ब्‍लॉगर

लड़ाके तैयार, कहीं विकास तो कहीं जाति-धर्म के हथियार

– सियाराम पांडेय ‘शांत’

उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावी महाभारत का बिगुल बज चुका है। सात चरणों में यह जंग होगी। पहले चरण के लिए लगभग सभी दलों ने अपने योद्धा तय भी कर दिए हैं। कहीं चुनाव जीतने के लिए विकास के हथियार को मुफीद माना जा रहा है तो कहीं जाति-धर्म के हथियार को। कोई भी राजनीतिक दल किसी तरह का जोखिम लेने के मूड में नहीं है। चुनावी सूरमाओं के चयन में जातीय ही नहीं, सामाजिक समीकरणों का भी पूरा ध्यान रखा है। चुनाव जीतने के लिए सभी दलों ने अपने-अपने स्तर पर मजबूत व्यूह रचना की है। पिछड़ों और दलितों को साधने की चिंता भी कमोबेश सभी राजनीतिक दलों की अब तक जारी उम्मीदवार तालिका में सुस्पष्ट नजर आ रही है।

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को हाल ही में अलविदा कहने वाले मंत्रियों और विधायकों ने पिछड़ों, दलितों की अनदेखी के जो आरोप लगाए हैं, प्रत्याशियों का निर्धारण कर भाजपा ने उन आरोपों को गलत बताने की कोशिश भी की है। पहले व दूसरे चरण के लिए 107 उम्मीदवारों की सूची में भाजपा ने महिलाओं को 10, पिछड़ी जाति को 44 और अनुसूचित जाति को 19 सीटें दी हैं।

पिछले चुनाव के बाद मुसलमानों को विश्वासघाती तक ठहरा चुकी मायावती ने इस बार भी मुस्लिम प्रत्याशियों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा किया है। इससे इतना तो साफ हुआ ही है कि राजनीति में समर्थन और विरोध का कोई स्थायी भाव नहीं होता जबकि सुविधा का संतुलन ज्यादा प्रभावी होता है। बसपा ने अभी तक घोषित 53 उम्मीदवारों की सूची में से 14 मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है तो उसके अपने मायने हैं। अगर अखिलेश यादव की नजर मुस्लिम-यादव समीकरण पर है तो मायावती भी चिड़िया की आंख पर ही निशाना लगा रही है। उन्हें पता है कि कुछ मुस्लिम इलाकों में जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 26 से तीस प्रतिशत के बीच है, वहां मुस्लिम प्रत्याशी पर ही दांव लगाना ज्यादा मुफीद है। धौलाना, कोल और अलीगढ़ में तो उन्होंने सपा और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन के तीन मुस्लिम प्रत्याशियों के सामने अपने मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिए हैं।

इसका मतलब साफ है कि अखिलेश यादव को जीत का खुला मैदान देने के पक्ष में हरगिज नहीं हैं। 6 ब्राह्मणों पर भी भरोसा जताकर उन्होंने सामाजिक संतुलन साधने का प्रयास किया है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने 125 सीटों की अपनी उम्मीदवार तालिका में 20 मुसलमान, 18 ब्राह्मण, 15 जाटव और 14 ठाकुरों पर दांव लगाया है। 88 नए चेहरों पर अगर विश्वास किया है तो शेष पुराने चेहरों को अहमियत दी है। 40 फीसदी महिलाओं को कांग्रेस ने अपनी पहली उम्मीदवार सूची में स्थान तो दिया है लेकिन उनका यह प्रयोग कितना सफल होगा, यह देखने वाली बात होगी।

समाजवादी पार्टी व राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन के तहत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए 29 प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी गई है। इसके तहत 19 सीटें राष्ट्रीय लोकदल को जबकि सपा को 10 सीटें मिली हैं। गठबंधन ने पहली सूची में 29 फीसदी यानी 9 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इनके अलावा गुर्जर, सैनी समुदाय को भी तवज्जो मिली है जबकि केवल एक महिला को टिकट दिया गया है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और 143 विधानसभा क्षेत्रों में व्यापक असर डालते हैं। इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी बीस से तीस प्रतिशत तक पहुंच जाती है। असदुद्दीन ओवैसी सौ मुस्लिम सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने जा रहे हैं। एक सीट पर अलग-अलग दलों के मुस्लिम प्रत्याशी होने के बाद मुस्लिम मतों का विभाजन तय है। उसकी भरपाई मायावती और अखिलेश पिछड़ों को अपने दल से जोड़कर करना चाहेंगे। स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान जैसे तीन मंत्रियों और कुछ विधायकों को तोड़कर उन्होंने भाजपा के अति पिछड़ा वर्ग के राजनीतिक किले में सेंध जरूर लगाई है लेकिन मुलायम सिंह यादव के समधी को तोड़कर भाजपा ने भी उनके नहले पर अपना दहला रख दिया है। यह सच है कि भाजपा ने अपनी पहली सूची में 21 विधायकों के टिकट काटे भी हैं लेकिन जिस तरह उसने कानपुर में भगदड़ रोकने के लिए किसी भी मौजूदा विधायक के टिकट न काटने का वादा किया है, उसका राजनीतिक मंतव्य साफ है।

