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तानसेन समारोहः झिलमिल नदी के किनारे हुई सुरों की बरसात

ग्वालियर। संगीत नगरी ग्वालियर में गत 26 दिसम्बर से शुरू हुए  प्रतिष्ठित तानसेन समारोह की अष्टम एवं आखिरी सभा बुधवार को संगीत सम्राट तानसेन की जन्मस्थली बेहट में झिलमिल नदी एवं नटराज भोले शंकर के मंदिर के बीच स्थित घनी अमराई के साये में सजी। इस पवित्र जगह पर सुरों के ऐसे फूल खिले कि सारा माहौल सुंदर-सुंदर राग-रागनियों से सुगंधित हो गया।
जहां पर सभा सजी वह वही जगह है, जहां मकरंद पांडेय का जन्म से ही बोलने में असमर्थ बेटा “तन्ना” बकरियां चराया करता था। कहा जाता है तन्ना रोज अपनी बकरियों का दूध भगवान भोले के मंदिर पर चढ़ाया करता था। भोले शंकर के वरदान से तन्ना की जुबान से ऐसे सुर फूटे कि वह संगीत शिरोमणि बनकर अखिल विश्व में छा गया। यह भी किंवदंती है कि तानसेन की सुरीली तान से भगवान भोले की मढ़ी एक ओर झुक गई, जो आज भी विद्यमान है।

बेहट में सजी समारोह की इस सभा का शुभारंभ पारंपरिक रूप से स्थानीय संगीत संस्थाओं के ध्रुपद गायन से हुआ। तानसेन संगीत कला केन्द्र के विद्यार्थियों ने राग “भैरव”  में ध्रुपद गायन किया। अलाप, मध्यलय अलाप एवं द्रुत लय अलाप के बाद सूल ताल में बंदिश पेश की जिसके बोल थे “शिव आदि मद जो गात जोगी”। इस प्रस्तुति में पखावज संगत संजय पंत आगले ने की।

इसी कड़ी में सारदा नाद मंदिर ग्वालियर का ध्रुपद गायन हुआ। राग ” भूपाली तोड़ी” और चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे “प्रथम मान ओंकार”। संगीत संयोजन अनूप मोघे व वैशाली का था। पखावज संगत संतोष मुरमकर ने की।

पखावज वादन से झिलमिलाई झिलमिल …
अष्टम संगीत सभा मे पहले कलाकार के रूप में पंडित जगतनारायण शर्मा का पखावज वादन हुआ। उन्होंने गणेश परण से अपने पखावज वादन की शुरुआत की। उन्होंने चौताल में बेहतरीन वादन किया। साथ ही पुरानी-पुरानी बंदिशों की कर्णप्रिय धुनें बजाईं। उनके वादन में रेलों की अदायगी भी ओझपूर्ण रही। उनका वादन बोलों की सफाई के साथ मिठास का मिश्रण है। पण्डित जगत नारायण ने देश के सुविख्यात पखावज वादक पागल दास से पखवाज वादन की शिक्षा ली है। उनकी प्रस्तुति में हारमोनियम पर श्री नवनीत कौशल और सारंगी पर उस्ताद मोहम्मद खाँ ने संगत की।

“मन के पंछी भए रे बाबरे…”
 ग्वालियर घराने के उदयीमान ख्याल गायक हेमांग कोल्हटकर ने जब मिसुरी से भी मीठे राग “गूजरी तोड़ी” और तीन ताल में छोटा ख्याल” मन के पंछी भए रे बाबरे” गायन से वातावरण में मिठास घोल दी। इससे पहले उन्होंने राग गूजरी तोड़ी में विधवत आलापचारी के बाद विलंबित ख्याल “राग दरबार” गाया। उनके गायन में ग्वालियर घराने की गायकी साफ समझ आ रही थी। शब्दों की शुद्धता और आलापचारी में ठहराव व बढ़त भी रसिकों को खूब भायी। सभा के दूसरे कलाकार के रूप में उनकी प्रस्तुति हुई। उनके साथ तबले पर डॉ विनय विन्दे और हारमोनियम पर विनय जैन ने बढ़िया संगत की।

तानसेन की देहरी पर राग “मदमाती सारंग” में ध्रुपद गायन….
तानसेन की जन्मस्थली बेहट में घनी अमराई के बीच सजी संगीत सभा में देश की जानी मानी ध्रुपद गायिका सोमबाला सातले कुमार ने राग “मदमादी सारंग” में ध्रुपद गायन कर रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके सुर लगाने के अंदाज ने डागरवाणी की ध्रुपद गायकी का आभास कराया। उन्होंने आलापचारी के बाद धमार ताल में गायन किया। बंदिश के बोल थे ” सखी ब्रज के खिलैया”। इसके बाद उन्होंने सूल ताल में तानसेन रचित बंदिश “तुम रब, तुम साहिब, तुम ही करतार” प्रस्तुत कर अपने गायन को विराम दिया। उनके साथ पखावज पर पण्डित पृथ्वीराज कुमार, सारंगी पर उस्ताद सफीक हुसैन और तानपूरे पर मीरा वैष्णव व अंशिका चौहान ने मनमोहक संगत की। इसी प्रस्तुति के साथ इस साल के तानसेन समारोह की संगीत सभाओं का समापन हुआ।  

राज्य मंत्री कुशवाह व सांसद शेजवलकर सहित वरिष्ठ अधिकारी पहुँचे
 बेहट में सजी संगीत सभा में प्रदेश के उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भारत सिंह कुशवाह, सांसद विवेक नारायण शेजवलकर, संभागायुक्त आशीष सक्सेना, राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. साहित्य कुमार नाहर, कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह, जिला पंचायत सीईओ शिवम वर्मा, एसडीएम एचबी शर्मा एवं जनपद पंचायत मुरार के सीईओ राजीव मिश्रा सहित अन्य जनप्रतिनिधि तथा बड़ी संख्या में ग्वालियर एवं बेहट व समीपवर्ती गाँवों से आए रसिक शामिल हुए।  

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