इंदौर न्यूज़ (Indore News)

लैंड पुलिंग एक्ट में लाना पड़ेगी हाउसिंग बोर्ड को खजराना जागीर की योजना

  • अभी तो मुआवजा राशि के लिए चल रहे हाईकोर्ट प्रकरण को खारिज करवाने में जुटा, रसूखदारों ने मंजूर करवा रखे हैं योजना की जमीनों पर अभिन्यास

इंदौर। हाउसिंग बोर्ड जहां पुनर्घनत्वीकरण के तहत शहर में कई प्रोजेक्ट ला रहा है, वहीं सालों पुरानी अपनी खजराना जागीर की योजना को भी नए सिरे से अमल में लाने के प्रयासों में जुटा है। दरअसल खजराना जागीर की जमीन बायपास से लगी हुई और अत्यंत बेशकीमती हो गई है, जिस पर रसूखदारों ने अभिन्यास भी मंजूर करवा रखे हैं, तो बीते कई सालों से इस योजना को कोर्ट-कचहरी में भी उलझाकर रखा है। सुप्रीम कोर्ट से कुछ समय पूर्व प्राधिकरण सहित देशभर से लगी याचिकाओं का निराकरण तो कर दिया गया, मगर अभी हाईकोर्ट में नए एक्ट के मुताबिक मुआवजा राशि के लिए केस चल रहा है।


कई वर्ष पूर्व बोर्ड ने 40 हेक्टेयर यानी लगभग 100 एकड जमीन पर निम्न और मध्यमवर्गीय तबके के लिए हाउसिंग प्रोजेक्ट लाने के लिए यह योजना घोषित की थी। मगर रसूखदार जमीन मालिकों ने पहले तो हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक याचिकाएं लगाई। इतना ही नहीं, जब इंदौर में ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट आयोजित हुई तो योजना में शामिल हाउसिंग बोर्ड की जमीन पर भी एमओयू साइन कर लिए गए। इसमें एक मालवा आईटी पार्क ने भी एमओयू साइन किया और उसके बाद फिर भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 4 के तहत हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर स्टे भी मिल गया। दरअसल 2013 में जो नया भूमि अधिग्रहण कानून आया उसमें दो गुने से लेकर चार गुना तक मुआवजे के साथ जमीन अधिग्रहण से संबंधित कई अन्य प्रावधान लागू किए गए। लिहाजा इसी कानून के मुताबिक मुआवजा देने की मांग हाउसिंग बोर्ड से की गई है।

अब हाउसिंग बोर्ड हाईकोर्ट में लगी याचिक का जवाब देने और उसे खारिज करवाने के प्रयासों में जुटा है, ताकि वह नए सिरे से इस पर अपनी आवासीय योजना ला सके, जो 2007 से ही लम्बित पड़ी है। पिछले दिनों हाउसिंग बोर्ड कमिश्नर चंद्रमौली शुक्ला ने भी कहा था कि खजराना जागीर की जमीन पर नए सिरे से रेसिडेंशियल प्रोजेक्ट लाया जाएगा, जिसकी प्लानिंग बोर्ड द्वारा की जा रही है। हालांकि हाउसिंग बोर्ड अब नए लैंड पुलिंग एक्ट के तहत ही नए सिरे से योजना ला सकेगा, क्योंकि पुराने प्रावधान खत्म हो गए, जिसके चलते इंदौर विकास प्राधिकरण की भी नई योजनाएं स्वत: समाप्त हुई और उसके बाद प्राधिकरण ने भी नए लैंड पुलिंग एक्ट के तहत ही अपनी टीपीएस योजनाओं को घोषित कर रखा है, जिसमें 50 फीसदी जमीन उनके मालिकों को वापस लौटा दी जाती है और शेष 50 फीसदी जमीन का इस्तेमाल मास्टर प्लान या अन्य प्रमुख सडक़ों के निर्माण, ग्रीन बेल्ट विकसित करने के अलावा 20 प्रतिशत जमीन को विकसित कर भूखंड के रूप में बेचने की प्रक्रिया रहती है, ताकि उससे योजना को अमल में लाने का खर्च निकल सके। विगत कई वर्षों से इंदौर में हाउसिंग बोर्ड अपनी कोई नई आवासीय योजना ला नहीं सका है। राऊ की योजना ही अंतिम थी, उसके बाद सुपर कॉरिडोर पर पालाखेड़ी में भी उसने योजना बनाई, जहां पर प्राधिकरण भी अपनी योजनाएं ला रहा है। मगर दूसरी तरफ खजराना जागीर की योजना सालों से कोर्ट-कचहरी में ही है।

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