नई दिल्ली। टीबी (Tuberculosis) एक जीवाणु जनित रोग है, जो मनुष्यों के शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है। सबसे ज्यादा इसमें फेफड़े की टीबी मुख्य है। टीबी रोग को भारत में वैदिक काल से ही क्षय रोग तथा यक्ष्मा के रूप में जाना जाता रहा है।
बता दें कि रॉबर्ट कॉक ने 24 मार्च, 1882 को टीबी के जीवाणु की खोज की थी। वह खोज टीबी को समझने और इलाज में मील का पत्थर साबित हुई। अत: हर वर्ष 24 मार्च को ‘विश्व टीबी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
वहीं भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2018 में ‘टीबी मुक्त भारत अभियान’ की शुरुआत की थी। उस समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि दुनिया ने टीबी को खत्म करने के लिए 2030 का समय तय किया है, लेकिन भारत ने अपने लिए ये लक्ष्य 2025 तय किया है। बता दें कि भारत के लिए ये ऐलान इसलिए भी अहम है, क्योंकि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी के मरीज भारत में ही हैं। ऐसे भारत के लिए लक्ष्य के मुताबिक समय कम बचा है। ऐसे में क्या इतने कम वक्त में हजारों साल पुरानी बीमार से पीछा छुड़ा पाना संभव है? आंकड़े बताते हैं कि इस लक्ष्य को पाने में भारत को शायद और समय लग सकता है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल दुनिया में जितने टीबी के मरीज सामने आते हैं, उनमें से सबसे ज्यादा मामले भारत में होते हैं। डब्ल्यूएचओ की ‘ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2020’ की मानें तो 2019 में दुनिया में टीबी के 26% मामले भारत में सामने आए। यानी, 2019 में दुनिया में मिलने वाला टीबी का हर चौथा मरीज भारतीय था। भारत के बाद दूसरे नंबर पर इंडोनेशिया और फिर तीसरे नंबर पर चीन है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी ‘एनुअल टीबी रिपोर्ट 2021’ के मुताबिक, 2020 में देश में टीबी के 18.05 लाख मामले सामने आए, जबकि 2019 में 24.03 लाख मामले सामने आए थे। इस रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले साल लॉकडाउन के दो महीनों में टीबी के मामले सबसे कम दर्ज किए गए। ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि लॉकडाउन और कोरोना की वजह से लोग टीबी की जांच कराने नहीं जा रहे हों। रिपोर्ट कहती है कि 2020 के शुरुआती दो महीनों यानी जनवरी और फरवरी में देश में 4.11 लाख से ज्यादा टीबी के मामले सामने आए थे।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने का अभियान जोर शोर से चल रहा है।