विदेश

हिम्मत वाले थे शिंजो आबे, चीन से मुकाबले के लिए बना रहे थे नया जापान

नई दिल्ली: जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Former Japanese Prime Minister Shinzo Abe) शुक्रवार को एक हमले में गोली का शिकार होने के बाद अंतत: जिंदगी की जंग हार गए. वह जापान के नारा (Shinzo Abe Nara) शहर में एक चुनाव प्रचार कार्यक्रम के तहत सड़क पर लोगों को संबोधित कर रहे थे. इसी दौरान एक अज्ञात हमलावर ने पीछे से उनके ऊपर गोली चला दी. गोली लगने के कुछ ही देर बाद शिंजो आबे होश खो बैठे.

उन्हें एयर एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के क्रम में उनकी मौत हो गई. जापान जैसे बेहद कम क्राइम रेट वाले देश में पूर्व प्रधानमंत्री के ऊपर इस तरह के हमले ने पूरी दुनिया को चौंका दिया. आबे दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) के बाद जापान के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक रहे थे. उन्हें शांत स्वभाव के अलावा इकोनॉमी को उबारने वाली नीति आबेनॉमिक्स (Abenomics) और मजबूत विदेश नीति समेत कई उपलब्धियों (Shinzo Abe Major Accomplishments) के लिए याद किया जाता रहा है.

पूरी दुनिया में शोक की लहर
आबे दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) के बाद उन चुनिंदा नेताओं में शामिल रहे, जिन्हें दो-दो बार जापान का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला. उन्हें इकोनॉमी को उबारने के प्रयासों के अलावा जापान की सैन्य क्षमता बढ़ाने और चीन के बढ़ते दबदबे का कड़ा विरोध करने के लिए जाना जाता रहा है. जापान के सरकारी न्यूज चैनल एनएचके (NHK) के अनुसार, 67 साल के आबे नारा शहर में आगामी चुनाव को लेकर एक प्रचार कार्यक्रम में लोगों को संबोधित कर रहे थे. इसी दौरान एक अज्ञात हमलावर ने पीछे से उनके ऊपर गोली चला दी. आबे के ऊपर यह अप्रत्याशित हमला क्यों किया गया, इसकी वजह का अभी पता नहीं चल पाया है. अब मौत की खबर आने के बाद जहां एक ओर जापान में शोक की लहर है, वहीं दुनिया भर के नेता दिवंगत आत्मा की शांति की प्रार्थना कर रहे हैं.


दो बार बने जापान के प्रधानमंत्री
आबे पहली बार साल 2006 में जापान के प्रधानमंत्री बने थे. इसके साथ ही उनके नाम जापान के सबसे युवा प्रधानमंत्री (Youngest Prime Minister Of Japan) का खिताब जुड़ गया था. हालांकि उनका पहला कार्यकाल लंबा नहीं चल पाया और अगले ही साल यानी 2007 में आबे को इस्तीफा देना पड़ गया. इसके बाद साल 2009 में उनकी कंजरवेटिव पार्टी चुनाव हार गई. साल 2012 में वह दोबारा प्रधानमंत्री बने, जब उनकी अगुवाई में कंजरवेटिव पार्टी ने जीत हासिल की. उन्होंने चुनाव के दौरान जापान के लोगों से इकोनॉमी को मजबूत बनाने, डिफ्लेशन पर लगाम लगाने, दूसरे विश्व युद्ध के बाद लागू संविधान की पाबंदियों को कम करने और पारंपरिक मूल्यों को बहाल करने का वादा किया था.

इकोनॉमी के लिए ‘आबेनॉमिक्स’ मंत्र
शिंजो आबे के ‘आबेनॉमिक्स’ सिद्धांत को दुनिया भर में चर्चा तो खूब मिली, लेकिन जमीन पर यह वास्तव में असर डाल पाने में कामयाब नहीं हो पाया. हालांकि आबे इस सिद्धांत के दम पर विदेशी निवेशकों को जापान बुलाने का प्रयास करते रहे. दरअसल साल 2020 में अचानक आई कोरोना महामारी (Covid-19) ने आबे के ‘आबेनॉमिक्स’ पर सबसे गहरा आघात किया. नवंबर 2019 में ही आबे जापान के सबसे लंबे समय पद पर रहने वाले प्रधानमंत्री बने और 2020 में ही उन्हें पद छोड़ना पड़ गया.


आबेनॉमिक्स का पहला लक्ष्य डिफ्लेशन पर लगाम लगाना था. इसके अलावा हाइपर-ईजी मॉनीटरी पॉलिसी और फिस्कल स्पेंडिंग की मदद से इकोनॉमिक ग्रोथ को वापस पटरी पर लाना इसका दूसरा लक्ष्य था. आबेनॉमिक्स का तीसरा लक्ष्य जापान की तेजी से बूढ़ी होती आबादी और कम होती जनसंख्या की समस्या से निजात पाना था. डिफ्लेशन के मोर्चे पर आबेनॉमिक्स को सफलता नहीं मिल पाई. साल 2019 में सेल्स टैक्स बढ़ाए जाने से आबेनॉमिक्स की ग्रोथ स्ट्रेटजी को झटका लगा. बाकी रही-सही कसर अमेरिका-चीन के टैरिफ वार और कोरोना महामारी ने पूरी कर दी.

इन उपलब्धियों के लिए किए जाएंगे याद
शिंजो आबे की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि Forbes ने साल 2018 में दुनिया का 38वां सबसे ताकतवर व्यक्ति माना था. राजनीति में उतरने से पहले उन्होंने फिल्मों में भी काम किया था. जापान के स्थानीय न्यूज सोर्सेज की मानें तो इस साल उनकी नेटवर्थ बढ़कर 10 बिलियन डॉलर के पार निकल गई थी. वह एक राजनीतिक परिवार में पैदा हुए थे. उनके परिवार में पहले से ही जापान को दो प्रधानमंत्री मिल चुके थे. दूसरे विश्व युद्ध में पराजय के बाद जापान के ऊपर कई पाबंदियां लगाई गई थीं, जिनमें से एक शर्त सैन्य ताकत पर लगाम लगने की भी थी.

आबे जापान के पहले प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने बदलती दुनिया में बदलने की हिम्मत की और चीन के खतरे को महसूस किया. चीन की आक्रामक नीतियों और उत्तर कोरिया जैसे पड़ोसी को ध्यान में रखते हुए आबे ने फिर से जापान की सैन्य ताकत को पटरी पर लाने की शुरुआत की. चीन पर लगाम लगाने के लिए आज भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर जिस क्वाड का गठन किया है, इसकी जड़ें सींचने में भी आबे का अहम योगदान रहा था. अब आबे भले ही इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उन्हें हमेशा एक दूरदर्शी नेता के तौर पर याद किया जाता रहेगा.

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