरंभ बसंत ऋतु से होता था । यह तिथि लगभग एक मार्च के आसपास ठहरती है । एक समय समूचे यूरोप में यही कैलेण्डर लागू था इसलिये आज भी मार्च का महीना हिसाब-किताब का वर्षात माना जाता है । जिन अंग्रेजों ने एक जनवरी से नव वर्ष का आरंभ माना वे भी अपने हिसाब किताब का वर्ष मार्च से ही करते थे ।

तीसरा प्राचीन नववर्ष पारसी नौरोज है । जिसका आरंभ लगभग तीन हजार वर्ष पहले हुआ था । पारसी नौरोज 19 अगस्त से आरंभ होता है । चौथा प्राचीन संवत् भारत का विक्रम संवत है जो महाराज विक्रमादित्य के राज्याभिषेक से आरंभ हुआ था । यूरोप में कैलेण्डर का आरंभ रोम से हुआ था । इसे आरंभ करने वाले रोमन सम्राट जूलियन सीजर थे । इसलिये उसका पुराना जूलियन कैलेण्डर था । उन्होने वहां पूर्व से प्रचलित कैलेण्डर में कुछ परिवर्तन किये थे जो उनसे पूर्व राजा न्यूमा पोपेलियस ने आरंभ किया था । कहते हैं इसे आरंभ करने का श्रेय भारत के उन विद्वानों को है जिन्हें सिकन्दर अपने साथ ले गया था । तब इसमें केवल दस माह और 354 दिन ही हुआ करते थे । कहते हैं राजा बारह माह का कैलेण्डर बनाने तैयार न हुआ था । राजा की जिद के चलते बारह के बजाय दस माह का ही कैलेण्डर तैयार हुआ था । बादमें जूलियट सीजर ने उस कैलेण्डर में अनेक परिवर्तन करने के आदेश दिये और बारह महीने का बनाया । इसी को पोप ग्रेगरी ने 1582 में संशोधित किया और इसे ईसा मसीह से जोड़ा ।

वर्तमान ईस्वी सन् का आरंभ 440 वर्ष पूर्व हुआ और रोम के सीजर संवत् से हिसाब लगाकर ईसा मसीह के जन्म से जोड़कर सन् 1582 निर्धारित किया था । अब कुछ विद्वानों का मत है कि इसमें ईसा मसीह की जन्मतिथि में चार वर्ष का अंतर आ गया है । इसमें समय के साथ अनेक परिवर्तन हुये । जब यह आरंभ हुआ तब इसमें लीप एयर या हर चौथे साल फरवरी 29 दिन का नहीं था । इसकी गणना खगोल अनुसंधान के बाद अमेरिकी वैज्ञानिकों ने सूर्य और पृथ्वी परिक्रमा की गणना करके जोड़ा । जबकि भारत में पाँच हजार वर्ष पुरानी गणना भी बारह माह की थी । वर्ष के आरंभ के लिये ऋतु परिवर्तन का अध्ययन करके तिथि निर्धारित हुई थी ।

सामान्यतः यह केवल कैलेण्डर गणना का परिवर्तन है ऋतु का नहीं और न प्रकृति के किसी परिवर्तन का प्रतीक ही है ।

भारत में पंचांग शब्द भी गहन अर्थ लिए हुए है । पंचांग अर्थात पाँच अंग । भारतीय पंचांग का आधार तिथि,वार, नक्षत्र,योग और करण होते हैं । इन पाँच अंगों से ही भारतीय पंचांग में तिथि दिन की गणना होती है ।

Share:

Next Post

आंग्ल नव वर्ष की वरीयताएं

Sat Jan 1 , 2022
– गिरीश्वर मिश्र नया ‘रमणीय’ अर्थात मनोरम कहा जाता है। नवीनता अस्तित्व में बदलाव को इंगित करती है और हर किसी के लिए आकर्षक होती है। अज्ञात और अदृष्ट को लेकर हर कोई ज्यादा ही उत्सुक और कदाचित भयभीत भी रहता है। यह आकर्षण तब अतिरिक्त महत्व अर्जित कर लेता है जब कोविड जैसी लम्बी […]