इंदौर न्यूज़ (Indore News)

INDORE : 103 एकड़ जमीन अतिशेष घोषित हो चुकी है मौर्या हिल्स की

अग्निबाण भंडाफोड़ (पार्ट-3)… 24 साल पहले अपर आयुक्त ने किया था झंवर की बीजे कम्पनी के खिलाफ आदेश पारित… रसूख के बल पर दबाया
इन्दौर। कनाडिय़ा रोड स्थित मौर्या हिल्स (Maurya Hills) पर जहां अवैध निर्माण (Illegal Construction) और खुदाई का खुलासा तो हुआ ही, वहीं एक और चौंकाने वाली जानकारी यह भी सामने आई कि 24 साल पहले न्यायालय अपर आयुक्त इंदौर संभाग ने एक 10 पेज का महत्वपूर्ण आदेश 19.12.1997 को पारित किया था, जिसमें मौर्या हिल्स की 103.60 एकड़ जमीन को अतिशेष यानी सीलिंग की घोषित कर दिया था। झंवर की बीजे कम्पनी प्रा.लि. तत्कालीन पता 9/1, महारानी रोड (Maharani Road) और वर्तमान पता 16/2, मौर्या हाउस न्यू पलासिया के नाम पर यह आदेश जारी किया गया, जो बाद में रसूख के बल पर दबाया या पलटवा दिया गया। अपर आयुक्त न्यायालय ने कुल 140.57 एकड़ जमीन को लेकर जांच-पड़ताल करने के बाद यह आदेश जारी किया था।


अग्निबाण ने अभी मौर्या हिल्स पर बन रहे बड़े-बड़े बन रहे अवैध मकानों का खुलासा किया और उसके साथ ही पहाड़ी पर चल रही खुदाई के प्रमाण भी दिए, जिसके आधार पर प्रशासन खनीज विभाग के जरिए इसकी जांच भी करवा रहा है। दूसरी तरफ वास्तुविद लवकेश तिवारी (Lovekesh Tiwari) ने जहां अपना खुद का विशाल अवैध बंगला (Illegal Bungalow) बना लिया, वहीं अन्य लोगों को भी जमीनें दिलवाकर उन पर इसी तरह अवैध बंगलों के निर्माण शुरू करवा दिए। वहीं इस संबंध में एक महत्वपूर्ण आदेश भी अग्निबाण के पास है, जिसमें तत्कालीन अपर आयुक्त इंदौर संभाग केपी सिंह ने 24 साल पहले सीलिंग नियमों के तहत बीजे कम्पनी के खिलाफ आदेश पारित किया था और इसी कम्पनी ने मौर्या हिल्स फार्म हाउस की कालोनी विकसित की, जिसमें एक हजार मीटर से लेकर बड़े आकार के भूखंड काटकर बेच डाले। ऐसे लगभग 200 भूखंड मौर्या हिल्स पर सालों पहले बेचे गए, जिन पर अब बंगलो के निर्माण शुरू हो गए हैं। 19.12.1997 को न्यायालय अपर आयुक्त इंदौर संभाग ने जो आदेश पारित किया उसमें स्पष्ट कहा गाय कि अनावेदक कम्पनी यानी बीजे कम्पनी ने ग्राम खजराना स्थित 110.57 एकड़ भूमि अवैधानिक रूप से मुक्त घोषित करवाकर शासन को आर्थिक हानि पहुंचाई। कृषि सीलिंग से ये जमीन मुक्त करवाई गई, जिसकी शिकायत होने पर अपर आयुक्त न्यायालय ने स्वनिगरानी में प्रकरण लिया और फिर नोटिस जारी करने और फिर अनावेदक की सुनवाई के बाद 10 पेज का एक विस्तृत आदेश जारी किया गया। दरअसल सीलिंग एक्ट से बचने के लिए ही कई लोगों ने गृह निर्माण संस्थाएं बनाई और स्टाम्प ड्यूटी में मिली छूट के आधार पर जमीनों की रजिस्ट्रियां भी संस्था के पक्ष में करवा ली। उसी तर्ज पर कृषि सीलिंग से छूट पाने के लिए बीजे कम्पनी ने कालोनी विकसित करना और 140 लोगों को जमीनें बेचने का आधार लिया। दरअसल पूर्व में यह जमीन चरनोई की भी थी और पत्थर खनन उपयोग में लाई जा रही थी, लेकिन बीजे कम्पनी की तमाम दलीलों को नकारते हुए अपर आयुक्त न्यायालय ने 103.60 एकड़ कम्पनी द्वारा धारित भूमि को अतिशेष घोषित कर दिया, जिसे बाद में रसूख के बल पर दबाया तथा संभवत: पलटवा भी दिया।


30 एकड़ पर विकसित साकेत को किया था मुक्त
यह भी उल्लेखनीय है कि इंदौर की जो महंगी और पॉश कालोनी विकसित की गई है, उसे भी अजीत झंवर ने ही विकसित किया है और दस्तावेजों के यह खुलासा होता है कि बीजे कम्पनी, जिसके कर्ताधर्ता उत्तम झंवर हैं, ने 140.57 एकड़ में से 30 एकड़ जमीन अलग की, जिस पर साकेत कालोनी विकसित हो गई। लिहाजा अपर आयुक्त न्यायालय ने अपने आदेश में इस 30 एकड़ जमीन को साकेत कालोनी विकसित होने के कारण अलग रखा और 6.97 एकड़ जमीन भी इसी तरह पूर्व व्यपवर्तित होने के कारण छोड़ी गई और शेष 103.60 एकड़ जमीन मौर्या हिल्स की अतिशेष घोषित कर दी गई और यह भी निर्देश दिए कि इस जमीन के अधिग्रहण की कार्रवाई शीघ्र करे। अभी जो भूमाफिया दीपक मद्दा फरार है उसके ही समधि अजीत झंवर है, जिन्होंने साकेत नगर विकसित किया और फिलहाल सबसे बड़ा भूखंड भी एक नम्बर का उन्हीं के पास है।


140 लोगों को तब ही बेच डाली थी टुकड़ों में जमीन
अपर आयुक्त इंदौर संभाग न्यायालय ने कुल 140.57 एकड़ भूमि का प्रकरण स्वमेव निगरानी में लिया था, लेकिन नोटिस जारी करने और फिर जांच के बाद जब यह खुलासा हुआ कि इसमें से 30 एकड़ जमीन पर साकेत कालोनी विकसित की गई है। लिहाजा फिर 110.57 एकड़ जमीन का केस चलाया और उसमें से भी 6.97 एकड़ जमीन व्यपवर्तित मिलने पर उसे भी छोड़ा गया। वहीं बीजे कम्पनी की ओर से यह भी बताया गया कि 140 लोगों के पास यह जमीन मौजूद है। सर्वे नम्बर 1429/1/1, 1429/1/3 की जमीनें गैर कास्ट पड़त ही रही। इसी तरह अन्य सर्वे नम्बरों की जमीन भी अतिशेष ही मानी गई, जिस पर वर्तमान में मौर्या हिल्स है, जहां पर 200 भूखंड बेचकर अवैध रूप से बंगलों का निर्माण कराया जा रहा है। शासन-प्रशासन नए सिरे से सीलिंग घोषित इस जमीन की जांच करे तो करोड़ों रुपए की जमीन सरकारी घोषित हो सकती है।

 

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