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लवलीना बोरगोहेन: पहले ही ओलम्पिक में रच दिया इतिहास

– योगेश कुमार गोयल

भारतीय मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन भले ही टोक्यो ओलम्पिक में स्वर्ण या रजत पदक जीतने से चूक गईं लेकिन उन्होंने अपने पहले ही ओलम्पिक में जिस प्रकार कांस्य पदक भारत के नाम किया है, वह भी छोटी उपलब्धि नहीं है। 23 वर्षीया लवलीना का यह पदक न केवल टोक्यो ओलम्पिक में भारत का तीसरा पदक है बल्कि मुक्केबाजी में भी यह अबतक का भारत का तीसरा पदक ही है। लवलीना की उपलब्धि इसलिए भी बहुत बड़ी मानी जा सकती है क्योंकि उनकी बदौलत ही मुक्केबाजी में ओलम्पिक खेलों में नौ वर्ष लंबे अंतराल के बाद भारत को कोई पदक मिला है और ओलम्पिक में मुक्केबाजी में कोई पदक जीतने वाली वह दूसरी महिला मुक्केबाज भी बन गई हैं।

लवलीना के लिए ओलम्पिक की तैयारी आसान नहीं थी क्योंकि कोरोना संक्रमण के कारण वह अभ्यास के लिए यूरोप नहीं जा सकी थी। लवलीना से पहले 2012 में मेरीकॉम ने कांस्य पदक जीता था और 2008 में विजेन्दर सिंह भी कांस्य पदक जीतने में ही सफल हुए थे। टोक्यो ओलम्पिक की बात करें तो हालांकि अभी भारत के कुछ और पदक जीतने की प्रबल संभावनाएं हैं लेकिन लवलीना से पहले वेट लिफ्टिंग में मीराबाई चानू रजत और बैडमिंटन में पीवी सिंधू कांस्य पदक जीतने में सफल रही हैं।

लवलीना के पास भारत के लिए स्वर्णिम इतिहास रचने का अवसर था लेकिन वह महिला 69 किलो वर्ग के सेमीफाइनल मैच में विश्व चैम्पियन तुर्की की मुक्केबाज बुसेनाज सुरमेनेली से तीनों ही राउंड 0-5 से हार गई। यदि वह यह मैच जीत जाती तो ओलम्पिक में स्वर्ण के लिए लड़ने वाली भारत की पहले मुक्केबाज भी बन जाती। दरअसल हड़बड़ाहट में हुई लवलीना की कुछ गलतियां उन पर भारी पड़ी। बुसेनाज 2019 की विश्व चैम्पियनशिप की विजेता रही हैं जबकि लवलीना को उसमें कांस्य पदक मिला था, हालांकि उस टूर्नामेंट में दोनों के बीच कोई मुकाबला नहीं हुआ था।

बुसेनाज के साथ लवलीना का ओलम्पिक में पहला ही मुकाबला था। वैसे अपने पहले ही ओलम्पिक में लवलीना ने अपनी जीत के अभियान का शानदार आगाज किया था। 27 जुलाई को अपने पहले मुकाबले में उन्होंने जर्मनी की नेदिन एपेट्ज को 3-2 से हराकर क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई थी। उसके बाद 30 जुलाई को क्वार्टर फाइनल में चीनी ताइपे की निएन चिन चेन को 4-1 से हराकर भारत के लिए पदक जीतना सुनिश्चित कर लिया था। बेहद आक्रामक बॉक्सर मानी जाने वाली बुसेनाज से लवलीना भले ही मुकाबला हार गई लेकिन अपने पहले ही ओलम्पिक में इतिहास रचकर पूरी दुनिया को उन्होंने दिखा दिया कि उनके मुक्कों में कितना दम है।

2012 में बॉक्सिंग की शुरुआत करने के बाद वह अपने अबतक के कैरियर में 2018 और 2019 की विश्व चैम्पियनशिप के दो कांस्य पदक जीत चुकी हैं। दिल्ली में आयोजित पहले इंडिया ओपन इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में स्वर्ण तथा गुवाहाटी में आयोजित दूसरे इंडिया ओपन इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में रजत पदक भी जीत चुकी हैं।

