भोपाल न्यूज़ (Bhopal News)

महेशजी की छांव तले उस यादगार शाम को जज़्बाती हुए उस्ताद और शागिर्द


यूं ही नहीं जर्ऱा-जर्ऱा, क़तरा-क़तरा कमाल हुए हैं
पांव दबाएं हैं बुजुर्गों के तब जाके निहाल हुए हैं।

जेठ का महीना यूं अपनी तपिश के लिए मशहूर है। बाकी कल इतवार की शाम अरेरा हिल्स की वादियों में ठंडी हवाएं बह रही थीं। यहां के एक रेस्टोरेंट के भव्य बैंकेट हाल में एक ऐसी महफि़ल सजी जिसे लंबे अरसे तक याद रखा जाएगा। मुल्क के मशहूर और नामवर सहाफी (पत्रकार) महेश श्रीवास्तव साब के 30 से 40 बरस पुराने शागिर्दों ने इस तारीखी महफि़ल का आगाज़ किया था। इसे ‘एक शाम महेशजी की छांव में’ नाम दिया गया। इस प्रोग्राम के सूत्रधार सहाफी रवींद्र जैन साब के बुलावे पे बड़ी तादात में महेशजी के शागिर्द अपने उस्ताद की छांव में जमा हुए। इतने पुराने शागिर्दों के बीच महेशजी जज़्बाती हुए और उनका गला रुंध गया। इस मंजऱ को निहार रहे उनके कई शागिर्दों की आँखों से भी जज़्बात बह निकले। कॉरपोरेट के इस दौर में अपने उस्ताद की शान में इस तरह के प्रोग्राम नायाब प्रोग्राम कहां होते हैं। यहां जमा हुए महेशजी के शागिर्द इस प्रोग्राम के ज़रिए 30-40 बरस पुराने दौर में पहुंच गए। ऐसा लग रहा था जैसे ये महफि़ल कालेज के दौर के साथियों की कोई एलुमनाई मीट हो। उस्ताद के आने से क़ब्ल पुराने पत्रकार एक दूसरे से मिल के फ्लेशबैक में चले गए। जैसे ही उस्ताद महेश श्रीवास्तव हॉल में नमूदार हुए महफि़ल खामोश हो गई। डायस पे महेशजी अपनी शरीके हयात पुष्पा श्रीवास्तव के साथ बैठे। फिर शुरु हुआ उनकी गुलपोशी का सिलसिला। अरविंद शीले साब ने उस्ताद को उनका स्केच पेश किया। आरिफ मिजऱ्ा ने खुद के हाथ से लिखा चिठ्ठीनुमा पत्रक भेंट किया। अरुण पटेल, श्रीप्रकाश दीक्षित,पंकज पाठक,राजेन्द्र धनोतिया, शैलेंद्र शैली, नरेश तोलानी, राजु जमनानी,मिलिंद कुलकर्णी, सतीश टेवरे, उमाशरण श्रीवास्तव, रामनारायण ताम्रकार, आनंद पांडे, सुनील शुक्ला, मनोहर पाठक, ऋषिकांत सक्सेना,रघुवर दयाल गोहिया, महेंद्र शर्मा, रेवाशंकर शर्मा, अजय तिवारी, विश्वकर्मा मास्साब, कीर्ति सक्सेना,आदित्य चौरसिया, गोविंद चौरसिया और पंडित शिवप्रसाद पाठक सहित तकऱीबन हर शागिर्द ने उस्ताद को गुलदस्ते और शॉल पेश किए। इसके बाद सभी शागिर्दों की तरफ से एक प्रशस्ति पत्र रवि उपाध्याय, रवींद्र जैन, अलीम बज़मी, धर्मेंद्र सिंह ठाकुर,विनोद तिवारी, महेंद्र शर्मा और आरएस अग्रवाल ने भेंट किया।


अपने शागिर्दों को खिताब करते हुए महेशजी जज़्बाती हो गए। आपने कहा कि मुझे बहुत सारे एजाज-ओ-इकराम मिले लेकिन जो आनंद इस प्रोग्राम में आया वो किसी प्रोग्राम में नहीं आया। आपने अपने मिजाज़ की सख्ती को रेखांकित करते हुए कहा कि मैं अंदर से नरम और बाहर से सख्त था। अपने शागिर्दों की पीठ पे धौल जमाने के रोचक किस्से सुनते हुए महफि़ल ठहाकों से गूंज उठी। महेशजी ने कहा कि इस तरह के मेलजोल वाले प्रोग्राम हम सभी को कऱीब लाते हैं। महेशजी ने उनके शागिर्द मरहूम प्रशांत कुमार की खबरों और भाषा शैली की तारीफ करते हुए उन्हें बड़ी शिद्दत से याद किया। आपने रविन्द्र जैन, राजेश चंचल अलीम बज़मी, रेवा शंकर शर्मा के बारे में कहा की ये पत्रकार बहुत रिस्क लेकर खबरे लाते थे। उस दौर के फोटोग्राफर आरसी साहू की संजीदगी को भी उन्होंने याद किया। उस्ताद ने सभी शागिर्दों को अहद दिलवाया कि मुश्किल वक्त में सब एक दूसरे के काम आएंगे। आपने फरमाया की उसूलों और सच्चाई से कभी मत डिगना। उनके कई शागिर्दों ने पुराने दिनों को याद किया। इस मौके पे उस्ताद से दस बरस बड़े भाई 91 बरस के डॉ पीडी श्रीवास्तव ने रोचक अंदाज़ में कहा कि मेरे इस भाई ने आपकी पीठ पे धौल जमाके आप लोगों को सहाफत में इस मुकाम तक पहुंचा दिया…बचपन मे मैंने आपके इस उस्ताद की पीठ पे बहुत धौल जमाई है। आखिर में सभी सहाफियों ने लज़ीज़ खानों का लुत्फ लिया। सभी ये कहते हुए विदा हुए की हम सब मन भर मिले लेकिन मन नहीं भरा।

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