खरी-खरी

प्रदेश की चाबी आज हमारे पास… कल से हम उनके हाथ…

मतदान ही नहीं करें… मत का मान भी रखेंं…
एक बड़ा दिन, जब सबकुछ हमारे हाथ है… हमारे साथ है… अपने पास है… आज दो चयन करना हैं… प्रदेश में सत्ता किसकी हो और हमारे इलाके का खैरख्वाह किसे बनाएं… किसे प्रदेश की चाबी थमाएं और किसे घर बिठाएं… हर कोई गाने गा रहा है, मतदान अवश्य करें की धुन सुना रहा है, लेकिन हमें मतदान ही नहीं करना है, मत का मान भी रखना है… न वादों के झांसे में आना है… न खैरातों पर वोट लुटाना है… दिमाग इस बात पर भी लगाना है कि प्रदेश कर्ज में डूबा हुआ है… खजाना खाली पड़ा हुआ है…जितनी खैरात बंटेगी उतनी जेब हमारी भी कटेगी… फिर वो कांग्रेस हो या भाजपा हमारी ही गर्दन पर करों की छुरी धरेगी… सत्ता की ताकत जिसे भी मिलेगी उसकी हिमाकत बढ़ेगी… इसलिए वजन उतना ही उठाएं जितना हम झेल पाएं… विधायक उसे बनाएं जो हमसे मिली शक्ति का उपयोग हमारे हित में कर पाए… हम पर रौब न जमाए… हमारे बीच रहकर अपनापन दिखाए… जिसमें प्रशासन से लडऩे और हमारे कष्ट हरने की शक्ति हो… जिसमें शहर को समझने, हमारी जरूरतों को परखने और भविष्य को सहेजने की दृष्टि हो… हमें विकास के साथ विश्वास चाहिए… हमें विस्तार के साथ सुरक्षा चाहिए… हमें सुनने वाली सरकार चाहिए… पिछले कुछ सालों में शहर नशे की भेंट चढ़ा है… सडक़ों पर कत्लेआम हुए हैं… महिलाओं की जहां सुरक्षा घटी है, वहीं युवतियां भी बहककर सडक़ों की नुमाइश बनी हैं… शहर में बेरोजगारी ही नहीं बढ़ी है, मानसिक अवसाद के चलते जिंदगी से घबराए लोगों की आत्महत्या भी बढ़ी है… हर दिन दो-चार लोग फांसी चढ़ रहे हैं… सूदखोरों के आतंक बढ़ रहे हैं…पुलिस नाकाम और नाकारा साबित हो रही है… थानों की बोली लग रही है… हर दिन नए अफसरों की आमद हो रही है…जिन्हें शहर की तासिर का पता ही नहीं वो रहनुमा बनाए जा रहे हैं… शरीफों की बस्ती के शहंशाह शैतान बने जा रहे हैं… हम अपने आने वाले दिनों को देखकर घबराए हुए हैं… वादा करना होगा चुने जाने वाले नेताओं को…वो इस शहर को बचाएंगे…शहर की मासूमियत पर लग रहे दाग को मिटाएंगे… भले ही हमारे शहर का विस्तार न हो… विकास न हो, लेकिन हमारे अधिकारों को लूटने वाले… हमारी शांति को खरीदने वाले… हमारे सुकून को झपटने वाले हमें नहीं चाहिए… हमारा शहर छोटा बना रहे, लेकिन खोटा न बने… हमारे शहर का विधायक जांबाज होना चाहिए… शहर की सल्तनत शहर से चलना चाहिए… भ्रष्ट अधिकारियों पर लगाम लगना चाहिए… और सबसे बड़ी बात यह है कि अधिकारी मुख्यमंत्री के इशारे पर चले, न कि मुख्यमंत्री को अपने इशारों पर नचाए… एक वक्त था जब जनहित के किसी काम के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह से कोई अधिकारी कहता था कि यह काम नियमों में नहीं है तो वो कहते थे कि नियम नहीं है तो बनाओ, कैबिनेट में लाओ और मंजूर कराओ… मैं मुख्यमंत्री हूं संत्री नहीं, जो नियमों पर चलूंगा… जरूरत पड़ी तो नियम भी बदलूंगा…वे चार्जशीट पर लिखते थे कि नियमों को शिथिल कर आदेश का पालन किया जाए… सुबह का काम शाम तक नहीं होता था तो अधिकारी कुर्सी पर नहीं रहता था…हमें ऐसा मुखिया चाहिए, जो दर्द पर तुरंत मरहम लगाए… जख्मों को नासूर न बनाए… ऐसा विधायक चाहिए, जो मुख्यमंत्री से भिड़ जाए… चिंता पांच साल की है और चिंतन के लिए चंद मिनट बचे हैं… मतदान करने जाइए, पर मत के मान के लिए अपना मन भी जगाइए… भले को वोट दें… सक्षम को वोट दें… सामथ्र्यवान को चुनें…

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