फरवरी 2018 में आयोजित इंडिया ओपन इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में सफलता के बाद 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए चयन होने के बाद लवलीना के कैरियर को नए पंख लगे। उन राष्ट्रमंडल खेलों में लवलीना के भाग लेने का मामला भी काफी दिलचस्प है। दरअसल कॉमनवेल्थ गेम्स वेल्टरवेट बॉक्सिंग कैटेगरी में भाग लेने के लिए चुने जाने की लवलीना को कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली थी बल्कि उन्हें मीडिया के जरिये ही इसकी सूचना मिली थी। सितम्बर 2018 में लवलीना पोलैंड में 13वीं अंतर्राष्ट्रीय सिलेसियन चैम्पियनशिप में कांस्य, जून 2018 में मंगोलिया में उलानबटार कप में रजत, नवम्बर 2017 में वियतनाम में एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में कांस्य तथा जून 2017 में अस्ताना में आयोजित राष्ट्रपति कप में कांस्य पदक जीत चुकी हैं।

दिल्ली में आयोजित एआईबीए (आईबा) महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में वह पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए 23 नवम्बर 2018 को कांस्य पदक जीतने में सफल हुई थी। उसके बाद 2019 की आईबा महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीता था। मार्च 2020 में लवलीना ने एशिया और ओशिनिया बॉक्सिंग ओलम्पिक क्वालीफायर टूर्नामेंट में उज्बेकिस्तान की मफतुनाखोन मेलिएवा को 5-0 से हराकर 69 किग्रा वर्ग में ओलम्पिक कोटा हासिल किया था और ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने वाली असम की पहली खिलाड़ी बन गई थी। मुक्केबाजी में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 2020 में उन्हें राष्ट्रपति द्वारा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और वह अर्जुन पुरस्कार प्राप्त करने वाली असम की छठी व्यक्ति बनी थी।

मुक्केबाजी में आने से पहले लवलीना ने अपनी जुड़वां बड़ी बहनों लीचा और लीमा को देखकर किक बॉक्सिंग करना शुरू किया था, जिसमें वह राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीत चुकी हैं जबकि लीचा और लीमा ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा तो की लेकिन उससे आगे नहीं बढ़ पाई।

असम के गोलाघाट जिले में 2 अक्तूबर 1997 को जन्मी लवलीना के पिता टिकेन एक छोटे व्यवसायी थे जबकि उनकी मां बीमार रहती हैं। आज वह जिस मुकाम पर हैं, वहां तक पहुंचने के लिए उन्हें समाज के ताने सुनते हुए बेहद कड़ी मेहनत करनी पड़ी। जब वह बारपाथर गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ती थी, उस दौरान भारतीय खेल प्राधिकरण ने वहां एक ट्रायल आयोजित किया, जहां लवलीना ने भी भाग लिया था और मुक्केबाजी में उत्कृष्टता हासिल करने के लिए 2012 से साई एसटीसी गुवाहाटी में प्रसिद्ध कोच पदुम चंद्र बोडो द्वारा उनका चयन किया गया था, बाद में संध्या गुरुंग ने उन्हें कोचिंग दी।

लवलीना बताती हैं कि वे तीन बहनें हैं और लोग अक्सर बोलते थे कि तुम्हारे माता-पिता ने जरूर पिछले जन्म में कुछ गलतियां की होगी, जिस वजह से इन्हें तीन-तीन लड़कियां हुई। लवलीना के मुताबिक जब वह बॉक्सिंग में आई, तब भी लोग इस तरह की बहुत बातें किया करते थे। ऐसे में उनके लिए ओलम्पिक की राह इतनी आसान नहीं थी लेकिन अपने पहले ही ओलम्पिक में लवलीना ने साबित कर दिखाया कि हिम्मत और जुनून के आगे कुछ भी मुश्किल नहीं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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