इंदौर न्यूज़ (Indore News)

जानवरों को दी जाने वाली दवा गिद्धों के लिए जानलेवा बनी

  • कभी 4 करोड़ थे, अब सिर्फ 60 हजार रह गए हैं
  • गिद्ध गणना की कार्यशाला में 4 जिलों के वन अधिकारी जुटे

इंदौर। बीमार मवेशियों मतलब जानवरों के इलाज में जो दवा इस्तेमाल की जा रही है, वह गिद्धों के लिए जानलेवा ही नहीं, बल्कि उनकी प्रजाति और उनके अस्तित्व के लिए विनाशक साबित हो रही है। इस दवा से इलाज करा चुके जानवरों की मृत्यु के बाद, जब गिद्ध इनको अपना आहार बनाते हैं तो मृत जानवरों के शरीर में मौजूद दवाओं के हानिकारक ड्रग्स गिद्धों की मौत का कारण बन जाते हैं। यही कारण है कि कभी इंदौर सहित सारे देश में गिद्धों की संख्या लगभग 4 करोड़ थी। मगर अब इनकी संख्या घटकर लगभग 60 हजार ही रह गई है ।

इसलिए सरकार वन विभाग के माध्यम से हर दो साल में गिद्धों की गणना करवाती आ रही है। इसीलिए गिद्धों की गणना के पहले कृषि महाविद्यालय में वन विभाग की प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में प्रकृति के सफाई मित्र गिद्धों के ठिकाने, इनकी पहचान, गणना और संरक्षण के अलावा तेजी से इनके लुप्त होने के कारणों पर गहन चिंतन, मंथन किया गया। इस एक दिवसीय कार्यशाला में दिल्ल,ी लखनऊ, सतना, उज्जैन से गिद्ध सम्बन्धित जानकारी के विशेषज्ञों सहित इंदौर, धार, झाबुआ, आलीराजपुर के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए। यह प्रशिक्षण कार्यशाला 11 से लेकर 5 बजे तक चली। रिटायर्ड वन अधिकारी केके झा ने कहा कि बिना जनभागीदारी के न तो गिद्धों का सरंक्षण किया जा सकता है, न ही उनकी सटीक गणना की जा सकती है। इसके अलावा इन्होंने गिद्धों के घोंसले की पहचान और गिद्धों की गणना की कई जानकारी दी। लखनऊ की राधिका झा और सतना के दिल शेर खान सहित उज्जैन के डॉक्टर विकास यादव ने भी इंदौर से लेकर मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा गिद्ध कहां पाए जाते हैं, यह जानकारी मानचित्र के माध्यम से दी। गिद्धों के संरक्षण और उनकी गणना से सम्बंधित जानकारी और अपने अनुभव साझा किए।

इस वजह से लगातार मर रहे हैं गिद्ध
लगातार घटती संख्या के चलते के कारण गिद्ध प्रजाति के पक्षी के लुप्त होने का जो खतरा मंडरा रहा है, उसकी मुख्य वजह बीमार मवेशियों की दी जाने वाली दर्द निवारक डाईक्लोफिनेक दवा है। सरकार ने 17 साल पहले इस दवा के इस्तेमाल पर रोक लगाकर इसकी जगह मेलोक्सिकेम मेडिसिन को अपनाने की सिफारिश की थी। मगर प्रतिबंध के बावजूद आज भी डाईक्लोफिनेक दवा गैर-कानूनी तरीके से बाजार में बेची जा रही है और मवेशियों के लिए किसान इसका उपयोग धड़ल्ले से करते आ रहे हैं। जब मवेशी मर जाते हैं, तब उनके शरीर में मौजूद दवा गिद्धों की मौत की वजह बन जाती है।

गिद्धों की गणना 2 बार होगी
हर 2 साल में होने वाली गिद्ध गणना इस बार नए साल में 2 बार होगी। डीएफओ इंदौर महेंद्र सिंह सोलंकी के अनुसार इंदौर से लेकर पूरे मध्यप्रदेश में गिद्धों की गणना जनवरी और मई माह में एक ही दिन, एक ही समय में एक साथ की जाएगी। गणना में वनकर्मियों के अलावा पर्यावरण प्रेमी एनजीओ को भी शामिल किया जाएगा। गिद्धों की 2 बार गणना का कारण बताते हुए सोलंकी ने कहा कि पहले की गई गणना में गिद्धों की संख्या का दूसरी बार की गई गणना से मिलान किया जाता है, जिससे गिद्धों की संख्या की सही व सटीक जानकारी मिल सके ।

कुल 9 प्रकार के होते हैं गिद्ध
देश में 9 प्रकार के, मतलब प्रजाति के गिद्ध पाए जाते हैं। एक गिद्ध का वजन 3.50 किलो से लेकर लगभग 8 किलो तक होता है। जो नौ प्रजातियां हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं- श्याम गिद्ध , अरगुल गिद्ध, यूरेशियन पांडुर गिद्ध, सफेद पीठ गिद्ध, दीर्घचुंच गिद्ध, बेलनाचुंच गिद्ध, पांडुर गिद्ध, गोपर गिद्ध और राज गिद्ध।

यहां पाए जाते हैं गिद्ध
कार्यशाला में गिद्धों के ठिकानों की जानकारी देते हुए बताया गया कि गिद्ध ट्रेंचिंग ग्राउंड, तालाब किनारे, ऊंचे पेड़ों पर, मृत पशुओं के मरघट पर, ऐतिहासिक पुरातत्वकालीन खंडहरों और पहाडिय़ों पर पाए जाते हैं।

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