बड़ी खबर राजनीति

पार्टी सिंबल पर दावा कर सकते हैं शिंदे, क्या ठाकरे हार जाएंगे अपना ‘तीर-कमान’


नई दिल्ली: महाराष्ट्र के ताज़ा राजनीतिक घटनाक्रम से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे चारों तरफ से घिर गए हैं. शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे लगातार पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं. उन्होंने दावा किया है कि शिवसेना के 40 विधायक उनके साथ हैं. इसके अलावा कई निर्दलीय विधायक भी उनके खेमे में हैं. लिहाजा अब शिवसेना में दोफाड़ के आसार बनते दिख रहे हैं.

ऐसे अब कहा जा रहा है कि पार्टी में चुनाव चिन्ह और झंडे को लेकर भी घमासान शुरू हो सकती है. कहा जा रहा है कि एकनाथ शिंदे खेमा अब शिवसेना के ‘धनुष और बाण’ चिन्ह पर दावा करने की तैयारी कर रहा है. सूत्रों ने बताया कि गुट 41 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहा है और पार्टी के चुनाव चिह्न के इस्तेमाल की मांग कर रहा है. कहा जा रहा है कि जल्द ही ये मामला चुनाव आयोग पहुंच सकता है. आखिर क्या है पार्टी सिंबल का कानून? क्या दूसरा गुट इस पर कब्जा कर सकता है.

क्या कहता है कानून?
बता दें कि आयोग राजनीतिक पार्टियों को मान्यता देता है और चुनाव चिह्न भी आवंटित करता है. चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के मुताबिक ये पार्टियों को पहचानने और चुनाव चिन्ह आवंटित करने से जुड़ा है. कानून के मुताबिक अगर पंजीकृत और मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी के दो गुटों में सिंबल को लेकर अलग-अलग दावें किए जाएं तो फिर चुनावा आयोग इस पर आखिरी फैसला करता है. आदेश के अनुच्छेद 15 में इस पर विस्तार से जानकारी दी गई है.


मानना होगा आयोग का फैसला
जब एक ही पार्टी के दो गुट एक सिंबल के लिए दावे करते हैं तो ऐसे हालात में चुनाव आयोग दोनों खेमों को बुलाता है. दोनों पक्ष अपनी दलीलें रखता है. इसके बाद आयोग की तरफ से फैसला लिया जाता है. लेकिन याद रहे कि चुनाव का फैसला हर हाल में पार्टी के गुटों को मानना होगा.

इन फैक्टर पर होता है फैसला
विवाद के मामले में, चुनाव आयोग मुख्य रूप से पार्टी के संगठन और उसके विधायिका विंग दोनों के भीतर प्रत्येक गुट के समर्थन का आकलन करता है. ये राजनीतिक दल के भीतर शीर्ष समितियों और निर्णय लेने वाले निकायों की पहचान करता है. ये पता लगाने की कोशिश की जाती है कि कितने सदस्य या पदाधिकारी किस गुट में वापस आ गए हैं. इसके बाद ये प्रत्येक कैंप में सांसदों और विधायकों की संख्या की गणना करता है.

पार्टी सिंबल के इस्तेमाल पर लग सकती है रोक
अगर चुनाव आयोग एक गुट का निर्धारण करने में असमर्थ रहता है तो फिर वो पार्टी के सिंबल को फ्रीज कर सकता है. इसके बाद दोनों गुटों को दोबारा नए नामों और सिंबल के साथ रजिस्ट्रेशन करने के लिए कह सकता है. चुनाव नजदीक होने की स्थिति में गुटों को एक अस्थायी चुनाव चिन्ह चुनने के लिए कह सकता है.

Share:

Next Post

बेटी के अंतिम संस्कार के लिए दर-दर भटकी मां, जबकि बड़े खानदान से है रिश्ता

Thu Jun 23 , 2022
डिंडौरी: मध्य प्रदेश के डिंडौरी जिले से रिश्तों की अजीबो-गरीब खबर है. यहां 10 साल की बहन ने अपनी बड़ी बहन को मुखाग्नि दी. बहन का बहन को मुखाग्नि देना तो खास बात है ही, लेकिन इस परिवार की कहानी किसी भी दुखभरी फिल्मी कहानी से कम नहीं. जिस परिवार की बेटी की मौत हुई, […]