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शनि के चंद्रमा टाइटन में भी पृथ्वी से मिलती जुलती कई विशेषताएं, शोध में खुलासा

नई दिल्‍ली. हैरानी की बात लगती है कि पृथ्वी के बाहर जीवन (life beyond the Earth) के संकेत मिलने के सबसे ज्यादा गुंजाइश सौरमंडल (Solar System) के बड़े ग्रहों के चंद्रमाओं में है. शनि के सबसे बड़े ग्रह टाइटन (Moon of Saturn Titan) में भी पृथ्वी से मिलती जुलती कई विशेषताएं हैं. टाइटन सौरमंडल का इकलौता ऐसा चंद्रमा है जिसका घना वायुमंडल है यहां पृथ्वी जैसे मौसम के हालत जैसे मीथेन की बारिश, नदियां और झीलें भी देखने को मिलती हैं. नए अध्ययन में शोधकर्ताओं टाइटन में रेत के टीले की मौजूदगी की व्याख्या करने का प्रयास किया है. यह प्रक्रिया पृथ्वी की तरह ही पाई गई है.

टाइटन की रेत का रसायन शास्त्र
टाइटन में ऊंचे ऊंचे रेत की टीले रहस्य का विषय थे. जहां पृथ्वी पर रेत के टीले अजैविक सिलिकेट के बने होते हैं, लेकिन टाइटन की रेत का रसायन शास्त्र थोड़ा अलग है. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के ग्रहभूवैज्ञानिक मैथ्यू लैपोत्रे की अगुआई में हुए इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं की टीम ने बताया कि टाइटन पर अवसाद यांत्रिकी तौर पर कमजोर जैविक दानों से बने होते हैं जिनका तेजी से घर्षण होता है और वे धूल में बदल जाते हैं.

कणों का पतला होते जाना
इस तेजी से होने वाले घर्षण का मतलब है कि समय के साथ, टाइटन के टीलों में रेत के कण और महीन से महीन होते जाते हैं जब तक कि वे धूल में ना बदल जाएं. यह हलकी धूल इतनी पतली हो जाती है जिससे वह हवा में उड़ जाती है और विशाल टीले बनाने में सक्षम नहीं रह जाती है. ऐसे में विशाल टीलों का अस्तित्व कायम कैसे रह सकता है यह एक बड़ा सवाल है.



कुछ और ही होगी प्रक्रिया
लैपोत्रे बताते हैं कि जैसे ही कण हवा में जाते हैं कण आपस में और सतह से ज्यादा टकराते हैं इन टकरावों से दानों का आकार समय के साथ कम होता जाता है. लेकिन फिर भी टाइटन पर बड़े बड़े रेत की टीले मौजूद हैं जिस पर शोधकर्ताओं का कहना है कि कुछ अज्ञात प्रक्रिया ऐसी चल रही है जिससे कणों को जमा कर घर्षण बल का सामना करने का बल मिल रहा है. यह प्रणाली नई नहीं बल्कि लंबे से चल रही होगी.

पृथ्वी के समुद्र तल से मिली प्रेरणा
शोधकर्ताओं ने लिखा कि टाइटन की भूमध्य रेखा के लाखों सालों से सक्रिय हैं. इसके लिए ऐसी प्रणाली की जरूरत है जो भूमध्य अक्षांशों पर रेत का दानों के आकार के कण पैदा कर सके. इस नए शोध में वैज्ञानिकों ने इस बात का प्रस्ताव दिया है कि आखिर यह प्रणाली हो क्या सकती है. इसकी प्रेरणा वैज्ञानिकों को पृथ्वी समुद्र तल पर मिलने वाले अवासादी, गोल और छोटे छोटे दानों से मिली जिन्हें अंडक या ओइड कहते हैं.

क्या होता होगा
रेत के अन्य दूसरे प्रारूपों के तुलना में, जो कि घर्षण के कारण विखंडित होने वाली प्रक्रिया से बनते हैं, अंडक संचयन प्रारूपों से बनते हैं जिसमें छोटे कण समुद्री वातावरण में रासायनिक अवक्षेपण (Precipitation) की भूमिका होती है. शोधकर्ताओं के अनुसार प्रतिमान रूपण से इसी तरह की प्रणाली टाइटन पर जैविक अवसादों की उपस्थिति की व्याख्या की जा सकती है जिससे कण एक साथ आकर ऐसा आकार ले सकते है जिससे घर्षण का प्रतिरोध किया जा सके और कणों का एक संतुलित आकार कायम रह सके.

सक्रिय अवसादी चक्र
शोधकर्ताओं ने बताया कि इसकी वजह से भूमध्य अक्षांशों पर सक्रिय रेत के टील बन जाते होंगे जिसमें धूल के कणों के कारण ज्यादा धूल जमा नहीं हो पाती होगी. टाइनट पर पृथ्वी और मंगल की तरह भी इस तरह का सक्रिय अवसादी चक्र चल रहा होगा जो भूआकृतियों के अक्षांशीय वितरण की व्याख्या कर सकेगा जो टाइटन मौसमी घर्षण और जमाव से प्रेरित होते होंगे.

शोधकर्ताओं का कहना है कि उनकी अवधारणा के अलावा भी और स्थितियां भी हो सकती हैं जो इसकी व्याख्या कर सकती हैं, इसे खारिज नहीं किया जा सकता है. लेकिन उन्हें विश्वास है कि उनकी अवधारणा कारगर साबित होगी जहां पृथ्वी से इतना कुछ अलग होते हुए भी इतना कुछ समान है. यह पड़ताल जीयोफिजिकल रिसर्च लैटर्स में प्रकाशित हुई है.

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