ब्‍लॉगर

भारतीयों को कार्य-वीजा मिलना आसान होगा

– डॉ. वेदप्रताप वैदिक

अमेरिका और यूरोप से भारत की दृष्टि से दो अच्छी खबरें आई हैं। एक तो अमेरिका (America) की बेहतर वीज़ा नीति (Visa Policy) और दूसरी जी-7 राष्ट्रों (G-7 Nations) की बैठक में से उभरी विश्वनीति। डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने गोरे अमेरिकियों के वोट (Vote)पटाने के लिए अपनी वीज़ा-नीति को काफी कठोर बनाने की घोषणा कर दी थी।

ताकि भारतीयों (Indians) का अमेरिका में जाना घट जाए और जो वहां पहले से हैं, उन्हें लौटना पड़े और वयस्क होने पर उनके बच्चे भी वहां न टिक सकें। ट्रंप ने यह दिखाने के लिए यह किया था कि यदि अमेरिका से भारतीय लोग भागेंगे तो उनके रोजगार गोरों को मिलेंगे लेकिन ट्रंप के विरुद्ध अमेरिका में शोर मचाया गया तो चुनाव-अभियान (Election Campaign)  के दौरान ही ट्रंप को झुकना पड़ा लेकिन बाइडन प्रशासन ने ट्रंप की वीजा-नीति को उलट दिया है।

अब भारतीयों को कार्य-वीजा (Work Visa) मिलना आसान होगा और ग्रीन कार्ड (Green Card) भी। बाइडन-प्रशासन की दूसरी घोषणा अमेरिका की समग्र विश्व नीति के बारे में है। यह घोषणा जी-7 देशों की दूर-बैठक (Virtual Meeting) में हुई। इस बैठक में अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, जापान और कनाडा ने भाग लिया। इस बैठक में सबसे पहले तो सभी देशों के नेताओं ने कोरोना महामारी के बाद विश्व की अर्थ-व्यवस्था के पुनरोद्धार का संकल्प किया।


दूसरा, उन्होंने गरीब देशों को कोरोना का टीका बंटवाने की घोषणा की। अमेरिका ने 400 करोड़ रु. खर्च करने का वादा किया। एक विश्व-स्वास्थ्य संधि संपन्न करने पर भी विचार किया गया। तीसरा, अमेरिका ने पेरिस-जलवायु समझौते में फिर से शामिल होने की घोषणा की। चौथा, बाइडेन ने म्युनिख सुरक्षा बैठक में कहा कि चीन की गलत और स्वार्थी नीतियों का डटकर मुकाबला किया जाएगा लेकिन बाइडन (Biden) का रवैया ट्रंप की तरह आक्रामक नहीं था। पांचवाँ, नाटो के 30 सदस्य-राष्ट्रों की पीठ थपथपाते हुए बाइडन ने रूस और चीन के दांव-पेंचों से निपटने की घोषणा भी की। छठा, ईरान के साथ ट्रंप द्वारा तोड़े गए 2015 के परमाणु-समझौते को पुनर्जीवित करने की भी घोषणा हुई। भारत को इससे काफी आर्थिक और सामरिक लाभ होगा। सातवां, जब चीन पर अमेरिका और यूरोप लोकतांत्रिक बनने का दबाव डालेंगे तो उस दबाव का असर भारत-चीन संबंधों पर पड़ेगा। भारत उसका फायदा उठा सकता है।

(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

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