नई दिल्ली । आर्कटिक क्षेत्र (Arctic Region) में स्वालबार्ड द्वीपसमूह (Svalbard Archipelago) के लगभग 91 फीसदी ग्लेशियर काफी हद तक सिकुड़ गए हैं। पिछले 40 सालों में सबसे अधिक तापमान वाली जगहों में ग्लेशियर गायब हो रहे हैं। सबसे ज्यादा ग्लेशियर गायब (Glacier) होने की घटनाएं हाल के वर्षों में देखी गई हैं। यह जानकारी ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के एक शोध में सामने आई है। इसके निष्कर्ष नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं।
ग्लेशियोलॉजी सेंटर के शोधकर्ताओं के अनुसार 1985 के बाद से इस नॉर्वेजियन द्वीप समूह में ग्लेशियर के किनारों पर 800 वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाके का नुकसान हुआ है। आधे से अधिक यानी 62 फीसदी ग्लेशियर टूटने के मौसमी चक्र से गुजरते हैं। यह तब और अधिक बढ़ जाता है जब महासागर और हवा के बढ़ते तापमान के कारण बर्फ के बड़े टुकड़े टूट जाते हैं। पिछले कुछ दशकों में ग्लेशियरों के पीछे खिसकने का पैमाना तेजी से बढ़ा है। यह लगभग पूरे स्वालबार्ड को कवर करता है। यह ग्लेशियरों की जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता को सामने लाता है।
पैटर्न को जल्दी से पहचानने के लिए एआई का इस्तेमाल
शोध टीम ने बड़े इलाकों में ग्लेशियर पिघलने के पैटर्न को जल्दी से पहचानने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का इस्तेमाल किया है। एक नए एआई मॉडल का उपयोग करते हुए पूरे स्वालबार्ड में ग्लेशियरों की अंतिम स्थिति को रिकॉर्ड करने वाली लाखों उपग्रह तस्वीरों का विश्लेषण किया। विश्लेषण के निष्कर्ष से कुछ नए तथ्य सामने आए जो क्षेत्र में ग्लेशियर के नुकसान के पैमाने और प्रकृति के बारे में अभूतपूर्व जानकारी देते हैं।
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