ब्‍लॉगर

आचार की मजबूरी और विचार की लाचारी

– गिरीश्वर मिश्र आजकल निजी पारिवारिक जीवन और सार्वजनिक सामाजिक जीवन के तेजी से बदलते परिवेश में जिस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है वे भयावह हैं और निःसंदेह मनुष्य होने के मूल भाव को ही तिरस्कृत तथा अपमानित करने वाले जैसे लग रहे हैं। पिछले दिनों प्यार करना, लिव इन में […]