यह भी सच है कि वर्ष 2022 का चुनाव जीतने के लिए भाजपा को अपने कई विधायकों के टिकट काटने होंगे। अगर वह टिकट नहीं काटेगी तो वह सीट उसके हाथ से जा सकती है। इसकी वजह यह है कि विधायकों ने वहां काम ही नहीं किया है। इस बात की आंतरिक रिपोर्ट भी पार्टी आलाकमान के पास है। भगदड़ अकेले भाजपा में ही हो, ऐसा भी नहीं है। सभी राजनीतिक दलों के कमोबेश ऐसे ही हालात हैं। रही बात नेताओं के प्रभाव की तो वह जनता और उसके समर्थन से बनती है। परिवार के भले के लिए जो नेता एक पार्टी से दूसरी में पलायन करते हैं, वे दरअसल मतदाताओं, खासकर अपने समर्थकों की भावनाओं से खेल करते हैं। ऐसे नेताओं को इस बार प्रदेश की जनता सबक जरूर सिखाएगी और उन्हें प्रदेश के विकास पर उनका जाति-जाति वाला मोहरा फिट नहीं होने देगी।

भाजपा के कुछ बुजुर्ग नेताओं का पुत्रमोह भी पार्टी के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। अगर भाजपा उनके सम्मान में उनके परिजनों को आगे बढ़ाती है तो उस पर भी परिवारवाद होने के आरोप लगेंगे। उसे पता है कि उनके परिजनों की साख क्षेत्र में बहुत अच्छी नहीं है लेकिन पार्टी चलाने के लिए थोड़ा-बहुत गरल तो उसे पीना ही पड़ेगा। भाजपा को पता है कि किस तरह के हालात हैं। पूरा विपक्ष उसे सत्ताच्युत करने पर तुला है, ऐसे में भाजपा को हर कदम फूंक कर रखना होगा।

एक दल छोड़ कर दूसरे दल में जाने वाले बयानवीर नेताओं को यह सोचना होगा कि अहं ब्रह्मास्मि का भाव उन्हें अपनों से ही विलग कर देगा। राजनीति में सेवा भाव, सक्रियता, निरंतर जनसंपर्क और विश्वसनीयता बहुत जरूरी है। केवल वायदों से कुछ नहीं होगा, राजनीतिक दलों को जनता के बीच विश्वास भी पैदा करना होगा तभी उनकी राजनीतिक नौका चुनावी वैतरणी पार कर सकेगी।

कुल मिलाकर इस चुनाव को लेकर हर तरह का गुणा-गणित जारी है। साम, दाम, दंड-भेद की नीति अपनाई जा रही है। पहला प्रयास 126 विधानसभा सीटों वाले पश्चिम का गढ़ जीतना है और इसकी जद्दोजहद शुरू हो गई है। भाजपा को जहां पश्चिम में अपना गढ़ बचाना है, वहीं विपक्ष को अपनी खोई जमीन पानी है। इन प्रयासों की जंग अभी से शुरू हो गई है। अब देखना यह है कि आगे क्या होता है?

(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

Share:

Next Post

शिवपुरी में हैवानियत, दुष्कर्म कर मासूम भतीजी का गला घोंटा, चाचा गिरफ्तार

Mon Jan 17 , 2022
शिवपुरी। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के शिवपुरी जिले (Shivpuri district) में रिश्तों को शर्मसार करने वाला एक मामला सामने आया है। जिले के तेंदुआ थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम इमलिया में एक युवक ने हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए अपनी छह वर्षीय भतीजी के साथ दुष्कर्म (rape of six year old niece) किया और फिर […]